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(रवि अटवाल) हाथरस में एक दलित लड़की के साथ जो दरिंदगी हुई, उससे पूरा देश गुस्से में है। लड़की के साथ हैवानगी करने वालों को फांसी देने की मांग उठ रही है। सोशल मीडिया पर एक फोटो चल रही है, जिसमें बताया गया है कि यह गैंगरेप पीड़ित लड़की है। लेकिन असल में जो फोटो दिखाई गई है, वह लड़की चंडीगढ़ की मनीषा है।
मनीषा यादव की दो साल पहले बीमारी के चलते मौत हो गई थी। जाने-अनजाने में चंडीगढ़ की बेटी और उनके घरवालों के साथ अन्याय हो रहा है। आम पब्लिक ही नहीं, बल्कि बड़े-बड़े सेलिब्रिटी भी चंडीगढ़ की मनीषा की तस्वीर को वायरल करने में लगे हुए हैं।
देश के लोग भले ही मनीषा की तस्वीरों को सोशल मीडिया में पोस्ट कर अपनी संवेदनाएं व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन इसका खामियाजा मनीषा के घरवालों को उठाना पड़ रहा है। पिता के जख्म फिर ताजा हो गए हैं, जो अपनी जवान बेटी के चले जाने का गम भुलाने की कोशिश कर रहे थे।
मनीषा के पिता मोहन लाल यादव ने बताया कि उन्हें बेहद दुख हो रहा है कि उनकी बेटी की मौत के बाद भी बदनामी की जा रही है। मोहन लाल ने बुधवार को चंडीगढ़ के एसएसपी को इस संबंध में शिकायत दी है और कहा कि सोशल मीडिया पर उनकी बेटी की तस्वीरें वायरल होने से रोका जाए। अगर कोई ऐसा कर रहा है तो उन पर कार्रवाई की जाए।
पथरी की बीमारी थी
मनीषा यादव का परिवार रामदरबार काॅलोनी में रहता है। मनीषा की 21 जून 2018 को शादी हुई थी। उसे पथरी की बीमारी थी और दिनों दिन ये बीमारी बढ़ती गई। 22 जुलाई 2018 को मनीषा की मौत हो गई।
एडवोकेट अनिल गोगना ने बताया कि रेप पीड़ित के बारे में किसी भी तरह की जानकारी को सार्वजनिक करना दंडनीय अपराध है। ऐसा करने वालों पर आईपीसी की धारा 228(ए) के तहत कार्रवाई हो सकती है। इस धारा के तहत दोषियों को दो साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। पुलिस से मामले की जांच की मांग की जाएगी।
from Dainik Bhaskar /national/news/manisha-from-chandigarh-the-girl-who-was-described-as-hathras-gang-rape-victim-died-two-years-ago-due-to-illness-127769777.html
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(समीर राजपूत) पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भरतसिंह सोलंकी ने 101 दिन तक कोरोना से लड़ाई लड़ी और जीत गए। गुरुवार को उन्हें अहमदाबाद के सिम्स अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। इस दौरान वे 51 दिन तक वेंटिलेटर पर भी रहे। अस्पताल का दावा है कि कोरोना के इलाज के लिए 101 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहने वाले वे पहले एशियाई हैं। जब उन्हें दाखिल किया गया था, तब उनके फेफड़े पत्थर जैसे सख्त हो गए थे।
वेंटिलेटर पर रखने के बावजूद उनका ऑक्सीजन लेवल बढ़ नहीं रहा था। उन्हें 100% ऑक्सीजन दिए जाने के बाद भी 85% ऑक्सीजन मिल रही थी। हालांकि, चार डॉक्टरों, नर्सिंग, पैरामेडिकल अपने फिजियोथेरेपिस्ट स्टाफ के साथ 12 लोगों की टीम उनके इलाज में जुटी हुई थी।
सिम्स के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. अमित पटेल ने बताया कि 67 साल के भरतसिंह कोरोना पाॅजिटिव आने के बाद 10 दिनों तक वडोदरा में इलाज कराते रहे। उसके बाद 30 जून को उन्हें सिम्स में भर्ती कराया गया। उनकी हालत इतनी गंभीर थी कि उन्हें तत्काल वेंटिलेटर पर रखा गया।
शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलने पर उन्हें दिन में 4-5 बार ‘लंग्स प्रोनिंग रिक्रूटमेंट थेरेपी’ दी गई। इससे 15-20 दिनों में उनकी ऑक्सीजन की जरूरत घटने लगी। लेकिन उनके फेफड़े और खून में बैक्टीरियल और फंगस इंफेक्शन होने लगा। मल्टीपल एंटीबॉयोटिक से इन्हें इंफेक्शन मुक्त किया गया। इस दौरान उनके स्नायुतंत्र कमजोर हो गए और पांच प्लाज्मा फेरासिस कराने के बाद 51 दिनों तक वेंटिलेटर पर आईसीयू में रखा गया।
डॉक्टर बोले- चुनौती ऑक्सीजन लेवल को बनाए रखने की थी
भरतसिंह को वेंटिलेटर पर रखने के बावजूद उनका ऑक्सीजन लेवल बनाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं था। अगर ऑक्सीजन लेवल कम होता तो दो से चार दिनों में ही उनका हार्ट बंद होने और शरीर के अन्य अंगों के काम न करने का खतरा था। इसके लिए उन्हें ‘लंग्स प्रोनिंग रिक्रूटमेंट थेरेपी’ दी गई। चूंकि उनका वजन ज्यादा था इसलिए थेरेपी देने में भी काफी मुश्किल आई। थेरेपी दिए जाने के बाद उनकी स्थिति लगातार सुधरती गई। उनका वजन भी 25 से 30% घट गया। अब वे पूरी तरह स्वस्थ हैं।
बीते कुछ हफ्तों में ट्रम्प एक बात साफ करते आए हैं। पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट में तो उन्होंने इस बिल्कुल साफ कर दिया। ट्रम्प के मुताबिक, 3 नवंबर के राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं के सामने सिर्फ दो विकल्प हैं। इनमें डेमोक्रेट कैंडिडेट जो बाइडेन की जीत शामिल नहीं है। इसका मतलब ये है कि चुनाव ट्रम्प ही जीतेंगे। अगर हारे तो मेल इन बैलट्स को गैरकानूनी या अमान्य घोषित कर देंगे। इस चेतावनी या कहें वॉर्निंग को गंभीरता से लेना चाहिए।
ट्रम्प क्या चाहते हैं
राष्ट्रपति की बात को समझिए। इसमें पारदर्शिता यानी ट्रांसपेरेंसी जैसी कोई चीज नहीं है। अगर वे चुनाव नहीं जीत पाते हैं तो फैसला सुप्रीम कोर्ट या हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में होगा। अब आप दोनों की स्थिति को समझिए। दोनों ही जगह ट्रम्प फायदे में हैं। और यही बात वो कई हफ्तों से और कई मंचों से दोहरा चुके हैं।
इससे ज्यादा और क्या साफ हो सकता है
मैं इस बारे में और ज्यादा साफ क्या कहूं कि- हमारा लोकतंत्र इस वक्त भयानक खतरे का सामना कर रहा हूं। ये खतरा सिविल वार, पर्ल हार्बर और क्यूबा के मिसाइल क्राइसिस से भी बड़ा है। इतना बड़ा खतरा तो वॉटरगेट कांड के बाद भी सामने नहीं आया था। मैंने अपना कॅरियर विदेश संवाददाता के तौर पर शुरू किया। उस वक्त लेबनान में दूसरा सिविल वार चल रहा था। इस युद्ध का मेरी जिंदगी पर बहुत गंभीर असर हुआ।
राजनीति का गहरा असर होता है
लेबनान सिविल वार के बाद मैं समझा कि जब एक देश में हर चीज सियासत से जुड़ जाती है तो क्या होता है। जब कुछ चुनिंदा नेता देश से ज्यादा पार्टी को अहमियत देने लगते हैं। जब कुछ कथित जिम्मेदार लोग ये साबित करने लगते हैं कि वे किसी भी कानून को तोड़ सकते हैं, अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें कोई रोकने वाला नहीं।
अब फिक्र होने लगी है
कट्टरपंथी जब हावी होने लगते हैं तो सिस्टम खराब होने लगता है, टूटने लगता है। मैंने ऐसा होते देखा है। मैं सोचता था कि अमेरिका में ऐसा कभी नहीं हो सकता। लेकिन, अब मुझे बेहद फिक्र होने लगी है। इसकी वजह ये है कि फेसबुक और ट्विटर हमारे लोकतंत्र के दो मजबूत आधारों सत्य और विश्वास, को खत्म कर रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि ये उन लोगों को अपनी बात रखने का प्लेटफॉर्म देते हैं जो अपनी आवाज नहीं उठा सकते। इससे पारदर्शिता बढ़ती है। लेकिन, ये भी याद रखिए कि इन पर ही बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है जो साजिशें रचते हैं, झूठ गढ़ते और फिर इसे फैलाते हैं।
सच और झूठ में फर्क जरूरी
इन सोशल नेटवर्क्स ने इंसान की खुद की सोच को खत्म कर दिया है। झूठ और सच में फर्क नहीं किया जाता। जब तक दोनों पक्षों में भरोसा नहीं होगा, तब तक आम लोगों की बेहतरी भी नहीं हो सकती। हेब्रू यूनिवर्सिटी के रिलीजियस फिलॉस्फर मोशे हालबर्टेल कहते हैं- राजनीति में मूल्य होने चाहिए। फैसले ऐसे होने चाहिए, जिससे दोनों पक्षों को फायदा हो। लोगों का भरोसा नहीं टूटना चाहिए। लेकिन, आज अमेरिका में ये नहीं हो रहा है। बाकी सब तो छोड़ दीजिए। यहां तो मास्क पहनने पर भी राय बंट गई है। और अगर हालात यही हैं तो फिर लोकतंत्र जिंदा नहीं रह पाएगा।
डेमोक्रेट्स पर भी सवालिया निशान
ऊपर दिए गए तथ्यों के आधार पर मुझे लगता है कि इस चुनाव में जो बाइडेन ही एकमात्र पसंद हैं। लेकिन, ऐसा भी नहीं है कि डेमोक्रेट्स सियासत नहीं कर रहे। लेकिन, रिपब्लिकन्स से उनकी तुलना नहीं की जा सकती। रिपब्लिकन्स ने पहले रोनाल्ड रीगन और जॉर्ज बुश सीनियर को चुना। लेकिन, वे ये भी जानते हैं कि अभी ओवल ऑफिस में बैठा व्यक्ति कैसा है। अगर ट्रम्प को चार साल और मिलते हैं तो हमारे संस्थान खत्म हो जाएंगे, देश बंट जाएगा। इसलिए, मुझे लगता है कि अमेरिका की आशा यही है कि बाइडेन चुने जाएं। रिपब्लिकन्स के कुछ कम कट्टरपंथी लोग उनका साथ दें।
आज फीके रहे बाइडेन
बुधवार की डिबेट में बाइडेन नहीं चमक पाए। डिबेट की ही बात करें तो मैंने उन्हें बहुत प्रभावी कभी नहीं देखा। लेकिन, मुझे कोई शक नहीं कि वे सरकार को एकजुट करेंगे और वो क्वॉलिटी जरूर दे पाएंगे जो एक देश के तौर पर जरूरी हैं और जिनका यह देश हकदार है। इसलिए मैं कहता हूं- बाइडेन को वोट दीजिए। मेल से दें या फिर मास्क लगाकर बूथ तक जाएं और फिर वोटिंग करें। ताकि, ट्रम्प और फॉक्स न्यूज को नतीजों में धांधली का मौका न मिल सके। लोगों को प्रेरित करें और बाइडेन के लिए वोट कराएं। यह आप अपने देश के लिए करें। क्योंकि, हमारा लोकतंत्र इसी पर निर्भर है।
