आतंकी संगठन तालिबान ने पिछले हफ्ते कश्मीर मामले पर किसी भी तरह का दखल देने से इनकार किया था। इसने कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच का मसला बताते हुए कहा था कि वह दूसरे देशों के मसलों में दखल नहीं देता। भारतीय रक्षा विशेषज्ञों ने उसके इस बयान को अफगानिस्तान से उसकी बातचीत के पहले की पैंतरेबाजी बताया है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य तिलक देवेश्वर ने कहा है कितालिबान अफगानिस्तान की अशरफ गनी सरकार से बातचीत से पहले खुद को भारत की नजरों में अच्छा दिखाने की कोशिश कर रहा है।
देवेश्वर के मुताबिक, आतंकी संगठनभारत से बातचीत बढ़ाकर गनी सरकार को नीचा दिखाना चाहता है। अमेरिका के विशेष राजदूत जलमे खलिजाद ने हाल ही में भारत से अनुरोध किया था कि वह तालिबान से सीधे बात करे। हालांकि, अब तक भारत उससे किसी तरह की बात नहीं कर रहा।
तालीबन कश्मीर पर भारत की चिंता को भुनाना चाहता है
सोसाइटी ऑफ पॉलिसी स्टडीज के डायरेक्टर उदय भास्कर के मुताबिक, अगर तालिबानभारत के साथ बात करना चाहेगा तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। ऐसा लगता है कि उसका एक धरा उदारवादी रुख अपना रहा है। यह धड़ा एक तरह का अस्थाई राजनीतिक स्थानबनाना चाहता है, जिससे भारत से बातचीत शुरू हो सके। वे कश्मीर पर भारत की चिंता को भुनाने की कोशिश में है। इससे पाकिस्तान भी इस पूरे मसले में शामिल हो जाएगा।मुझे इससे डर लग रहा है क्योंकि यह संगठन आतंकवाद का पर्याय है।
‘भारत के साथ डबल गेम खेलने की कोशिश में है तालिबान’
ऑब्जर्व रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो सुशांत सरीन के मुताबिक, तालिबान ने अंतराष्ट्रीयसमुदाय के साथ डबल गेम खेला है। अब यह कुछ ऐसा ही भारत के साथ करने की कोशिश में है। यह संगठन भारत के सामने खुद को अफगानिस्तान का असली चेहरा की तरह पेश करना चाहताहै। यह दिखाना चाहता है कि अगर उसके साथबातचीत हुई तो वह भारत के मामलों में दखल नहीं देगा। हालांकि, यह मानना एक भ्रम होगा कि इसने अल कायदा और आईएस के साथ अपने सभी संबंध तोड़ लिए हैं।
क्या भारत को तालीबान से बात करना चाहिए?
सरीन के मुताबिक तालिबान पर विश्वास करना जल्दबाजी होगी। यह एक ऐसा समूह है जो पिछले 25 साल से स्कूलों, अस्पतालों, महिलाओं और बच्चों पर हमले का दोषी है। खास तौर पर इसने अफगानिस्तान के लोगों को निशान बनाया है। इस पर तब विश्वास किया जा सकेगा जब यह आतंकी संगठन की तरह बर्ताव करना बंद करे। मासूम लोगों का खून नहीं बहाने के लिए प्रतिबद्ध हो। अगर वाकई तालिबान बदल गया है तो इसे अपनी गतिविधियों से यह बताना होगा।
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