हरियाणा की वारदात है, एक मां ने सब्जी काटने के चाकू से चार नन्ही बच्चियों का कत्ल कर डाला और खुद भी मरने की कोशिश की। तड़के पिता जागा तो कमरे में बिखरे खून और मांस की लोथ के बीच अधमरी बीवी दिखी। मामला खुला तो पता चला कि पिता लड़कियां जनने के कारण सुबह-शाम बीवी को धुनता। धीरे-धीरे बात बढ़ चली और उसने अपनी ही बेटियों को बेचने की बात कह डाली। डरी हुई मां ने चौकसी बढ़ा दी। चारों को चिपटाए-चिपटाए चूल्हा-बर्तन करती रही और फिर हार मान ली। दुनिया की तंग -अंधेरी गलियां बेटियों को लील लें, इससे पहले मौत ने उन्हें लील डाला।
ये तो रही खबर। अब अपने घर की कहती हूं। नई-ब्याहता मामी की मुंह-दिखाई चल रही थी, तभी डगर-मगर चलती एक दादी आईं और अशीष देने की जगह सोने के नुस्खे बताने लगीं। पूत पाने का जादुई नुस्खा। दाईं करवट सोने से लड़के की मां बनेगी, और जो बाएं सो गई तो लड़की। टोटका सुझाने वाली दादी खुद चार-चार नर-संतानों की अम्मां थीं। यानी टोटका आजमाया हुआ होगा। सारी नई बहुएं सिर झुकाए अपनी करवटों को पक्का करती रहीं। उधर बच्चियों की मांएं माथे पर बल डाले भूल-सुधार की सोचती दिखीं।
मैं वहीं थी। बायीं करवट का नतीजा। साइंस लिया था। ताजा-ताजा क्रोमोजोम का ज्ञान बरसने को था कि तभी नई बहू पर नजर गई। गणित में मास्टर्स। कई और बहुएं ठीक-ठाक पढ़ाई वाली। लेकिन सब की सब दादी की बातों को रस लेकर सुन रही थीं। और तकरीबन सबकी आंखों में नए-नए रंगरूट जैसा कौतुक और यकीन था। मैं चुपचाप हट गई।
नर संतान की चाह आंकड़ों में भी दिखती है। देश में 1000 मर्दों के बीच 943 औरतें हैं। यानी लगभग 6.8 करोड़ औरतें मिसिंग हैं। वर्ल्ड बैंक कहता है कि औरत-मर्द आबादी का फासला आने वाले सालों में और खतरनाक होगा। यहां तक कि साल 2031 तक देश में हर 1000 मर्दों के पीछे 898 औरतें होंगी।
अमेरिका भी इस मामले में हमसे जुगलबंदी कर रहा है। गैलप (Gallup) ने साल 1941 से लेकर 2011 तक लगातार सर्वे किया और यही ट्रेंड मिला। पेरेंट्स ने माना कि अगर उन्हें एक ही औलाद पैदा करनी हो तो वे बेटा चाहेंगे। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में खुद पिताओं ने माना कि बेटियां प्यारी होती हैं, लेकिन बेटे उम्मीदें पूरी करते हैं। चीन सबसे आगे है। वहां वन-चाइल्ड पॉलिसी के बाद ज्यादातर पेरेंट्स तब तक अबॉर्शन करवाते रहे, जब तक लड़का न आ जाए। फुल स्टॉप!