दुनिया में संक्रमितों का आंकड़ा 3.41 करोड़ से ज्यादा हो गया है। ठीक होने वाले मरीजों की संख्या 2 करोड़ 54 लाख 20 हजार 056 से ज्यादा हो चुकी है। मरने वालों का आंकड़ा 10.18 लाख के पार हो चुका है। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं। इजराइल में लोग अब प्रतिबंधों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन नहीं कर सकेंगे। इसको लेकर यहां सरकार ने एक कानून पास कर दिया है।
इजराइल : सरकार सख्त
इजराइल में पिछले कुछ दिनों से लोग प्रतिबंधों का विरोध कर रहे हैं। इनका कहना है कि सरकार कोरोनावायरस की रोकथाम के नाम पर मनमाने प्रतिबंध लगा रही है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से इस्तीफे की मांग की जा रही है। लेकिन, सरकार ने भी सख्त रुख अपना लिया है। संसद में एक कानून पास किया गया है। इसके तहत अब विरोध प्रदर्शन गैरकानूनी होंगे और ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया जा सकेगा।
नए कानून के तहत लोग एक किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा भी नहीं कर सकेंगे। इसके अलावा 20 से ज्यादा लोगों के एक जगह जुटने पर पाबंदी लगा दी गई है। सरकार का कहना है कि वैक्सीन अब तक नहीं आई है और संक्रमण की दूसरी लहर का खतरा है। लिहाजा, सख्ती जरूरी है।
स्पेन : मैड्रिड लॉकडाउन की ओर
स्पेन की राजधानी मैड्रिड में सरकार ने कुछ हॉटस्पॉट्स की पहचान की है। सरकार का कहना है कि यहां लॉकडाउन लगाए बिना संक्रमण रोकना आसान नहीं है। लेकिन, स्थानीय प्रशासन और लोग केंद्र के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। परेशानी की बात यह है कि दो हफ्ते में यहां एक लाख 33 हजार से ज्यादा मामले सामने आए हैं और सरकार की फिक्र का सबब भी यही आंकड़ा है। हेल्थ मिनिस्टर साल्वाडोर इले ने कहा- मैड्रिड की हेल्थ ही स्पेन की हेल्थ भी है। हमने नियमों की नई सूची तैयार कर ली है और इसे जल्द लागू करेंगे। मैड्रिड में 9 उपनगरीय इलाके हैं। यहां करीब 30 लाख लोग रहते हैं। फिलहाल, बाहर से आने वालों पर बैन लगाया गया है।
साउथ कोरिया: सरकार ने कहा- सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी
साउथ कोरिया में सोमवार को 39 नए केस सामने आए। हालांकि केसों में हल्की गिरावट भी देखी गई है। इसके बावजूद सरकार ने कहा कि सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन किया जाए। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, छुट्टियों में लाखों लोग घूमने का प्लान बना चुके हैं। इससे महामारी फैलने का खतरा हो सकता है। देश में 23 हजार 699 केस हैं, 407 मौतें हुई हैं।
लैटिन अमेरिका : 34 लाख लोगों ने नौकरी गंवाई
यूएन के इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन ने एक रिपोर्ट जारी कर बताया है कि महामारी के चलते लैटिन अमेरिका में 34 लाख लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। संगठन ने कहा है कि किसी भी हाल में सरकारों और यूएन को मिलकर इन लोगों के लिए काम करना होगा। कई दशक बाद इतनी खराब स्थिति देखने को मिली है। लैटिन अमेरिका के अलावा कैरेबियन देशों में भी महामारी का असर पड़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक, लैटिन अमेरिका में कई बुनियादी समस्याएं हैं। इनको सुलझाए बिना रोजगार की समस्या को हल नहीं किया जा सकता। इसके लिए एक प्लान भी तैयार करने को कहा गया है।
स्पेन : कारोबार को नुकसान का खतरा
स्पेन सरकार ने साफ कर दिया है कि देश में संक्रमण की लहर को रोकने के लिए वो हर मुमकिन कदम उठाएगी। सरकार का यह सख्त बयान मैड्रिड लोकल एडमिनिस्ट्रेशन के एक दिन पहले दिए गए उसे बयान के बाद आया है, जिसमें कहा गया था कि केंद्र सरकार के कदमों से पटरी पर आ रहे कारोबार को फिर नुकसान हो सकता है। हेल्थ मिनिस्ट्री ने सोमवार को कहा था- यूरोपीय देशों और खासकर पड़ोसी देश फ्रांस में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। लिहाजा, सरकार को कठोर कदम उठाने होंगे। कुछ खबरों में कहा गया कि स्पेन सरकार सीमाएं बंद करने पर भी विचार कर रही है। हालांकि, सरकार ने इन खबरों का खंडन कर दिया है।
आईपीएल के 13वें सीजन का 13वां मैच किंग्स इलेवन पंजाब (KXIP) और मुंबई इंडियंस (MI) के बीच आज अबु धाबी में खेला जाएगा। इस सीजन में अब तक हुए 12 मैचों में ही दो सुपर ओवर खेले गए। पहले सुपर ओवर में दिल्ली ने पंजाब को हराया। वहीं, दूसरे सुपर ओवर में मुंबई को बेंगलुरु के हाथों हार का सामना करना पड़ा। सीजन में अब तक दोनों ही टीमों ने 3-3 मैच खेले हैं। इनमें दोनों को 1-1 मैच में ही जीत नसीब हुई।
मुंबई के कप्तान रोहित शर्मा आईपीएल में 5000 रन बनाने से दो रन दूर हैं। वे 191 मैचों में 31.63 की औसत से 4998 रन बना चुके हैं। अब तक केवल दो बल्लेबाज ही आईपीएल में 5000 से ज्यादा रन बना सके हैं। कोहली ने 178 मैचों में 37.68 की औसत से 5426 रन बनाए हैं। रैना के 193 मैचों में 33.34 की औसत से 5368 रन हैं।
दोनों टीमों के सबसे महंगे खिलाड़ीपंजाब में कप्तान लोकेश राहुल 11 करोड़ और ग्लेन मैक्सवेल 10.75 करोड़ रुपए कीमत के साथ सबसे महंगे प्लेयर हैं। वहीं, मुंबई में कप्तान रोहित शर्मा सबसे महंगे खिलाड़ी हैं। टीम उन्हें एक सीजन का 15 करोड़ रुपए देगी। उनके बाद टीम में हार्दिक पंड्या का नंबर आता है, उन्हें 11 करोड़ रुपए मिलेंगे।
मुंबई में ईशान किशन और पोलार्ड से उम्मीदपिछले मैच के हीरो मुंबई को ईशान किशन और कीरोन पोलार्ड पर एक बार फिर रन बनाने की जिम्मेदारी होगी। रोहित के अलावा क्विंटन डिकॉक और सूर्यकुमार यादव भी बल्लेबाजी में की-प्लेयर होंगे। गेंदबाजी में ट्रेंट बोल्ट और जसप्रीत बुमराह जैसे दिग्गज बॉलरों से काफी उम्मीदें होंगी।
पंजाब में गेल को मिल सकता है मौकापंजाब में क्रिस गेल को मौका मिल सकता है। ग्लेन मैक्सवेल और निकोलस पूरन में से किसी एक की जगह गेल को प्लेइंग इलेवन में जगह मिल सकती है। कप्तान लोकेश राहुल और मयंक अग्रवाल शानार फॉर्म में हैं। वहीं, गेंदबाजी में शेल्डन कॉटरेल, मोहम्मद शमी के अलावा रवि बिश्नोई और मुरुगन अश्विन पर अहम जिम्मेदारी होगी।
हेड-टु-हेडदोनों के बीच अब तक 24 मुकाबले हुए हैं। इसमें मुंबई ने 13 जबकि पंजाब ने 11 मैच जीते हैं। पिछले दोनों सीजन की बात की जाए तो दोनों टीमों के बीच पांच मैच खेले गए। इनमें मुंबई ने तीन और पंजाब ने दो मैच जीते।
पिच और मौसम रिपोर्टअबु धाबी में मैच के दौरान आसमान साफ रहेगा। तापमान 28 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। शेख जायद स्टेडियम में टॉस जीतने वाली टीम पहले गेंदबाजी करना पसंद करेगी। यहां हुए पिछले 44 टी-20 में पहले गेंदबाजी करने वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 56.81% रहा है।
इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 44
पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 19
पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 25
पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 137
दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 128
मुंबई ने सबसे ज्यादा 4 बार खिताब जीताआईपीएल इतिहास में मुंबई ने सबसे ज्यादा 4 बार (2019, 2017, 2015, 2013) खिताब जीता है। पिछली बार उसने फाइनल में चेन्नई को एक रन से हराया था। मुंबई ने अब तक पांच बार फाइनल खेला है। वहीं, पंजाब ने अब तक एक बार फाइनल (2014) खेला था। उसे केकेआर ने तीन विकेट से हराया था।
आईपीएल में मुंबई का सक्सेस रेट 57.63%, यह पंजाब से ज्यादालीग में मुंबई का सक्सेस रेट पंजाब से ज्यादा है। मुंबई ने आईपीएल में 190 मैच खेले हैं। इनमें से 110 मैच जीते और 80 हारे हैं, यानि लीग में उसका सक्सेस रेट 57.63% है। वहीं, लीग में पंजाब का सक्सेस रेट 46.08% है। पंजाब ने लीग में अब तक 179 मैच खेले, 83 जीते और 96 हारे हैं।
बाबरी मस्जिद को गिराने के बारे में अब जो फैसला आया है, उस पर तीखा विवाद छिड़ गया है। इस फैसले में सभी कारसेवकों को दोषमुक्त कर दिया गया है। कुछ मुस्लिम संगठनों के नेता कह रहे हैं कि यदि मस्जिद गिराने के लिए कोई भी दोषी नहीं है तो फिर वह गिरी कैसे? सरकार और अदालत ने अभी तक उन लोगों को पकड़ा क्यों नहीं, जो मस्जिद ढहाने के दोषी थे? जो सवाल हमारे कुछ मुस्लिम नेता पूछ रहे हैं, उनसे भी ज्यादा तीखे सवाल अब पाकिस्तान के नेता, अखबार और चैनल पूछेंगे। इस फैसले को लेकर देश में सांप्रदायिक असंतोष और तनाव फैलाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं।
मान लें कि सीबीआई की अदालत श्री लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरलीमनोहर जोशी और उमा भारती जैसे सभी आरोपियों को सजा देकर जेल भेज देती तो क्या होता? पहली बात तो यह कि इन नेताओं ने बाबरी मस्जिद के उस ढांचे को गिराया है, इसका कोई भी ठोस या खोखला-सा प्रमाण भी उपलब्ध नहीं है। यह ठीक है कि ये लोग उस प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे लेकिन इनमें से किसी ने उस ढांचे की एक ईंट भी तोड़ी हो, ऐसा किसी फोटो या वीडियो में नहीं देखा गया।
इसके विपरीत इन नेताओं ने उस वक्त भीड़ को काबू करने की भरसक कोशिश की, इसके कई प्रमाण उपलब्ध हैं। आडवाणी जी ने तो सारी घटना पर काफी दुख भी प्रकट किया। यदि अदालत इन दर्जनों नेताओं को अपराधी ठहराकर सजा दे देती तो क्या होता? यही माना जाता कि ठोस प्रमाणों के अभाव में अदालत ने मनमाना फैसला दिया है लेकिन सवाल यह भी है कि वह मस्जिद जिन्होंने गिराई, उन्हें क्यों नहीं पकड़ा गया और सजा क्यों नहीं दी गई?
