Wednesday 22 April 2020

बिना ग्लव्स, सैनिटाइजर के सफाई में जुटे वर्कर्स, जान को दांव पर लगाने की कीमत रोजाना 186 रु.

लॉकडाउन के बाद से ही देश के अधिकांश लोग घरों में हैं, लेकिन 40 साल के राजेश अब भी आठ से दस घंटे घर के बाहर ही बिताते हैं। राजेश भोपाल नगर निगम के सफाईकर्मी हैं। हाथों पर बिना ग्लव्सके ये शहर की गंदगी साफ कर रहे हैं। न इनके पास हैंड सैनिटाइजर होता है और न ही साबुन। यूनिफॉर्म पहने हुए हैं, लेकिन उसकी हालत देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि कई दिनों से शायद धुली भी नहीं होगी। इस काम के लिए राजेश को महीनेका 5600 रुपए यानि प्रतिदिन के करीब 186 रुपए मिलते हैं। कोरोनावायरस के फैलने के बाद से भी राजेश उसी तरह सफाई का काम कर रहे हैं, जैसे पहले करते थे। सिर्फ घरों का कचरा ही नहीं उठाते बल्कि हॉस्पिटल के बाहर पड़ा मेडिकल वेस्ट भी उठाते हैं। राजेश के साथ हमें कई ऐसे सफाईकर्मी भी मिले जिनके पास ग्लव्स और सैनिटाइजर तो छोड़िए मास्क तक नहीं था।

निगम सफाईकर्मी राजेश।

कई बार इन्हीं लोगों को कोरोना संक्रमित जगहों पर भी दवा के छिड़काव के लिए ले जाया जाता है। क्या दवा छिड़काव करते वक्त अतिरिक्त सावधानी बरतते हो? ये पूछने पर सफाईकर्मी सोनू बोले कि, ग्लव्स पहनते हैं और पैर में जूते भी होते हैं। जूते हमें नगर निगम से मिले हैं। जूते कभी-कभी पहनते हैं रोज नहीं पहनते। रोज क्यों नहीं पहनते? इस सवाल के जवाब में बोले, आदत नहीं है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक देश में 5 मिलियन (50 लाख) से भी ज्यादा सैनिटाइजेशन वर्कर्स हैं। यह ऐसे लोग हैं जो गंदगी के सीधे संपर्क में आते हैं। इनके पास बचाव के न ही कोई इक्विपमेंट होते हैं और न ही कोई प्रोटेक्शन। जहरीली गैसों से घिरे होते हैं। इसकारण इनमें से कई को श्वांस रोग की समस्या भी हो गई है।

निगम सफाईकर्मी सोनू।

साहब, हमें पहले कोरोनावायरस से डर लगता था, लेकिन अब नहीं लगता। हम तो नालों में भी कूद रहे हैं। नालियों को भी साफ कर रहे हैं। घूरे के ढेर भी उठा रहे हैं और कोरोनावायरस संक्रमित इलाकों में दवा का छिड़काव भी कर रहे हैं। ये कहते हुए राजेश हंस दिए। हालांकि राजेश के माथे पर चिंता की लकीरें भी साफ नजर आ रही थीं। कोरोनावायरस के बीच ड्यूटी भी करना है। खुद को संक्रमित होने से बचाना भी है और घरवालों को भी सुरक्षित रखना है। राजेश अन्य सफाईकर्मियों की तरह हर रोज सुबह 6 बजे से मैदान पर जुट जाते हैं। इन्हें नगर निगम ने नालों की सफाई की जिम्मेदारी दी है। नालों की सफाई करने में डर नहीं लगता? ये पूछने पर बोले, नहीं सर, मैं तो मास्क और जूते पहनकर सफाई करने के लिए नालों में उतरता हूं। अब किसी न किसी को तो ये काम करना ही पड़ेगा। हमारी ड्यूटी है इसलिए हम कर रहे हैं।

