Tuesday, 21 April 2020

किसी ने कमरा किराए से लिया, तो किसी ने होटल को ही घर बनाया, सुबह 5 से रात 12 बजे तक काम पर लगी रहती हैं ये वीरांगनाएं

वो घर भी संभाल रही हैं औरड्यूटी भी निभा रही हैं। उन्हें अपने बच्चों की दिन-रात फ्रिक भी हैऔरकर्तव्य का अहसास भी। उनकी जिंदगी सुबह 5 बजे से शुरू होतीहै, जो रात में 12 बजे तक चलतीहै। इस दौरान ड्यूटी के साथ ही घर के भी तमाम काम उन्हें करना होते हैं। घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारियों को पूरा कर रही इन वीरांगनाओं में सेकिसी ने खुद और परिवार को सुरक्षित रखने के लिएकिराए से कमरा लिया है तो किसी ने परिवार से दूरी ही बना ली। आज हम ऐसीही महिला पुलिसकर्मियों की कहानी सुना रहे हैं,जो खाकी वर्दी में न सिर्फ कोरोनावायरस को हराने में लगी हुई हैं, बल्कि इस मुश्किल दौर में अपने परिवार को भी संभाल रही हैं।

भोपाल में महिला पुलिसकर्मियों के संघर्ष को बयां करती पांच कहानियां...

ड्यूटी पर तैनात महिला पुलिसकर्मी।

1. शीला दांगी, थाना कोतवाली

आपका मौजूदा वक्त में घर में क्या रोल है?

मेरा दिन सुबह 6.30 बजे से शुरू होता है। पहले बच्चे को नहलाती हूं। तैयार करती हूं। फिर खुद नहाती हूं। इसके बाद पीने का पानी भरना, पति और खुद का टिफिन तैयार करना, घर की साफ-सफाई करने जैसे तमाम छोटे-मोटे काम निपटाने होते हैं। हसबैंड 9 बजे ऑफिस के लिए निकल जाते हैं। उससे पहले उनका टिफिन तैयार करना होता है। मेरा बच्चा अभी 5 साल का है। उसे अकेला घर में नहीं छोड़ सकते। रोज ड्यूटी पर आते वक्त बच्चे को पति के ऑफिस में छोड़ते हुए आती हूं,क्योंकि उन्हें फील्ड में नहीं जाना होता। वे ऑफिस में ही रहते हैं। मैं फील्ड और ऑफिस दोनों जगह काम करती हूं। कई लोगों से मिलती-जुलती हूं। इसलिए बच्चे को अपने साथ नहीं ला सकती। शाम को 7 बजे ड्यूटी खत्म होने के बाद बच्चे को हसबैंड के ऑफिस से लेते हुए घर जाती हूं। क्योंकि हसबैंड 9 बजे तक घर आते हैं। घर पहुंचकर खुद सैनिटाइज होती हूं फिर बच्चे को सैनिटाइज करती हूं। यूनिफॉर्म वॉश करती हूं। बच्चे के कपड़े वॉश करती हूं। फिर लग जाती हूं रात का खाना तैयार करने में। हसबैंड के आने के बाद हम साथ खाना खाते हैं। सोते-सोते 12 बजे जाते हैं। 6 घंटे बाद दोबारा उठने की फ्रिक के साथ कुछ घंटे सुकून की नींद लेने की कोशिश करते हैं। अगले दिन फिर वही रूटीन।

ड्यूटी पर क्या रोल होता है?
मैं कोतवाली थाने में कॉन्स्टेबल हूं। कभी फील्ड में ड्यूटी करनी होती है, कभी थाने में काम करना होता है। फील्ड पर रहते हैं तो इधर-उधर जाने वालों को रोकते हैं। समझाते हैं। मास्क पहनने को बोलते हैं। कई बार लोग हम पर चिढ़ भी जाते हैं। हमें ही डांटने लगते हैं, फिर भी हम रिक्वेस्ट करते हैं कि हम ये सब आपकी भलाई के लिए कर रहे हैं। कई दफा गुस्सा भी आता है। तब हम भी लोगों पर भड़क जाते हैं। पर मकसद तो यही होता है कि कोई कोरोना का शिकार न हो। भीड़ न जमा हो बस।