क्या किसी मंदिर या मस्जिद या गिरजे को कोई यों ही गिरा सकता है? क्या उसको गिराना अपराध नहीं है? यदि आप मानते हैं कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में यह अपराध हुआ है तो वे अपराधी कौन हैं? अदालत का कहना है कि सबूत बहुत कमजोर थे। नेताओं के रिकॉर्ड किए हुए भाषण अस्पष्ट थे, जिनका ठीक-ठाक अर्थ समझना मुश्किल था। जो फोटो सामने रखे गए, उनमें चेहरे पहचाने नहीं जा सकते थे।
अदालत तो ठोस प्रमाणों के आधार पर फैसला करती है। यदि प्रमाण कमजोर हैं तो इसमें अदालत का क्या दोष है? प्रमाण जुटाना तो सीबीआई का दायित्व है लेकिन उसके बारे में तो कहा जाता है कि वह पिंजरे का तोता है। मान लें कि सीबीआई ठोस प्रमाण जुटा लेती और जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि बाबरी मस्जिद का ध्वंस कानून का भयंकर उल्लंघन था और भाजपा के इन नेताओं को सजा हो जाती तो क्या हो जाता? क्या मस्जिद फिर खड़ी हो जाती? जो दो-ढाई हजार लोग उसी विवाद के कारण मारे गए थे, क्या वे वापस आ जाते?
मंदिर-मस्जिद पर पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय ने जो लगभग सर्वमान्य फैसला दिया है, क्या वह निरर्थक सिद्ध नहीं हो जाता? देश में क्या हिंद-मुस्लिम तनाव दोबारा नहीं बढ़ जाता? नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश में जो आंदोलन चल रहे थे, क्या उनका विरोध और तूल नहीं पकड़ता? यदि कुछ भाजपाई नेताओं को चार-पांच साल की सजा हो जाती तो क्या वे ऊंची अदालतों के द्वार नहीं खटखटाते?
पहले ही इस मुकदमे को तय होने में 28 साल लग गए। जिन 49 लोगों पर मुकदमा चला था, उनमें से 17 तो संसार से विदा हो गए हैं। उनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी भी थे। इस मामले पर 2009 में लिबरहान आयोग ने 900 पृष्ठों की रपट तैयार करके दी थी। सीबीआई ने 850 गवाहों से बात करके 7000 दस्तावेज खंगाले थे। मान लें कि वर्तमान मोदी सरकार की जगह कोई और सरकार दिल्ली में बैठी होती और वह अदालत पर दबाव डलवाकर या सच्चे-झूठे कई प्रमाण जुटाकर इन आरोपियों को कठघरे में डलवा देती तो क्या भारतीय लोकतंत्र के लिए वह शुभ होता?
यदि राम मंदिर के नेताओं को जेल हो जाती तो सोचिए कि आज के भारत का हाल क्या होता? ज्यादातर नेता वरिष्ठ नागरिक हैं। जनता में उनके प्रति श्रद्धा है। यदि फैसला उनके खिलाफ जाता तो सोचिए कि देश में एक नया तूफान उठ खड़ा होता या नहीं होता? आजकल पूरा देश कोरोना की महामारी से जूझ रहा है, लद्दाख में फौजी संकट आन खड़ा है और कश्मीर में भी काफी उहापोह है, ऐसे हालात में बुद्धिमत्ता इसी में है कि यह फैसला किसी को कैसा भी लगे, फिर भी इसका स्वागत किया जाए।
इस मौके पर एक प्रासंगिक घटना यह भी हुई कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने बड़ी घोषणा कर दी। बड़ी इसलिए क्योंकि अनेक हिंदू साधु-संत संगठन मांग कर रहे हैं कि मथुरा व काशी में भी मस्जिदें हटाकर मंदिर बनाए जाएं। मोहनजी ने कहा है कि यह काम संघ की कार्यसूची में नहीं है। इसी तरह उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून के बारे में भी कहा है कि पड़ोसी देशों के हर शरणार्थी का स्वागत किया जाना चाहिए, उसका मजहब चाहे जो हो। बाबरी मस्जिद का यह फैसला अगर उल्टा आ जाता तो भारतीय लोकतंत्र और हिंदुत्व की राजनीति में आजकल जो ये स्वस्थ प्रवृत्तियां उभर रही हैं, वे काफी शिथिल पड़ जातीं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
जब भी मैं शक्की लोगों के साथ कोविड-19 या जलवायु परिवर्तन पर बात करता हूं तो मैं एक उपमान का इस्तेमाल करता हूं: कल्पना करें कि आपका बच्चा बीमार है और आप उसे 100 डॉक्टरों को दिखाने ले जाते हैं। इनमें से 99 डॉक्टर एक ही बात कहते हैं और इलाज की सलाह देते हैं। जबकि एक अन्य कहता है कि चिंता की कोई बात नहीं है, बच्चे की बीमारी जादू जैसे गायब हो जाएगी।
क्या माता-पिता सौ में से इस एक डॉक्टर की सलाह मानेंगे? इसे आप मनगढ़ंत न मानें। असल में अगले राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटर के सामने यही सबसे बड़ा सवाल है। क्या आप अपने बच्चे या देश की सेहत को उस व्यक्ति के हाथों में देंगे, जो कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन पर 100 में से एक डॉक्टर की सलाह मानता हो। वह ट्रम्प यूनिवर्सिटी के डॉ. डोनाल्ड ट्रम्प हैं, जहां से उन्होंने बीएस की डिग्री ली है।
यह मेरे लिए चौंकाने वाला है कि कितने परंपरावादी सौ में से ऐसे एक डॉक्टर की सलाह को मानेंगे। हो सकता है कि ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के लोग प्रकृति में रुचि न रखते हों, लेकिन प्रकृति की उनमें रुचि है। जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 दोनों ने ही पिछले एक साल में हमारी जिंदगी को तगड़ी चोट दी है और इसकी एक ही वजह है कि इकोसिस्टम पर सीमा से अधिक दबाव।
हमने जंगलों को रौंदा, उन जंगली जानवरों को खींचा, जो ऐसे वायरस के वाहक थे, जिनके संपर्क में मनुष्य कभी नहीं आया था, CO2 का उत्सर्जन करके धरती को गर्म किया, जिससे तूफान बढ़े, जंगलों में आग लगी। जो बाइडेन अधिक सतर्कता से बढ़ना चाहते हैं और ट्रम्प सावधानी को हवा में उड़ा देना चाहते हैं। इसीलिए विज्ञान जर्नल साइंटिफिक अमेरिकन ने पहली बार कहा ‘साइंटिफिक अमेरिकन ने 175 साल के इतिहास में अब तक किसी भी राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी का समर्थन नहीं किया है।
2020 का चुनाव जिंदगी और मौत का सवाल है। हम आपसे स्वास्थ्य, विज्ञान और राष्ट्रपति पद के लिए जो बाइडेन को वोट देने का आग्रह करते हैं।’ यह चयन कठिन नहीं था। जब कोविड या पर्यावरण संरक्षण की बात होती है तो ट्रम्प का आदर्श वाक्य एक ही है : आपका धन या आपकी जिंदगी? आप किसे अधिक महत्व देते है? बाइडेन का आदर्श वाक्य है आपका धन और आपकी जिंदगी। अगर हम विज्ञान का अनुसरण करते हैं तो आपको इन दोनों में से किसी एक को चुनने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।
कोविड-19 पर ट्रम्प का रुख था कि नौकरी या मास्क, सामाजिक दूरी या बिग टेन फुटबॉल, विज्ञान या चर्च। हर चीज में काला या सफेद। नतीजतन आज ढेरों अमेरिकियों के पास नौकरी नहीं है, उनके बच्चे घर पर ही पढ़ रहे हैं। क्योंकि ट्रम्प ने कक्षा, नौकरियों, रेस्टोरेंट में बैठकर खाने व चर्च में जाने के सामने मुखौटे खड़े कर दिए। कई हताश लोगों ने नौकरी, स्कूल और चर्च चुने और वे इसकी कीमत चुकाएंगे।
इसके विपरीत बाइडेन एकजुट करने वाले हैं। उनका कहना है कि अगर हर कोई मास्क पहनेगा, सामाजिक दूरी रखेगा और जांच कराएगा तो हम कई नौकरियां और जिंदगी दोनों को ही बचाएंगे। मास्क की नौकरी से कोई लड़ाई नहीं है। वे महामारी में रोजगार के विकास के ड्राइवर और उसकी रक्षा करने वाले हैं। मास्क स्कूल और अन्य इनडोर गतिविधियों को खोलने के वाहक हैं, दुश्मन नहीं।
यहीं बात जलवायु परिवर्तन पर हुई। ट्रम्प ने लोगों को से कहा कि पर्यावरण बचाना लोगों को बेरोजगार करना है। साफ हवा चाहिए या विकास दर। वहीं बाइडेन नौकरियों के साथ पर्यावरण बचाने के पक्षधर हैं। आप कुछ विज्ञान व बिजनेस पत्रिकाओं की राय देखें।
न्यू साइंटिस्ट: ‘अमेरिका में हरित अर्थव्यवस्था इतनी विकसित हो गई है कि इसमें फॉसिल ईंधन से बिजली बनाने वाले लोगों की संख्या की तुलना में 10 गुना लोगों को नौकरी दी जा सकती है।’ ब्लूमबर्ग.कॉम: ‘इलेक्ट्रिक कार व सोलर उत्पाद बनाने वाली टेस्ला की मार्केट वैल्यू एक्सोन मोबिल कॉरपोरेशन से अधिक हो गई। साफ है कि निवेशक फॉसिल ईंधन से हटकर ऊर्जा के अन्य स्रोतों में रुचि ले रहे हैं।’
इसके अलावा ऐसी कई अन्य राय आई हैं। हमें बस अधिक स्वस्थ होना होगा। हमारी हवा साफ हो, उद्योग, वाहन और घर साफ ऊर्जा तकनीक में अधिक सक्षम हों। जलवायु परिवर्तन हो या न हो, लेकिन 2030 तक दुनिया की जनसंख्या करीब एक अरब और बढ़ने जा रही है। अगर हम जलवायु परिवर्तन को दिवास्वप्न मानते रहे और यह एक कुस्वप्न साबित हुआ तो हम एक प्रजाति के रूप में वास्तविक खतरे में होंगे। इसलिए मैं उम्मीद करता हूं कि अगली डिबेट में बाइडेन सिर्फ यह कहें : ‘मेरे अमेरिकियों आप अपने जंगलों में आग बुझाने के लिए तो किसी आग लगाने वाले की सेवाएं नहीं लेना चाहेंगे।
आप नस्लीय घावों को भरने के लिए किसी विभाजक की सेवाएं भी नहीं चाहेंगे। आप किसी जहर घोलने वाले को अपने पानी को साफ करने के लिए तैनात नहीं करेंगे। इन सबसे अधिक आप ऐसे व्यक्ति की सेवाएं भी नहीं चाहेंगे जो प्रकृति के खिलाफ नौकरियों को और नौकरियों के खिलाफ स्वास्थ्य को खड़ा करे। वह भी ऐसे समय पर जब हमें स्पष्ट तौर पर इन सभी की जरूरत है और हम स्पष्ट तौर पर इन सभी को ले सकते हैं।’ (ये लेखक के अपने विचार हैं)।
भीख मांगकर गुजारा करने वाला जालंधर का यह व्यक्ति चाहे शारीरिक तौर पर विकलांग है लेकिन मानसिक तौर पर काफी समझदार है। कुछ न होते हुए भी मास्क पहनकर समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है। दूसरी तरफ मास्क न पहनने वाले लोगों को इसकी समझदारी का सबक लेना चाहिए क्योंकि मास्क पहनने से आप ही सुरक्षित रहेंगे।
लापरवाही की यह सजा