पहले डर लगता था, अब नहीं लगता

निगम सफाईकर्मी अनिता।

इतने में राजेश के नजदीक ही बैठीं अनिता बोलीं कि डर तो हम लोगों को भी लगता है, लेकिन जैसे पुलिस-डॉक्टर सेवा कर रहे हैं, वैसे हम भी कर रहे हैं। अनिता भी निगम की सफाई कर्मचारी हैं, जो जोन-2 में झाडृ लगाने का काम करती हैं। आपके घर में कौन-कौन है? ये पूछने पर बोलीं, मैं और मेरे पति दोनों सफाईकर्मी हैं। घर में बच्चे हैं। मैं सुबह अपने और बच्चों के लिए खाना बनाती हूं। हम हमारा खाना बांधकर ले आते हैं। बच्चे घर में ही खाते हैं। ड्यूटी से घर पहुंचने पर बच्चों से मिलने में डर लगता है? इस सवाल के जवाब में बोलीं, हां सर लगता है इसलिए घर के बाहर ही नहाते हैं। कपड़े धोते हैं। इसके बाद ही घर के अंदर जाते हैं।

न साबुन, न हैंड सैनिटाइजर

निगम सफाईकर्मी कमला।

सफाईकर्मी कमला कहती हैं कि, हम जिस तरह से कोरोनावायरस के पहले काम कर रहे थे, वैसे ही अब भी कर रहे हैं। पहले भी सुबह 7 से दोपहर 3 बजे तक ड्यूटी होती थी, अब भी वही टाइम है। आप दिन में कितनी बार हाथ धोती हो? ये पूछने पर कमला बोलीं कि, खाना खाने के पहले हाथ धोते हैं। बाकी टाइम तो झाडृ लगाने का काम ही चलतारहता है। क्या आपके पास हैंड सैनिटाइजर या साबुन होता है? तो बोलीं, नहीं। हम पानी से ही हाथ धो लेते हैं, फिर जब घर जाते हैं, तब साबुन से अच्छे से नहाते हैं। क्या कोरोना से डर नहीं लगता? इसके जवाब में बोलीं, शुरू-शुरू में डर तो बहुत लगा लेकिन बाद में हमें डर लगना बंद हो गया।

किसी को कोरोना नहीं, इसलिए दूर नहीं रहते

सफाईकर्मी आशा।

क्या आप लोग दूर-दूर नहीं रहते? इस सवाल के जवाब में सफाईकर्मी आशा बोलीं, हम में से किसी को कोरोना नहीं है। कई लोग मास्क भी लगाते हैं। मास्क किसने दिए? बोलीं, निगम से एक बार मिले थे, वही धोकर लगाते हैं कुछ लोग। आप नहीं लगातीं? बोलीं, कभी-कभी लगा लेते हैं। बोलीं, अब बीमारी को आना होगातो आ ही जाएगी क्योंकि हम लोग तो वैसे ही सफाई का काम करते हैं। झाडृ लगाते हैं तो धूल नाक-मुंह से अंदर जाती ही है।

किसी से पानी भी नहीं मांग सकते

एमपी नजर जाने-1 में सड़क पर कचरा उठा रहे सफाईकर्मी अनिल शंकर और संतोष सुखचंद मिले। दोनों घूरे पर पड़ा कचरा उठा-उठाकर गाड़ी में डाल रहे थे। हमने हालचाल पूछे तो बोले, अभी तो भूखे-प्यासे ही काम करना पड़ रहा है, क्योंकि दुकानें सब बंद हैं। सुबह दो रोटी खाकर आते हैं, उससे ही शाम हो जाती है। कोरोनावायरस के कारण किसी से पानी भी नहीं मांग सकते। कई बार तो प्यास लगतीरहती है, लेकिन बहुत देर तक पानी ही नहीं पी पाते। बोले, पुलिसवालों को खाना मिलता है, लेकिन हम लोगों को नहीं मिलता।

कभी-कभी मास्क बदल लेते हैं
20 साल के अनिल से पूछा कि कोरोनावायरस से डर लगता है तो बोला, नहीं लगता। हम तो सफाई करते हैं। क्या मास्क बदलते हो? ये पूछने पर बोला, कभी-कभी बदल लेते हैं। एक ही मास्क है उसे धोकर पहन लेते हैं। सफाई गाड़ी के चालक सतीश यादव ने बताया कि, सफाईकर्मियों को 5600 रुपए वेतन मिलता है लेकिन बहुत लेट आता है। दस दिन हो गए अभी तक आया ही नहीं। ये सब दिहाड़ी वाले लोग हैं। एक दिन भी तनख्वाह लेट होती है तो इनका काम रुक जाता है। वेतन लेट क्यों हुआ? ये पूछने पर बोला, हमारे साहब आइसोलेशन में हैं, इसलिए शायद पैसा रुक गया। अब सब परेशान हो रहे हैं।



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Without mask, workers engaged in cleaning gloves, the cost of putting life at stake is Rs. 186 daily.


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