नतीजा- करवट के बूते बेटा पैदा करने के नुस्खे बताने वाली दादी से लेकर गूगल तक पर टोटकों की भरमार है। फर्क इतना ही है कि नुस्खों की पोटली खोलने से पहले गूगल मासूम तरीके से बेटे-बेटी के बराबर होने का एलान करता है। उस पर मुंडी हिलाते हुए आप फटाफट आगे का आर्टिकल पढ़ डालिए। गर्भ के भीतर जमा कोशिकाएं नर या मादा किसका आकार लेंगी, ये जानने के कई देसी तरीके भी हैं। गर्भवती का चेहरा मुरझाया लगे तो घरवालों का चेहरा लटक जाता है। पेट में लड़की है। वही सुंदरता चुराती हैं।
जो हाथ रूखे दिखने लगें तो ये नमी की कमी नहीं, लड़का होने का लच्छन है। एक और है, जो मेरा पसंदीदा है- होने वाली मां अगर मर्दाना खुराक और मीठा खाने लगे तो लड़का होना पक्का। ऐसे में ठेठ सोच वाले घर में रह रही उस गर्भवती का हाल सोचें, जो चाहकर भी खट्टा न खा सके कि ये तो जनाना स्वाद है।
लड़कों से वंश चलता है। लड़का बुढ़ापे का सहारा है। लड़का चिता में आग देता है। अनगिनत वजहें हैं, जो पक्का करती हैं कि क्यों लड़का ही हो। एक और सूची है, जिसमें शुरू से आखिर तक लड़की यानी XX क्रोमोजोम को खारिज किया जाता है। इनमें से एक है- लड़की पराया धन है। मतलब धन तो है लेकिन दूसरों के लिए। खुद के लिए तो कर्ज की आमद है। कर्ज से छुटकारा पाने के ढेरों-ढेर तरीके हैं। एक पुराना तरीका है, जिसमें बच्ची को जन्म के बाद दूध की परात में औंधे सिर डाल दिया जाता था। ये तब होता था, जब अल्ट्रासाउंड वगैरा नहीं थे। वैसे भी ये काफी क्रूर तरीका है। हमें तो चाहिए वो तरीका, जिसमें इंसानियत का भरम बना रहे। लिहाजा अब अल्ट्रासाउंट में खुसपुसाते हुए सब पक्का हो जाता है।
आज से दस साल पहले हरियाणा में लिंग जांच और हत्या का खुला विज्ञापन कवितामयी भाषा में लिखा देखा था- 'आज 5000, वरना कल 5 लाख'। औरत तब तक बच्चे जनती है, जब तक एक अदद नर-संतान न पैदा कर दे। या फिर मुंह ढांपे तब तक किसी अंधेरे क्लिनिक जाती है, जब तक शरीर का निचला हिस्सा मनचाही फसल न उगा दे। बीच की फसलें बढ़ने से पहले ही जला दी जाती हैं। और अगर जमीन में खोट दिखे तो दूसरी जमीन तलाश ली जाती है।
बेटों वाली मां का चाव खुद औरत के दिल में ऐसे कूट-कूटकर भर दिया कि बेटे के साथ ही औरत निश्चिंत हो पाती है। देवरानी-जेठानी में बिनबोला खेल चलता है कि कौन पहले बेटा देगी। जो दे, ससुराल में उसका रुतबा बढ़ जाता है। कम दहेज या दबे रंग के मलाल धुल जाते हैं।
ऐसे में कोई हैरानी नहीं कि अकेले अपने यहां करोड़ों औरतें भाप बनकर गायब हो गईं। दुनिया के कई देशों में हालात इतने बिगड़े कि शादियों के लिए लड़कियों का टोटा पड़ गया। एक-एक औरत से कई मर्दों की शादी हो रही है। हाल ही में चीन ने भी मर्दों की यौन-इच्छाओं को हिंसक होने से बचाने के लिए इस रास्ते की बात कर डाली थी। हवाला दिया कि लड़कियों की कमी से सेक्स के लिए हुलसते मर्दों के पास रेप के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता!
यानी यहां भी बात हुई तो मर्दानी जरूरतों की। औरतें रहें ताकि मर्दों की इच्छाएं पूरी हो सकें। सरकार ने लिंग हत्या पर कानून नहीं बनाया। औरत-मर्द को बराबर नहीं बताया। आज विरोध हो रहा है लेकिन कोई हैरानी नहीं कि कल बड़ी आबादी इस पर मौन सहमति दे देगी।
तब क्या होगा, कभी सोचा है आपने? घर-घर गैंग-रेप होंगे, और वो भी कानूनी तरीके से। तो My Daughter, my princess कहने वाले प्यारे पिताओं, अब थम जाओ। घर का चिराग लाने की होड़ में घर फूंकना छोड़ बेटी को मजबूत बनाओ। इतना कि उसे मां बनने से पहले करवट तय न करनी पड़े। और एक बात। बेटी टॉप करे या नासा की वैज्ञानिक बने, सीना फुलाकर- 'मेरी बेटी, बेटे से कम नहीं' कहना बंद कर दें। शब्दों का फर्क जेहनियत बदल सकता है।
औरतों, तुम्हें भी कलेजा मज़बूत करना होगा। बेटे वाली मां कोई ऐसी तुर्रम खां नहीं, जो पदवी पाने को तुम अपनी कोख को मारने तक की इजाजत दे दो। उसे दुनिया में आने दो और इतना मजबूत बनाओ कि ‘पूतों फलो’ का आशीष खुद-ब-खुद बासी पड़ जाए। और जो तब भी कोई न माने तो उसे महाभारत की गांधारी की याद दिला देना, जो सौ पुत्रों की मां होकर भी निपूती रही।
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