यह फाेटो हैरान तो जरूर करती है लेकिन अव्यवस्थाओं का यह तंत्र कई बार ऐसी तस्वीरों के लिए मजबूर करता है। इसके लिए कुछ शासन की लापरवाही जिम्मेदार है तो कुछ प्रशासन की...। प्रचार के दौरान जनप्रतिनिधि भी लोगों के गुस्से का शिकार हो रहे हैं तो लापरवाही पर कर्मचारियों को भी लोग नहीं छोड़ रहे हैं। यह तस्वीर है बिहार के मुजफ्फरपुर के रेपुरा गांव की जहां टीकाकरण से पशुओं की मौत पर लोगों ने पशुपालन विभाग के कर्मियों को 9 घंटे बंधक बनाए रखा।
हाईवे की पेट्रोलिंग गाड़ी हादसे में मृत गाय को रस्सी से बांध घसीटकर ले गई
ग्वालियर से शिवपुरी के बीच फोरलेन हाइवे पर आवारा मवेशियों को हटाने और हादसे में मौत होने पर शव व्यवस्थित तरीके से डिस्पोजल करने जिम्मेदार संबंधित टोल प्लाजा संचालित करने वाले कंपनी को दी गई है। लेकिन सतनवाड़ा में एक गाय की हादसे में मौत के बाद हाईवे पेट्रोलिंग गाड़ी से शव को बांधा और घसीटकर ले गए। इस क्रूरता का वीडियो वायरल होने के बाद एनएचएआई के प्रोजेक्ट डायरेक्टर राजेश गुप्ता सफाई दे रहे हैं कि हाईवे पेट्रोलिंग गाड़ी से घसीटकर गाय का शव ले जाने के इस मामले में कार्रवाई करेंगे।
ट्रैक पर आई ट्रेन, फाटक के बीच फंसा वाहन
सीएसईबी चौक रेलवे फाटक पार करने की ऐसी हड़बड़ी की बीच में साहब का वाहन फंस गया। घटना बुधवार की दोपहर 12.23 बजे की है। डीएसपीएम प्लांट से खाली मालगाड़ी रेलवे स्टेशन की ओर जाने का संकेत मिलने पर गेटकीपर ने फाटक को एक-एक कर बंद कर रहा था। इसी बीच बुधवारी की ओर जा रही छत्तीसगढ़ शासन लिखा वाहन क्रमांक सीजी 02, 5524 के चालक ने फाटक पार करने की जल्दबाजी करते हुए फाटक की सीमा लाइन पार कर गया, तब तक सामने का फाटक बंद हो चुका था और पीछे का फाटक भी बंद हो गया। हालांकि वाहन में सिर्फ ड्राइवर सवार था।
अच्छी बारिश का असर
उज्जैन के जवासिया कुमार गांव में अधिकांश कुएं पूरे भर गए हैं। किसान अजय पटेल ने कहा खेत पर बने कुएं की पाल से पानी बाहर निकाला जा सकता है। यह सब अच्छी बारिश का असर है। एक जून से 30 सितंबर तक शहर में 1127 मिमी बारिश हुई। चार महीने में सबसे ज्यादा बारिश जुलाई में 522.2 मिमी दर्ज की गई। यह चार साल में इस अवधि में सबसे ज्यादा है।
भोपाल में 42.06 इंच होगा बारिश का नया कोटा
तीस सालों के बाद मानसूनी सीजन में भोपाल में सामान्य बारिश के कोटे को अपडेट किया गया है। अब बारिश का नया कोटा 42.06 इंच होगा। अभी तक यह 43.64 इंच था। यानी इसमें 1.58 इंच की कमी हुई है। इसकी वजह- मानसून सीजन में बारिश के दिनों की संख्या घटना है। क्योंकि अब पहले जैसी चार- पांच दिनों तक झड़ी नहीं लगती। लेकिन भारी या तेज बारिश के दिनों की संख्या बढ़ी है।
हर रोज पहुंच रहे 500 पर्यटक
लम्बे इंतजार के बाद कुंभलगढ़ का दुर्ग दुधिया रोशनी में नहाया हुआ दिखा। कोरोना महामारी के बीच चले लॉकडाउन के दौरान करीब 6 महीने पहले दुर्ग पर विभाग ने लाइटिंग बंद रखी थी। जो इन दिनों भ्रमण करने पहुंच रहे पर्यटकों के इजाफा के कारण शुरू कर दी गई। दुर्ग पर इस समय में हर रोज तीन सौ से पांच सौ पर्यटक पहुंच रहे हैं। महादेव मंदिर के पास बने लाइट एंड साउंड शो को अभी तक शुरू नहीं किया है। अब पर्यटक दिन में दुर्ग घूमने के बाद शाम को लाइटिंग भी देख सकेंगे। इसका समय शाम 7 से साढ़े सात बजे तक हैं।
ध्वनि की रफ्तार से तीन गुना तेजी से वार कर सकती है
भारत ने बुधवार को सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस का सफल परीक्षण किया। ओडिशा के चांदीपुरा स्थित इंटिग्रेटेड टेस्ट रेंज से इसे सुबह 10.45 बजे दागा गया। डीआरडीओ के मुताबिक, यह मिसाइल ध्वनि की रफ्तार से तीन गुना तेजी से वार कर सकती है। इसकी रफ्तार करीब 3457 किमी. प्रति घंटे है। यह 400 किमी की रेंज तक निशाना लगा सकती है। ब्रह्मोस का नाम दो नदियों के नाम से लिया गया है, इसमें भारत की ब्रह्मपुत्र नदी का ‘ब्रह्म’ और रूस की मोसकावा नदी से ‘मोस’ लिया गया है।
from Dainik Bhaskar /national/news/this-person-is-very-mentally-mentally-challenged-but-physically-challenged-people-held-animal-husbandry-department-hostage-for-9-hours-on-death-of-animals-due-to-vaccination-in-bihar-127769628.html
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बाबरी मस्जिद मामले में अदालत ने आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि घटना पूर्व नियोजित नहीं लगती। वहीं, बरी होने के बाद एक आरोपी जय भगवान गोयल बोले कि ढांचा एजेंडे के तहत ही गिराया था। एकाएक कुछ नहीं हुआ। बहरहाल, चलिए शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...
आज इन 7 इवेंट्स पर रहेगी नजर 1. IPL में आज मुंबई इंडियंस और किंग्स इलेवन पंजाब आमने-सामने होंगे। टॉस शाम 7 बजे होगा। मैच शाम साढ़े 7 बजे शुरू होगा। 2. आज अनुराग कश्यप को पूछताछ के लिए मुंबई के वर्सोवा पुलिस स्टेशन बुलाया गया है। फिल्ममेकर सुबह 11 बजे जाएंगे। 3. झारखंड में आज से स्कूल, सिनेमाघर और धार्मिक स्थल खोलने पर निर्णय लिया जा सकता है। 4. आज से राजस्थान का रणथंभौर टाइगर पार्क खोल दिया जाएगा। 5. मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा विभाग की ऑनलाइन कक्षाएं आज से, करीब 7 लाख छात्र जुड़ेंगे। 6. पंजाब में खेती बिलों को लेकर सबसे बड़ा प्रदर्शन किया जाएगा। अकाली वर्कर और किसान-मजदूर मोहाली से राज्यपाल को मेमोरेंडम देने के लिए चंडीगढ़ जाएंगे। 7. आज से दुर्ग और धमतरी में लॉकडाउन होगा खत्म। दुर्ग में रात 8 बजे तक खुल सकेंगी दुकानें। साप्ताहिक बंदी का निर्णय व्यापारी खुद कर सकेंगे।
अब कल की महत्वपूर्ण 7 खबरें
1. बाबरी मामले में 28 साल बाद आडवाणी-मुरली समेत 32 आरोपी बरी
बाबरी मस्जिद ढांचा ढहाए जाने के 265 दिन बाद मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा गया। सीबीआई टीम करीब 3 साल जांच करती रही। फिर सीबीआई के स्पेशल कोर्ट में ही सुनवाई शुरू हुई। आखिरकार 30 सितंबर को फैसला आ गया। घटना के 28 साल बाद बाबरी से सब बरी कर दिए गए। सब यानी सभी 32 आरोपी, जो जिंदा हैं। वैसे कुल 48 आरोपी थे। इनमें से 16 अब नहीं हैं। -पढ़ें पूरी खबर
2. राम मंदिर पर 57 दिन बाद बोले आडवाणी: ‘जय श्रीराम, ये खुशी का पल है’
बाबरी विध्वंस केस में स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने बुधवार को लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया। फैसले के बाद लालकृष्ण आडवाणी (92) ने कहा कि यह हम सभी के लिए खुशी का पल है। कोर्ट के निर्णय ने मेरी और पार्टी की रामजन्मभूमि आंदोलन को लेकर प्रतिबद्धता और समर्पण को सही साबित किया है। -पढ़ें पूरी खबर
3. हाथरस गैंगरेप: पुलिस ने रात में खुद ही पीड़िता का शव जला दिया
हाथरस में कथित गैंगरेप पीड़ित का बीती रात पुलिस ने अंतिम संस्कार कर दिया। पीड़ित के भाई ने भास्कर से बात करते हुए कहा, 'पुलिस ने हमें उसका चेहरा तक नहीं देखने दिया। हमें नहीं पता पुलिस ने किसे जलाया।' मोदी ने योगी से कहा है कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें। राज्य सरकार ने 3 सदस्यों की एसआईटी बनाकर 7 दिन में रिपोर्ट देने को कहा है। -पढ़ें पूरी खबर
4. UPSC एग्जाम पर सुप्रीम कोर्ट: लास्ट अटेम्प्ट वाले कैंडीडेट्स को एक और मौका दें
सुप्रीम कोर्ट ने सिविल सेवा (प्रिलिम्स) परीक्षा 2020 पर बुधवार को कहा कि 4 अक्टूबर को होने वाले ये परीक्षाएं कोविड महामारी के कारण नहीं टाली जा सकतीं। केंद्र सरकार इस पर विचार करे कि ऐसे कैंडीडेट़्स को एक और मौका दिया जा सकता है जिनके पास अपना आखिरी अटेम्प्ट बचा है और जो कोरोना के कारण परीक्षा में नहीं बैठ पाएंगे। -पढ़ें पूरी खबर
5. अंगदान करेंगे अमिताभ बच्चन, ट्विटर पर लिखा- मैं अंगदान का संकल्प ले चुका हूं
अमिताभ बच्चन ने 77 साल की उम्र में अंगदान करने का संकल्प लिया है। इस बात की जानकारी उन्होंने मंगलवार देर रात ट्वीट कर दी। उन्होंने एक फोटो भी शेयर किया है, उनके कोट पर हरे रंग का रिबन लगा है, जो कि अंगदान के संकल्प का प्रतीक है। बच्चन ने अपने ट्वीट में लिखा, "मैं अंगदान का संकल्प ले चुका हूं...इसकी पवित्रता दिखाने के लिए हरे रंग का रिबन लगाया है।" -पढ़ें पूरी खबर
6. रिया को हो सकती है 10 से 20 साल की जेल
ड्रग्स मामले में मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट की सुनवाई में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के एडीजी अनिल सिंह ने कहा था कि रिया चक्रवर्ती का सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में छोटा सा कनेक्शन है। अब एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दैनिक भास्कर से कहा- रिया और शोविक के केस में डेढ़ किलो चरस जब्त की गई है। उन्हें 10-20 साल तक की सजा हो सकती है। -पढ़ें पूरी खबर
7. आज से होंगे 9 अहम बदलाव: बीमा पॉलिसी में अब ज्यादा बीमारियां कवर होंगी
1 अक्टूबर से देशभर में कई नियमों में बदलाव होने जा रहे हैं। वाहन चलाने वालों और विदेश में पैसा भेजने वालों से लेकर गूगल पर मीटिंग करने वालों तक के लिए इन बदलावों को जानना जरूरी है। इनमें गाड़ी चलाते हुए मोबाइल के इस्तेमाल का भी जिक्र है और मिठाई खरीदते समय ध्यान रखने वाली बात का भी। -पढ़ें पूरी खबर
अब 1 अक्टूबर का इतिहास
1854: भारत में डाक टिकट का प्रचलन प्रारंभ हुआ।
1949: चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन आरंभ हुआ।
1967: भारतीय पर्यटन विकास निगम की स्थापना हुई।
आखिर में जिक्र मशहूर उर्दू शायर मजरूह सुल्तानपुरी का। आज ही के दिन 1919 में उनका जन्म हुआ था। पढ़िए उन्हीं का एक मशहूर शेर....