2. मीरा सिंह, 23 बटालियन

घर में आपका रोल क्या होता है?
मैं सुबह 5 बजे उठ जाती हूं। क्योंकि 7 बजे मुझे ड्यूटी पर पहुंचना होता है। सुबह के दो घंटे बेहद व्यस्त होते हैं। नहाना, सफाई और खाना तैयार करना। मेरे दो बच्चे हैं। आठ साल का बेटा और तेरह साल की बेटी। दोनों पिता के साथ घर में रहते हैं। मैं खुद का टिफिन लेकर निकलती हूं। हमें भोजन तो उपलब्ध करवाया जा रहा, पर संक्रमण के डर से बाहर का खाना नहीं खाती। ड्यूटी खत्म होने पर पहले घर नहीं जाती। किराये का कमरा ले रखा है। वहां जाकर नहाती हूं। यूनिफॉर्म वॉश करती हूं। खुद को सैनिटाइज करती हूं। तभी घर जाती हूं। हमें विभाग ने होटल में रहने की सुविधा दी है, पर होटल में रहने लगी तो बच्चे का घर पर ध्यान कौन रखेगा? उसे खाना-पीना कौन देगा? इसलिए जैसे कोरोनावायरस का मामला सामने आया हमने घर के पास ही किराये का एक कमरा ले लिया था। बच्चे और पति को सुरक्षित रखने के लिए ये जरूरी था।

और काम के दौरान आपका रोल क्या होता है?
हमारी ड्यूटी सुबह 7 से दोपहर 3 बजे तक चलती है। इस दौरान कई बार लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ता है। जांच के लिए रोके जाने पर तो कई लोग धमकी देते हुए जाते हैं, कि देख लेंगे तुम्हें। महिलाएं बिना मास्क लगाए बच्चों को गाड़ी पर ले जाती हुई दिखती हैं, उन्हें रोको तो वो भी झगड़ पड़ती हैं। फील्ड पर रहने के दौरान लोगों के ऐसे बिहेवियर से कई बार गुस्सा भी आता है। लेकिन फिर लगता है कि सब तो परेशान ही हैं। हम हर किसी को समझाने का काम कर रहे हैं। तपती धूप में 8 घंटे तक खड़े रहना भी चुनौती है। हालांकि बीच-बीच में बैठ भी जाते हैं। छांव में भी चले जाते हैं, लेकिन लोगों को संभालना आसान नहीं होता। हर गाड़ी को चेक करना, समझाना, कागज देखना, मास्क पहनने को कहना, ये सब हमारी ड्यटी है।

3. सुमन सिंह, 23 बटालियन

अभी आप घर में क्या रोल अदा करती हैं?
मैं सरकारी क्वार्टर में रहती हूं। अभी घर पर अकेली ही हूं, क्योंकि मां और भाई लॉकडाउन के चलते गांव में फंस गए हैं। मैं लॉकडाउन के पहले आ गई थी। अकेले रहना ठीक भी है, लेकिन अकेले रहने की चुनौतियां भी हैं। ड्यूटी सुबह 7 बजे से शुरू होती है। इसलिए बजे उठहर खाना तैयार करती हूं। चाय और नाश्ता भी घर से ही बनाकर लाती हूं, क्योंकि बाहर तो कुछ मिल नहीं रहा। मां फोन करती रहती हैं। वो कई बार रोने लगती हैंकि कब खत्म होगा कोरोना। तुम ठीक हो कि नहीं। टेंशन में ही रहती हैं। मेरे पास आना चाहती हैं, लेकिन आ नहीं सकती। ड्यूटी से आने के बाद घर की सफाई करती हूं। खुद को सैनिटाइज करती हूं। हर रोज कपड़े वॉश करती हूं। यूनिफॉर्म में प्रेस भी करना होता है। फिर डिनर तैयार करती हूं। सोते-सोते रात के 11 बज जाते हैं। अगली सुबह फिर से वही काम।

और बाहर क्या रोल रहता है?
मेरी ड्यूटी भोपाल चौराहे पर लगी है। चेकिंग में ड्यूटी है। दिनभर लोगों को समझाने और जांच करने में निकल जाता है। कई लोग सहयोग करते हैं और नियमों का पालन करते हैं। लेकिन कुछ लोग नियमों को नहीं मानते और हम पर ही गुस्सा निकालते हैं। ऐसे लोगों से भी डील करना होता है। जब से कोरोनावायरस आया है, तब से मन में डर भी हमेशा बना हुआ रहता है। फील्ड पर पूरे समय कपड़ा बांधकर ही रहते हैं। धूप में कपड़ा बांधकर खड़े होने से पसीना-पसीना हो जाते हैं, लेकिन कपड़ा हटा भी नहीं सकते, क्योंकि ऐसे में खतरा ज्यादा है। अभी जिंदगी बहुत चुनौतीपूर्ण चल रही है।

