राज्य में सियासी संकट के बीच बसपा विधायकों के कांग्रेस में विलय का मसला सुर्खियों में है। पार्टी ने विलय को असंवैधानिक मानते हुए सदन में कांग्रेस के खिलाफ मतदान का व्हिप जारी कर दिया। विलय पर सवाल उठाते हुए भाजपा ने नए सिरे से हाईकोर्ट में याचिका लगाने की घोषणा कर दी है।
बसपा की एंट्री पहली बार 1998 के चुनाव में हुई। पहली बार दो विधायक जीते। 22 साल में बसपा को दो बार छह-छह सीटें मिली और दोनों बार उसका विलय कांग्रेस में हुआ। संयोग कि दोनों ही बार सीएम अशोक गहलोत रहे। मौजूदा हालात में बसपा के छह विधायकों की अहमियत बहुत अधिक है। कांग्रेस के 107 विधायक हैं, इनमें 19 बागी हो गए हैं। अगर बसपा विधायकों की सदस्यता पर कोई संकट आता है तो सरकार के लिए और भी खतरा बढ़ जाएगा।
राजस्थान की राजनीति में बसपा का अबतक का सफर और विवाद
- वर्ष 1998 : राजस्थान में बसपा का खाता पहली बार खुला। कांग्रेस को 150, भाजपा को 33 सीटें मिली। बसपा के दो विधायकों की जरूरत किसी को नहीं हुई।
- वर्ष 2003 : भाजपा 120 सीटें जीत कर बहुमत में आई। कांग्रेस को 56 सीटें मिली। बसपा फिर दो सीटें लेकर आई। लेकिन, दोनों ही पार्टियों को उस समय जरूरत नहीं थी।
- वर्ष 2008 : बसपा किंग मेकर बन कर उभरी। छह विधायक जीते। कांग्रेस को 96 और भाजपा को 78 सीटें मिली। सीएम अशोक गहलोत ने बसपा विधायकों का विलय कर करवा लिया।
- वर्ष 2013 : भाजपा को 163 सीटों के साथ भारी बहुमत। कांग्रेस 21 सीटों पर सिमट कर रह गई। बसपा के तीन विधायक जीते। लेकिन, सत्ता पक्ष को शायद इनकी जरूरत नहीं रही। विपक्ष को मजबूत करने में जरूर भूमिका रही। क्योंकि कांग्रेस को बहुत कम सीटें मिल पाई थी।
- वर्ष 2018 : फिर बसपा के छह विधायक जीते। कांग्रेस को 100 और भाजपा को 73 सीटें मिली। उपचुनाव में एक सीट भाजपा से छीनकर कांग्रेस 101 पर आ गई। बहुमत को और मजबूत करने के लिए गहलोत ने एक बार फिर 2008 को दोहराया और बसपा के छह विधायकों को 16 सितंबर, 2019 में विलय कर लिया गया।
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