बिहार आबादी के लिहाज से देश का तीसरा बड़ा राज्य है। मुस्लिम आबादी भी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के बाद यहां सबसे ज्यादा है। प्रदेश की 243 सीटों में से 38 ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर 20% से ज्यादा हैं। ये वोट महा गठबंधन का परंपरागत वोट बैंक कहे जाते हैं। लेकिन, जदयू, लोजपा जैसे एनडीए के दलों को भी मुस्लिम वोट मिलता है। इस चुनाव में मुस्लिम वोटर किस तरफ जाएगा ये तो 10 नवंबर को पता चलेगा। लेकिन,पिछले चुनावों में मुस्लिम वोटर किसके साथ रहा है और कितने मुस्लिम विधायक बन रहे हैं, आइए जानते हैं...
पिछली बार 23 मुस्लिम विधायक चुने गए थे
2015 के चुनाव में 23 मुस्लिम विधायक चुनकर आए थे। 2000 के चुनावों के बाद ये पहली बार था, जब इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम विधायक जीते थे। 2000 के चुनाव में 29 मुस्लिम विधायक चुने गए थे।
2015 में सबसे ज्यादा 11 मुस्लिम विधायक राजद से थे। कांग्रेस के 27 विधायकों में से 6, जदयू के 71 में 5 मुस्लिम विधायक बने। भाजपा के 53 में से एक भी विधायक मुस्लिम नहीं है।
1985 में सबसे ज्यादा मुस्लिम विधायक जीतकर आए थे
1951 में बिहार में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए। उस वक्त यहां 276 सीटें होती थीं। उस वक्त कुछ सीटों पर एक से ज्यादा विधायक भी चुने जाते थे। 1951 में कुल 330 विधायक चुने गए थे, जिनमें से 24 मुस्लिम थे।
उसके बाद 1957 में चुनाव हुए, जिसमें 319 विधायकों में से 25 मुस्लिम थे। 1962 में 21 मुस्लिम विधायक जीते। सबसे ज्यादा 34 मुस्लिम विधायक 1985 के चुनाव में चुनकर आए थे। जबकि, सबसे कम 16 मुस्लिम विधायक अक्टूबर 2005 के चुनाव में आए।
6 साल में तीन चुनाव, किस तरफ गए मुस्लिम वोट?
पिछले 6 साल में बिहार में तीन चुनाव हो चुके हैं। जिनमें 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव और 2015 का विधानसभा चुनाव है। तीनों ही बार ज्यादातर मुस्लिम वोट राजद के साथ गए।
2014 का लोकसभा चुनावः सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे में आया था कि इस चुनाव में 60% से ज्यादा मुस्लिम वोट (ओबीसी मुस्लिम भी शामिल) राजद-कांग्रेस गठबंधन को मिले थे। नीतीश की जदयू को 21% मुसलमानों ने वोट किया। जबकि, भाजपा को मुसलमानों ने पूरी तरह से खारिज कर दिया।
2015 का विधानसभा चुनावः इस चुनाव में राजद-कांग्रेस और जदयू के महा गठबंधन को मुसलमानों के 77.6% वोट मिले थे। जबकि, भाजपा और उसके सहयोगियों को महज 7.8% वोट मिले।
2019 का लोकसभा चुनावः पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में एनडीए (भाजपा+जदयू+लोजपा) बिहार की 40 में से 39 सीटें जीतने में कामयाब रहा था। सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे के मुताबिक, इस चुनाव में महा गठबंधन (राजद+कांग्रेस+हम+वीआईपी+रालोसपा) को 77% से ज्यादा मुस्लिम वोट मिले थे, जबकि एनडीए को सिर्फ 6% मुसलमानों ने वोट किया।
बिहार के सहरसा जिले में एक गांव पड़ता है। नाम है पनगछिया। इस गांव में 26 जनवरी 1956 को एक लड़के का जन्म होता है। उसके दादा राम बहादुर सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे। ये लड़का जब 17 साल का था, तब बिहार में जेपी आंदोलन शुरू होता है और यहीं से उसके राजनीतिक करियर की शुरुआत भी।
आपातकाल के बाद जब जनता पार्टी की सरकार बनी, तो 1978 में उस समय के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई सहरसा आए थे। उस समय इस 22 साल के लड़के ने उन्हें काले झंडे दिखाए।
कहते हैं कि बिहार की राजनीति दो चीजों पर चलती है। पहली है जाति और दूसरी है दबंगई। इस लड़के ने इन दोनों का ही सहारा लेकर राजनीति में कदम रखा। इस लड़के की इतनी बात हो चुकी है, तो अब नाम भी जान ही लीजिए। उसका नाम है आनंद मोहन सिंह।
बिहार की राजनीति के बाहुबली नेता आनंद मोहन। जो इस वक्त एक डीएम की हत्या के मामले में सजा काट रहे हैं। इनकी पत्नी और पूर्व सांसद लवली आनंद हाल ही में राजद में शामिल हुई हैं।
1983 में तीन महीने जेल में गुजारे, 1990 में चुनावी राजनीति में उतरे
80 के दशक में बिहार में आनंद मोहन सिंह बाहुबली नेता बन चुके थे। यही वजह थी कि उन पर कई मुकदमे भी दर्ज हुए। 1983 में पहली बार तीन महीने के लिए जेल जाना पड़ा। जेल से आने के बाद उन्होंने चुनावी राजनीति में कदम रखा।
1990 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए। आनंद मोहन ने जनता दल के टिकट पर महिषी से चुनाव लड़ा और कांग्रेस के लहतान चौधरी को 62 हजार से ज्यादा वोट से हरा दिया।
ये वो समय था जब देश में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की गई थीं। इन सिफारिशों में सबसे अहम बात थी सरकारी नौकरियों में ओबीसी को 27% का आरक्षण देना। जनता दल ने भी इसका समर्थन किया।
लेकिन, आनंद मोहन ठहरे आरक्षण विरोधी। उन्होंने 1993 में जनता दल से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई, जिसका नाम ‘बिहार पीपुल्स पार्टी’ यानी बीपीपी रखा। बाद में समता पार्टी से हाथ मिला लिया।
डीएम की हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए, पहले नेता जिन्हें मौत की सजा मिली थी
जिस समय आनंद मोहन ने अपनी चुनावी राजनीति शुरू की थी, उसी समय बिहार के मुजफ्फरपुर में एक नेता हुआ करते थे छोटन शुक्ला। आनंद मोहन और छोटन शुक्ला की दोस्ती काफी गहरी थी।
1994 में छोटन शुक्ला की हत्या हो गई। आनंद उनके अंतिम संस्कार में भी पहुंचे। छोटन शुक्ला की अंतिम यात्रा के बीच से एक लालबत्ती की गाड़ी गुजर रही थी, जिसमें सवार थे उस समय के गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया।
लालबत्ती की गाड़ी देख भीड़ भड़क उठी और जी कृष्णैया को पीट-पीटकर मार डाला। जी कृष्णैया की हत्या का आरोप आनंद मोहन पर लगा। आरोप था कि उन्हीं के कहने पर भीड़ ने उनकी हत्या की। आनंद की पत्नी लवली आनंद का नाम भी आया।
आनंद मोहन को जेल हुई। 2007 में निचली अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुना दी। आनंद मोहन देश के पहले पूर्व सांसद और पूर्व विधायक हैं, जिन्हें मौत की सजा मिली।
मौत की सजा को उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी। पटना हाईकोर्ट ने दिसंबर 2008 में मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। बाद में वो सुप्रीम कोर्ट गए। सुप्रीम कोर्ट ने भी जुलाई 2012 में पटना हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। आनंद मोहन अभी भी जेल में ही हैं।
जेल में थे, लेकिन चुनाव जीतते रहे
1996 में लोकसभा चुनाव हुए। उस वक्त आनंद मोहन जेल में थे। जेल से ही उन्होंने समता पार्टी के टिकट पर शिवहर से चुनाव लड़ा। उस चुनाव में उन्होंने जनता दल के रामचंद्र पूर्वे को 40 हजार से ज्यादा वोटों से हराया।
1998 में फिर उन्होंने शिवहर से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार राष्ट्रीय जनता पार्टी के टिकट पर। ये चुनाव भी उन्होंने जीत लिया। 1999 और 2004 के लोकसभा चुनाव में भी आनंद मोहन खड़े हुए, लेकिन हार गए।
खुद तो राजनीति में थे, पत्नी को भी लाए
आनंद मोहन का नाम उन राजनेताओं में आता है, जो अपनी पत्नी को भी राजनीति में लेकर आए। आनंद मोहन ने 13 मार्च 1991 को लवली सिंह से शादी की। लवली स्वतंत्रता सेनानी माणिक प्रसाद सिंह की बेटी हैं।