4. सोनम सूर्यवंशी, यातायात थाना

अभी घर में क्या रोल होता है?
मैं अकेले रहती हूं। सुबह 7 बजे से दोपहर 3 बजे तक ड्यूटी रहती है। विभाग भोजन उपलब्ध करवा रहा है, पर मैं तो अपना खाना खुद बनाकर लाती हूं। ताकि संक्रमण का शिकार होने की रिस्क न रहे। सुबह 5 बजे उठ जाती हूं। नहाने के बाद खाना बनाती हूं। 7 बजे तक ड्य्टी पर आ जाती हूं। दोपहर 3 बजे ड्यूटी के बाद घर जाती हूं। पहले खुद को सैनिटाइज करती हूं। नहाती हूं। यूनिफॉर्म वॉश करती हूं। फिर घर की साफ-सफाई करके रात का खाना बनाती हूं। सोना साढ़े दस, ग्यारह बजे तक ही हो पाता है। मैंने पिछले साल ही पुलिस विभाग जॉइन किया है। मैं बैतूल की रहने वाली हूं। चिंता में घरवाले दिनभर फोन करके पूछते रहते हैं। उन्हें टेंशन रहता है कि मैं बाहर जा रही हूं। ड्यूटी पर हूं, ऐसे में किसी तरह का खतरा न हो।

और बाहर क्या रोल होता है?
26 मार्च से फील्ड ड्यूटी लगा दी गई थी। सब अलग-अलग प्वॉइंट पर चेकिंग कर रहे हैं। हमें देखना होता है कि, कौन-कहां जा रहा है। कोई फालतू तो नहीं घूम रहा। मैं मैथ्स से एमएससी करके पुलिस की फील्ड में आई हूं। लोगों को प्यार से समझाते हुए मैनेज कर लेती हूं। उन्हें बाहर निकलने के नुकसान और घर में रहने के फायदे बताती हूं। अधिकतर लोग समझ जाते हैं। कुछ लोग मिसबिहेव भी करते हैं। अब हम चालानी कार्रवाई भी शुरू कर चुके हैं। कुछ लोग अलग-अलग बहाने करके निकलने की कोशिश करते हैं। कोई कहता है पेट्रोल लेने जाना है, तो कोई कहता है राशन लेना है। हम सबसे यही रिक्वेक्ट कर रहे हैं कि घर से बाहर न निकलिए। आठ घंटे सड़क पर तपती धूप में नौकरी करना किसी चुनौती से कम नहीं होता। जब मौका मिलता है, तब थोड़ी देर के लिए बैठकर आराम कर लेते हैं।

5. पल्लवी शर्मा, एमपी नगर थाना

घर में क्या रोल होता है?

मैं सीहोर की रहने वाली हूं। भोपाल में घर-परिवार का कोई नहीं है। यहां विभाग ने होटल में रुकने की व्यवस्था की है। किसी को घर नहीं जाना है, सिर्फ लोकल में जिनके परिवार हैं, वहीं लोग घर जाते हैं। मैं होटल के कमरे में ही रहती हूं। खाना भी विभाग जो उपलब्ध करवाता है, वहीं खाती हूं। घरवाले बहुत टेंशन में हैं। वे बार-बार फोन करते हैं। चिंता करते हैं, लेकिन हमें इस कठिन समय में अपनी ड्यटी भी करना है। मां को बहुत टेंशन रहता है। वो दिन में कई बार कॉल करती हैं, लेकिन ड्यूटी मेरे लिए पहले है।

और बाहर क्या रोल होता है?
सुबह 10 से शाम 6 बजे तक ड्यूटी पर रहती हूं। सबसे बड़ी चुनौती धूप में खड़े रहना ही है। एमपी नगर थाने के सामने वाले चौराहे पर मेरी ड्यूटी होती है। यह चौराहा भी थोड़ा ढलान में है, जिस कारण यहां पैर एकदम समतल नहीं होते। इस कारण रात में सोते वक्त बहुत दर्द देते हैं। हालांकि मैं अपने काम को बहुत एन्जॉय कर रही हूं। हम खाली सड़कों के फोटो लेते हैं। चाय पीते हुए सेल्फी लेते हैं। लोगों को प्यार से समझाते हैं। कई लोग चिढ़ते भी हैं। एक डॉक्टर साहब चिढ़ गए थे कि मैं यहां से रोज निकलता हूं, आप मुझे रोज रोकती हैं। अब हम किस-किस को पहचानें। हम लोगों को रोककर उनसे पूछताछ तो करना ही है। यही हमारा काम है।



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