शादी के तीन साल बाद 1994 में लवली आनंद की राजनीति में एंट्री उपचुनाव से हुई। 1994 में वैशाली लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए, जिसमें लवली आनंद यहां से जीतकर पहली बार संसद पहुंचीं।
बिहार में लवली आनंद को लोग भाभीजी कहकर बुलाते हैं। लोग बताते हैं कि जब भाभीजी रैली करने आती थीं, तो लाखों की भीड़ इकट्ठा होती थी। इतनी भीड़ तो आनंद मोहन की रैलियों में भी नहीं आती थी। बिहार की राजनीति को करीब से देखने वालों का कहना है कि लवली आनंद की रैलियों में भीड़ देखकर उस समय लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जैसे सरीखे नेता भी दंग रह जाते थे।
हालांकि, लवली आनंद की रैलियों में आने वाली भीड़ वोटों में तब्दील नहीं हो पाती थी। जब वोटिंग होती थी, तो लवली आनंद की हार ही होती थी।
लवली पार्टियां बदलती रहीं, लेकिन जीत न सकीं
आनंद मोहन और लवली आनंद के बारे में कहा जाता है कि जितनी तेजी से लोग कपड़े नहीं बदलते थे, उतनी तेजी से तो ये पार्टियां बदल लेते थे।
लवली आनंद पहली बार 1994 में उपचुनाव जीतकर सांसद बनी। उस समय उन्होंने बिहार पीपुल्स पार्टी से चुनाव लड़ा था। उसके बाद 1999 के लोकसभा चुनाव में भी वैशाली से ही खड़ी हुईं, लेकिन हार गईं।
2009 का लोकसभा चुनाव लवली ने कांग्रेस के टिकट पर शिवहर से लड़ा, लेकिन हार गईं। इस बीच 2004 में बिहार पीपुल्स पार्टी का मर्जर कांग्रेस में भी हो गया। 2010 में बिहार विधानसभा चुनाव में लवली कांग्रेस के टिकट पर ही आलम नगर से खड़ी हुईं, लेकिन ये चुनाव भी हार गईं।
बाद में कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए लवली आनंद सपा में शामिल हो गईं। 2014 के लोकसभा चुनाव में लवली सपा के टिकट पर शिवहर से फिर लड़ीं, लेकिन हार गईं। 2015 के विधानसभा चुनाव में वो जीतन राम मांझी की पार्टी हम (सेक्युलर) से शिवहर से खड़ी हुईं, लेकिन फिर हार गईं।
अब चुनाव की तारीखें आने के बाद लवली आनंद राजद में शामिल हो गई हैं। क्योंकि, वो हमेशा शिवहर से ही लड़ती रही हैं और उनके पति आनंद मोहन भी शिवहर से सांसद रह चुके हैं, इसलिए माना तो यही जा रहा है कि इस बार भी वो शिवहर से ही लड़ सकती हैं। देखते हैं पार्टी बदलने का इस बार क्या नतीजा निकलता है?
इस वीडियो में मैं थोड़ा ज्यादा गुस्से में आ गया, एक दो बार गला भी भर आया है😢! पर आप सब मेरे चाहने वालों से, साहित्य से, भाषा से, उसकी मर्यादा से मैं माफ़ी नहीं मांगना चाहता ! यह जनबोधी कविता, यह ग़ुस्सा मेरे वंश की परम्परा है ! जिन्हें बुरा लगा हो वे मुझे गरियाने के लिए स्वतंत्र हैं 😢🙏 ।
उपनिषद भी कहता है कि कूपमंडूक की तरह अब भी अगर हम इस अंधियारी कोठरी से बाहर नहीं निकले तो धीरे-धीरे इस अनाचारी असुर लोक के ऐसे अंधकार में प्रवेश कर जाएंगे जो स्वयं हमारे विनाश का कारण बनेगा 👎। “असूर्य नाम ते लोकाः अंधे तमसावृताः।।”
उन्नीस सौ बासठ की चीन से लड़ाई के वक्त अपनी जरूरी जिम्मेदारी से बेखबर अपनी ही सरकार से अपनी कविता “परशुराम की प्रतीक्षा” में जब राष्ट्रकवि दिनकर जी ने सवाल पूछा था तो एक पंक्ति लिख दी थी, “छागियो करो अभ्यास रक्त पीने का !”
अपनी डायरी में दिनकर जी ने लिखा है कि मुझे एक शालीन कवि होने के नाते रक्त पीने जैसी बात शायद नहीं लिखनी चाहिए थी पर मैंने इसलिए लिख दी है ताकि आने वाले कल में इतिहास याद रखें कि जब सब सरकारी सरोकारी लोग मौन थे तो इस देश के एक कवि को इतना गुस्सा आया था कि उसने रक्त पी जाने जैसी कामना कर डाली थी !
🇮🇳😢 "कब तक मौन रहोगे विदुरों? कब अपने लब खोलोगे ? जब सर ही कट जायेगा तो किस मुंह से क्या बोलोगे..?”
वीडियो में कुमार विश्वास ने लगातार 19 मिनट तक हाथरस रेप केस को महाभारत की कथा और भारत की वर्तमान स्थिति से जोड़ा और नेताओं को जमकर कोसा। कुमार ने सवाल उठाए कि इतना बड़ा हादसा होने के बाद भी लोग सवाल क्यों नहीं उठा रहे?
बकौल कुमार -
हर बार की तरह शुरुआत करते समय जय हिंद कहने में समस्या है। क्योंकि, हिंद भी अगर सुनता होगा और देश भी कभी सुनता होगा तो वो भी आपसे पूछता हाेगा कि मेरी जय कहने का तुम्हें अधिकार है या नहीं। जब बचपन में मैं महाभारत की पूरी कहानी अपनी दादी से सुनी थी, पिता से सुनी थी तो अक्सर सोचता था कि इतने नीतिज्ञ, इतने पढ़े-लिखे इतने विराट व्यक्तित्व के लोग एक ही सभाग्रह में उपस्थित थे। जहां चाहे द्वेष था, वैमनस्य था, ईर्ष्या थी, दोनों दलों के लोगों में एक-दूसरे के प्रति घृणा थी। ऐसा क्या हुआ होगा कि एक कुलवधु, जो बड़े आदर स्नेह के साथ उस परिवार में आई हो। जहां उसने भीष्म के चरण छुए हों, जिसने गुरुवर द्रोणाचार्य की पूजा की हो, महात्मा विदुर में पिता दिखाई दिए हों, जिसमें दुर्योधन में अपना देवर दिखाई दिया हो। जिसमें कृपाचार्य में अपना रिश्तेदार दिखाई दिया हो। उस पूरे परिवार में पूरे वंश में चाहे कितनी भी घृणा थी, कितना भी द्वेष हो, लेकिन ऐसा कैसे हो हुआ कि स्त्री को बालों से खींचकर सभाग्रह में लाया गया और सबने उसका चीरहरण किया।
सबसे बड़ी बात ये है कि कोई इस पर बोला नहीं। जिन लोगों ने उसे दांव पर लगाया वो तो अपराधी थे ही। लेकिन, मुझे उन लोगों पर दुख नहीं आता था, मुझे गुस्सा आता था भीष्म पर, द्रोणाचार्य पर, गुस्सा आता था कृपाचार्य पर। फिर मेरी छाती चौड़ी होती थी महात्मा विदुर के लिए। कि कोई एक आदमी ताे है जो खड़ा होकर धृतराष्ट्र से पूछ रहा है कि मेरी सिंहासन के प्रति पूरी निष्ठा है, लेकिन ये सवाल तो पूछूंगा ही कि आखिर ये हो क्या रहा है?
जिस समय विदुर सवाल पूछ रहे थे तो दुर्याेधन के चमचों ने उन्हें हस्तिनापुर का विद्रोही बताया था। और यह चमचों की छाप होती है कि अपने दुर्योधनों को बचाने के लिए और धृतराष्ट्रों को बचाने के लिए उनके अंधेपन को उस देश के ऊपर मढ़ देते हैं और कह देते हैं कि आप देश के खिलाफ जा रहे हैं। मैं बार-बार कहता हूं कि नंद मगध नहीं है। मगध था, है और रहेगा। भारत था, है और रहेगा। सरकारें आएंगी और जाएंगी, लेकिन ये देश रहेगा।
महाभारत में सवाल नहीं पूछा गया। लेकिन हमारी कविता ने कहा- अधिकार खोकर बैठे रहना, ये महादुष्कर्म है। न्यायार्थ अपने बंधकों को भी दंड देना धर्म है। इस हेतु ही तो कौरवों-पांडवों का रण हुआ, जो भव्य भारतवर्ष के कल्पांत का कारण हुआ।
बेटियों की, कुलवधुओं की, बहनों की चीखों पर खामोश होने जाने वाले हस्तिनापुर अक्सर खंडहर में बदल जाते हैं। लाशों पर रोने वाला कोई नहीं बचता। और ये जो पिछले दो दिन से देख रहा हूं कि सरकारें और सत्ताएं और उनका समर्थन करने वाले लोग, मैं आप सबसे प्रार्थना करता हूं कि आप किसी भी पार्टी के हों। उसके पूरे अच्छे से भक्त बनकर रहिए। चमचे बनकर रहिए। समर्थक बनकर रहिए। अगली बार भी इन्हें ही वोट दे दीजिए। पर क्या वोट देने से सवाल पूछने का अधिकार खत्म कर दिया है।
सवाल नहीं पूछेंगे तो ये अहंकारी हो जाएंगे, इन्हें लगेगा कि सब ठीक है। आप सबसे कहता हूं कि अपनी पार्टी से सवाल पूछिए। उन महिलाओं से सवाल पूछिए, जो बहुत ही सिलेक्टिव अप्रोच दिखाती हैं। उन जया बच्चन से सवाल कीजिए, जो आजम खान के अधोवृद्ध पर टिप्पणी करने पर चुप रह जाती हैं और मुंबई में कुछ होता है तो संसद में उसके खिलाफ बोलती हैं। स्मृति ईरानी से सवाल कीजिएगा कि जो हैदराबाद की बेटी पर तो आंसू बहाती हैं, लेकिन उन्नाव में उनका विधायक बिटिया के साथ दुष्कर्म कर उसे मारने की कोशिश करता है तो चुप रह जाती हैं। चिन्मयानंद पर चुप रह जाती हैं। बहनों, बेटियों, मांओं से कह रहा हूं कि आप सब पूछिए कि ये लोग चुप क्यों हैं?
इसलिए इस बिके हुए समय में जब सब बिके हुए हैं, आप और हम बचें हैं सामान्य नागरिक बोलेंगे तो सरकारें सुनेंगी। इनकी औकात नहीं है। अन्ना हजारे ठीक कहते थे, इनकी नाक दबाओ तो मुंह खुलता है। इनकी नाक दबाइए, इनका मुंह खुलेगा। आखिर में गुस्से में ऐसी कोई बात की हो जो आपको बुरी लगी तो क्षमा कीजिएगा। लेकिन बहुत कष्ट है। एक कवि हबीब जालिब पाकिस्तान पंजाब से थे। उन्होंने एक मुशायरे में जिया उल हक के वक्त में एक नज्म पढ़ी थी। तो वो नज्म पढ़ना शुरू की तो नीचे से किसी शायर ने उनका पजामा खींचा और कहा कि अभी वक्त नहीं है। तो उन्होंने कहा कि मैं वक्त देखकर तेवर बदलने वाला शायर नहीं हूं। उन्होंने कहा-
दीप जिस का महल्लात ही में जले
चंद लोगों की ख़ुशियों को ले कर चले
वो जो साए में हर मस्लहत के पले
ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
थोड़े दिनों के लिए, कुछ सालों के लिए दलित, हिंदू-मुस्लिम, ठाकुर बनिया, इन सब विमर्श से बाहर आइए, और देश का विमर्श संभालिए। बहुत मुश्किल वक्त है। फिक्र कर सकें तो बहुत अच्छा है और न कर सकें तो एक हजार साल में गुलामी गई है। फिर आपसे भी सवाल पूछा जाएगा आने वाले कल में..
दुनिया कोरोनावायरस से जूझ रही है। हमने साल 2020 का आधे से ज्यादा वक्त संक्रमण के डर में गुजार दिया है। इसी महामारी के दौरान हम पहली बार वर्ल्ड वेजिटेरियन डे भी मना रहे हैं। कोरोना की शुरुआत में कहा जा रहा था कि यह चमगादड़ों के जरिए फैला। बाद में इसमें पेंगोलिन का नाम भी शामिल हुआ।
हालांकि, यह जानना जरूरी है कि क्या मांस खाने की आदत इंसान के लिए जानलेवा भी बनी हुई है। वैज्ञानिक इस बात की चेतावनी देते हैं कि कोरोनावायरस के बाद भी हमें कई महामारियों का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में हमें जानवरों से फैलने वाली बीमारियों पर गौर करने की जरूरत है।
4 में से 3 नए संक्रमण जानवरों से आते हैं
सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, हम रोज कई तरह से जानवरों के संपर्क में आते हैं, लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि जानवरों में रहने वाले कुछ जर्म्स आपको बीमार भी कर सकते हैं। जानवरों के जरिए इंसानों तक पहुंचने वाले जर्म्स से होने वाली बीमारियों को जूनोटिक बीमारी कहते हैं। इन जर्म्स के कारण मौत भी हो सकती है।
सीडीसी के अनुसार, जूनोटिक बीमारियां काफी आम होती हैं। वैज्ञानिकों ने यह अनुमान लगाया है कि 10 में से 6 से ज्यादा संक्रमण जानवरों के जरिए इंसानों में फैल सकती है। इसके अलावा हर 4 नए या उभरते संक्रामक रोगों में से 3 जानवरों से आता है। यह जर्म्स खाने की वजह से भी फैल सकते हैं।
आपके नॉन वेज खाने के कारण लोग भूखे रहते हैं
पेटा के मुताबिक, भोजन के लिए जानवरों को पैदा करना या पालना काफी खराब है, क्योंकि जानवर ज्यादा अनाज खाकर थोड़ा मीट, डेरी प्रोडक्ट या अंडे उपलब्ध कराते हैं। वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि जानवरों को एक किलो मांस के लिए 10 किलो तक अनाज खिलाना पड़ता है।
वर्ल्ड वॉच इंस्टीट्यूट के अनुसार, दुनिया में जहां हर 6 में से 1 व्यक्ति रोज भूखा रहता है। ऐसे में मीट का प्रोडक्शन करना अनाज का गलत उपयोग होता है। अगर अनाज का इस्तेमाल सीधे इंसान ही करे, तो यह ज्यादा असरदार होगा।
पेटा की वेबसाइट बताती है कि प्लांट बेस्ड डाइट दुनिया में भुखमरी को खत्म कर सकती है। 2050 तक अनुमानित 900 करोड़ लोगों के लिए धरती पर पर्याप्त खाना होगा। हालांकि, ऐसा तभी मुमकिन होगा, जब अनाज का 40% उत्पादन भोजन के लिए पाले गए जानवरों के बजाए सीधे इंसानों के ही काम आए।
इसके अलावा दुनिया के कई हिस्से पानी की कमी से जूझ रहे हैं। ऐसे में मीट खाना उन लोगों की परेशानी और बढ़ा सकता है। पेटा इंडिया के अनुसार, एक शुद्ध वेजिटेरियन भोजन के लिए रोज 1137 लीटर पानी की जरूरत होती है, लेकिन मीट आधारित भोजन के लिए रोज 15 हजार लीटर से ज्यादा पानी की जरूरत होती है।
कई बीमारियों का कारण भी है मांसाहार
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुमान लगाया है कि हर साल जूनोसिस के कारण करीब 100 करोड़ लोग बीमारियों का शिकार होते हैं और इनमें से लाखों लोग अपनी जान गंवा देते हैं। पेटा के मुताबिक, आपकी थाली में शामिल मीट, डेरी प्रोडक्ट्स और अंडों के कारण आप दिल की बीमारियों, मोटापा, कैंसर, डायबिटीज और यहां तक कि नपुंसक भी हो सकते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया है कि वेजिटेरियन डाइट लेने वाले लोगों में कुछ तरह कैंसर की संभावना 50% तक कम हो जाती है।
अगर आप भी वेजिटेरियन डाइट अपनाना चाहते हैं तो यह कुछ टिप्स मददगार हो सकती हैं....
मोटिवेट रहें: अगर आपने अपनी प्लेट से नॉन वेज डाइट को हटाना चाहते हैं, तो आपको इसके लिए अच्छे कारण की जरूरत होगी। यह कारण ही आपको वेज डाइट पर रहने के लिए मोटिवेट करेगा। ऐसे में पहले यह पता कर लें कि आप नॉनवेज क्यों छोड़ना चाहते हैं।
अच्छी रेसिपी तलाशें: नॉन वेज छोड़ने के कारण हो सकता है कि आप स्वाद को लेकर परेशान रहें। ऐसे में अच्छी वेजिटेरियन रेसिपी आपकी मदद कर सकती हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि आप एक साथ कई किताबें खरीद लें। इसके लिए आप इंटरनेट की मदद ले सकते हैं। एक-एक कर रेसिपी बनाने के कारण आपकी प्लेट में नयापन होगा और स्वाद भी बना रहेगा।
धीरे-धीरे नॉन वेज छोड़ें: वेजिटेरियन डाइट की तरफ जा रहे हैं और नॉनवेज एकदम नहीं छोड़ पा रहे हैं तो धीरे-धीरे अपनी डाइट में वेज की मात्रा बढ़ाएं। हर हफ्ते नई वेज रेसिपी इस काम में आपकी मदद कर सकती है। नॉन वेज छोड़ने की शुरुआत रेड मीट से करें। इसके बाद आने वाले हफ्तों में दूसरे तरह के मांसाहार को भी पूरी तरह बंद कर दें।
नया डाइट प्लान बनाएं: आप जो भी खाना रोज खाते हैं, उसकी एक लिस्ट तैयार करें। इस लिस्ट में आपकी प्लेट की हर जरूरी चीज को शामिल करें। इसके बाद देखें कि आपकी पुरानी नॉन वेज डाइट के वेज विकल्प क्या हो सकते हैं। नए विकल्पों की मदद से नई लिस्ट तैयार करें, जिसमें केवल वेज डाइट शामिल हो।
जंक फूड से बचें: वेजिटेरियन डाइट शुरू करने से आपको जंक फूड खाने का लाइसेंस नहीं मिल जाता है। हो सकता है कि नॉन वेज नहीं खाने के कारण जंक फूड की तरह ज्यादा अट्रैक्ट हो जाएं। अगर ऐसा हो रहा है तो अपनी डाइट में फलों और सब्जियों की मात्रा को बढ़ा दें। इसके अलावा साबुत अनाज, बीन्स, नट्स, सोया प्रोटीन और दूसरे पोषण आपकी मदद कर सकते हैं।
दूसरे देशों के खाने का स्वाद: वेजिटेरियन बनने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपको इससे नई चीजों को ट्राय करने की प्रेरणा मिलती है। इस बात का फायदा उठाएं और इंटरनेट या रेसिपी बुक्स की मदद से नए देशों की वेज रेसिपी का स्वाद लें। इटली के पास्ता से लेकर भारत के भोजन, मसालेदार थाई भोजन से लेकर चीनी, इथियोपिया, मैक्सिको समेत कई जगहों के वेज खाने का मजा ले सकते हैं।
परिवार और दोस्तों की भूमिका: अगर आप वेजिटेरियन बनने जा रहे हैं, तो आपको परिवार और दोस्तों से इस बारे में बात करनी होगी। क्योंकि नॉन वेज बंद करने के बाद भी आप उनके साथ खाना तो खाएंगे ही। ऐसे में उन्हें इस बात की जानकारी देना आपके लिए मददगार होगा, ताकि अगली बार जब भी आप उनके साथ खाना खाएं तो आपके लिए वेज डिश मौजूद हो। कई बार लोग आपके इस फैसले को नहीं समझेंगे, लेकिन बिना बहस किए उन्हें अपनी बात समझने के लिए कहें।
मजा लें: यह सबसे ज्यादा जरूरी है कि आप अपनी डाइट में आए बदलाव का मजा लें। क्योंकि, अगर आप इस बात को लेकर दुखी रहेंगे, तो आपको हमेशा यही महसूस होगा कि कुछ मिस कर रहे हैं, जबकि ऐसा नहीं है। आपने वेजिटेरियन रहना चुना है। इस बात का मजा लें और खुश रहें। लगातार अच्छा खाना खाते रहना इस काम में आपकी मदद कर सकता है।
वेजिटेरियन और वीगन में क्या फर्क है?
हमनें वेजिटेरियन और वीगन शब्द कई बार सुने हैं, लेकिन इनके मतलब को लेकर हमेशा एक कंफ्यूजन रहती है। पेटा के मुताबिक, वेजिटेरियन डाइट लेने वाले लोग किसी भी जानवर को अपनी डाइट में शामिल नहीं करते हैं। जबकि, वीगन जानवरों से मिलने वाले किसी भी चीज का सेवन नहीं करते, जैसे- अंडे, दूध, पनीर।
हालांकि, पेटा वीगन अपनाने पर ज्यादा जोर देता है। संस्था की वेबसाइट के मुताबिक, लोगों को लगता है कि डेयरी प्रोडक्ट्स में क्रूरता नहीं होती, लेकिन ऐसा नहीं है। डेयरी उत्पादों के लिए भी जानवरों को मीट की तरह ही परेशान किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में पूरी दुनिया में 1991 से हर साल एक अक्टूबर को इंटरनेशनल डे फॉर ओल्डर पर्संस यानी अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस या अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य है बुजुर्गों को उनके अधिकार दिलवाना।
14 दिसंबर 1990 को यूनाइटेड नेशंस की जनरल असेंबली ने तय किया था कि एक अक्टूबर को इंटरनेशनल डे ऑफ ओल्डर पर्संस के तौर पर मनाया जाए। इससे पहले 1982 में वर्ल्ड असेंबली ऑन एजिंग ने विएना इंटरनेशनल प्लान ऑफ एक्शन ऑन एजिंग को पास किया था। एक साल बाद यूएन की जनरल असेंबली ने भी इस पर मुहर लगाई थी।
भारत में 2007 में माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण विधेयक पारित किया गया। इसमें माता-पिता के भरण-पोषण, वृद्धाश्रमों की स्थापना, चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था और वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है।
1949 में हुई थी पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना
1912 में क्विंग राजशाही का अंत हुआ और रिपब्लिक ऑफ चीन बना। यहीं से चीन का आधुनिक इतिहास शुरू हुआ। उस समय चीन को रिपब्लिक घोषित करने वाले नेशनलिस्ट नेता थे। इस दौरान वहां कम्युनिस्ट ताकतें भी तेजी से उभरीं। 1936 में जापान के हमले के खिलाफ दोनों ने मजबूती से युद्ध लड़ा। सेकंड वर्ल्ड वॉर खत्म होने पर 1945 में जापान ने सरेंडर किया। तब कम्युनिस्ट्स और नेशनलिस्ट्स के बीच जंग छिड़ गई थी। चार साल तक देश में सिविल वॉर की स्थिति बनी रही। इस युद्ध में चीन के लाखों नागरिक मारे गए थे। 1 अक्टूबर, 1949 को माओ त्से तुंग ने कम्युनिस्ट पार्टी की जीत का ऐलान किया और संविधान में देश का नाम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना रखा।
इतिहास में आज की तारीख को इन घटनाओं के लिए याद किया जाता है...
1838: भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड ऑकलैंड ने शिमला मैनिफेस्टो जारी किया, जिसकी वजह से पहला एंग्रो-अफगान युद्ध हुआ।
1854ः भारत में डाक टिकट का प्रचलन आरंभ हुआ।
1895ः पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान का जन्म।
1945ः भारत के मौजूदा एवं 14वें राष्ट्रपति रामनाथ काेविंद का जन्म।
1953ः आंध्र प्रदेश अलग राज्य बना। यह राज्य भी अब तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में बंट चुका है।
1960ः नाइजीरिया ब्रिटेन से स्वतंत्र हुआ।
1967ः भारतीय पर्यटन विकास निगम की स्थापना हुई।
1978ः भारत में लड़कियों की शादी की उम्र को 14 से बढ़ा कर 18 और लड़कों की 18 से बढ़ा कर 21 वर्ष किया गया।
1996ः अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन द्वारा पश्चिम एशिया शिखर सम्मेलन का उद्घाटन।
1998ः श्रीलंका में किलिनोच्ची एवं मानकुलम शहरों पर कब्ज़े के लिए सेना एवं लिट्टे उग्रवादियों के बीच हुए संघर्ष में 1300 लोगों की मौत।
2002: गोवा में एक कार्यक्रम के दौरान नेवी के दो विमान फ्लायपास्ट के दौरान आपस में टकराए।
2005ः इंडोनेशिया के बाली में हुए बम विस्फोट में 40 लोगों की मौत।
2007ः जापान ने उत्तर कोरिया के खिलाफ प्रतिबंधों को अगले छह महीनों तक बढ़ाने की घोषणा की।
2008: यूएस सीनेट ने भारत के साथ परमाणु व्यापार पर लगे तीन दशक के प्रतिबंध को खत्म किया।
2016: भारत ने टेलीकॉम तरंगों की सबसे बड़ी नीलामी की। पहले दिन की बिक्री से 535.31 अरब रुपए की आय हुई।
2019: फोर्ड मोटर कंपनी और महिंद्रा एंड महिंद्रा ने कहा कि वे भारत में जॉइंट वेंचर शुरू करेंगे।
सफेद कुर्ता पाजामा, सर पर बंधा सफेद साफा, कंधे पर रखा फावड़ा। कमला को कोई दूर से क्या, पास से भी देखे तो धोखा खा जाए कि कोई पुरुष खेत में काम कर रहा है। दिल्ली से करीब 120 किलोमीटर दूर मुजफ्फरनगर के मीरापुर दलपत गांव की रहने वाली 63 साल की कमला ने अपनी जिंदगी के चार दशक मर्द बनकर खेतों में काम करते हुए गुजार दिए। एक महिला के लिए मर्द बनकर काम करना आसान नहीं था। लेकिन, जिंदगी के सामने ऐसे मुश्किल हालात थे कि उन्होंने घूंघट उतारकर सर के बाल काट लिए और पगड़ी बांध ली।
किसान परिवार में पैदा हुई कमला होश संभालते ही खेतों में काम करने लगी थीं। शादी हुई तो 17 महीने बाद ही पति की दुखद मौत हो गई। बाद में देवर के साथ उन्हें 'बिठा दिया' गया। इस रिश्ते से उन्हें एक बेटी हुई लेकिन, ये रिश्ता ज्यादा नहीं चल सका और वो अपने भाइयों के घर लौट आईं। कमला के छोटे भाई को कैंसर हो गया। दम तोड़न से पहले उन्होंने कमला से वादा लिया कि वो उनके बच्चों को पालेंगी और पत्नी का ध्यान रखेंगी।
कमला कहती हैं, भाई के दोनों बच्चे छोटे थे। कोई सहारा नहीं था। मैंने उनकी जिम्मेदारी संभाल ली और खेती का काम अपने हाथ में ले लिया। लेकिन, महिला के लिए अकेले खेत में जाकर काम करना आसान नहीं था। लोगों की नजरों से बचने के लिए मैंने मर्द का रूप धर लिया। बाल काटे और पगड़ी बांध ली।
भारत के खेतों में महिलाएं सदियों से काम करती रहीं हैं। लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस समाज में आज भी मर्दवादी नजरिया हावी है। महिलाएं खेतों पर काम करने जाती तो हैं लेकिन, अकेले नहीं, बल्कि समूहों में या परिवार के दूसरे लोगों के साथ।
लेकिन, कमला के अकेले कंधों पर जमीन जोतने-बोने और फसल की देखभाल करने की जिम्मेदारी थी। रात-बेरात खेतों को पानी देने के लिए जाना पड़ता था। मर्दवादी समाज की नजर और तानों से बचने के लिए वो मर्द ही बन गईं। कमला कहती हैं, 'मैं बेधड़क खेतों में काम करती थी। फसल को पानी देना होता था तो रात को आती थी, सुबह तक काम करके जाती थी। कभी डर महसूस नहीं हुआ। मर्दों की पोशाक ने मुझे सबकी नजरों से बचा लिया।
वो कहती हैं, 'खेत में काम कर रही एक अकेली औरत के साथ कुछ भी हो सकता था, औरत अकेली हो तो हर आंख उस पर ठहरती है। लेकिन खेत में काम कर रहे अकेले मर्द पर किसी का ध्यान नहीं जाता। कमला ने मर्द बनकर लगभग चार दशकों तक खेतों में काम किया। उन्होंने उम्र के छह दशक पार करने के बाद भी न अपना ये रूप छोड़ा है और ना ही काम करना। कमला कहती हैं कि उन्हें भाग्य ने एक के बाद एक झटके दिए, लेकिन वो कभी डगमगाई और डरीं नहीं।
वो अपने पति की मौत, ससुराल में हुए शोषण को अब याद करना नहीं चाहतीं। इस बारे में सवाल करते ही उनके आंखें पथरा जाती हैं। वो कहती हैं, मैं अब उन सब बातों को याद करना नहीं चाहती। ना ही उसका कोई फायदा है।
कमला ने अपनी पूरी जिंदगी खेतों में काम करते बिता दी। वो कहती हैं, मैं हमेशा काम में लगी रहती थी। दिन में एक वक्त खाकर काम किया। सारा दिन ईख छोलती थी। भाभी से कह देती थी कि खाना देने मत आना, घर आकर ही खाऊंगी। इन खेतों ने हमारा परिवार पाला है। कमला ने सिर्फ खेत में ही काम नहीं किया, बल्कि वो गन्ना डालने मिल भी जाती थीं और मंडी भी। वो कहती हैं, 'मैं मर्दों के बीच अकेली औरत होती थी। लेकिन लोग पहचान ही नहीं पाते थे कि मैं औरत हूं।'
कमला के इस बात की खुशी है कि उनके एक भतीजे का घर बस गया है और दूसरे की भी जल्द शादी होने वाली है। वो कहती हैं, 'मेरी जिंदगी का मकसद पूरा हो गया। भाई से जो वादा किया था, निभा दिया।' हमेशा संघर्ष करती रहीं कमला को उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचने के बाद भी सुकून नहीं है। वो जिन खेतों में काम कर रहीं थी, वो उनके भाई की संपत्ति हैं। खेतों की ओर देखते हुए बात कर रही कमला कहती हैं, 'मेरे खेत...और ये कहते-कहते उनकी जबान रुक जाती है, खुद को संभालते हुए वो कहती हैं, अब तो ये भाई के बच्चों के खेत हैं।
भारत में पारंपरिक तौर पर पिता की संपत्ति, जमीन-जायदाद भाइयों के हिस्से आती है और बहनों के हिस्से आती है ससुराल, जहां वो बाकी जिंदगी रहती हैं। लेकिन, भारत का कानून बेटियों को भी संपत्ति पर बराबर का हक देता है। कमला ने कभी अपना ये हक लेने के बारे में सोचा तक नहीं है।
अब जब उनका शरीर ढल रहा है, उन्हें अपनी आगे की जिंदगी की चिंता हैं। वो कहती हैं, 'मैं अपने लिए एक कमरा तक नहीं बना सकी। अपना सिर छुपाने के लिए मेरे पास अपनी कोई जगह नहीं है। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मुझे घर दिलाने की कोशिश की थी। लेकिन, वो काम भी कोरोना में अटक गया है। बात करते-करते कमला के चेहरे के भाव कई बार बदलते हैं। उनके चेहरे पर भाई के परिवार को पालने का सुकून दिखाई देता है तो अकेलेपन का अफसोस भी और बुढ़ापे को लेकर चिंता भी।
एक औरत जो सारी जिंदगी समाज की पाबंदियों को तोड़कर अपने दम पर जीती रही, चलते-चलते कहती हैं, 'अगर मेरे आवास के लिए कुछ हो सके तो कीजिएगा। मैं भी कोशिश कर ही रही हूं। जो भी होगा, जैसे भी होगा, एक कमरा तो बना ही लूंगी।' मैं मन ही मन इस खुद्दार औरत को सलाम करती हूं और मेरे दिमाग में कई सवाल एक साथ कौंधने लगते हैं।
'समाज कमला जैसी असली हीरो का सम्मान क्यों नहीं कर पाता है? अपना सबकुछ त्याग देने वाली मेहनतकश कमला अब उम्र के आखिरी पड़ाव पर इतना अकेला क्यों महसूस कर रही हैं? उन्हें सरकार की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के तहत कोई फायदा क्यों नहीं मिल सका है?'