लोकसभा चुनाव के लिए पहली बार वाराणसी से पर्चा भरते वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “मुझे यहां किसी ने नहीं भेजा और न ही मैं स्वयं यहां आया हूं... मां गंगा ने मुझे यहां बुलाया है। मैं ऐसा ही महसूस कर रहा हूं, जैसे एक बच्चा अपनी मां की गोद में आने पर महसूस करता है।” यह तारीख 24 अप्रैल 2014 थी। मोदी ने गंगा को फिर से साफ और स्वच्छ बनाने के वादे के साथ मई में सत्ता संभाली। प्रधानमंत्री बनने के ठीक 1 महीने बाद ही उन्होंने नमामि गंगे योजना भी शुरू कर दी। लेकिन साढ़े पांच साल में 8 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च के बाद भी गंगा साफ न हो पाई। मोदी के संसद क्षेत्र वाराणसी में भी गंगा पहले की तरह मैली ही रही। हालांकि अब लॉकडाउन के 28 दिन बाद यहां स्थिति बदल गई है। सोशल मीडिया पर यहां के घाटों से साफ बहती गंगा की तस्वीरें नजर आ रही हैं। सेंट्रल और स्टेट पॉल्यूशन बोर्ड और एनजीओ का डेटा भी कुछ यही कहानी बयां कर रहा है।
संकट मोचन फाउंडेशन की स्वच्छ गंगा रिसर्च लेबोरेटरी में भी गंगा के पानी के स्तर में सुधार देखा गया है। इसके प्रेसिडेंट और बीएचयू प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र बताते हैं कि काशी के 2 घाटों पर हमने 6 मार्च और 4 अप्रैल को सैम्पल लिए थे। ताजी रिपोर्ट में नतीजे अच्छे आए हैं।
काशी के दो घाट और पैमाने |
6 मार्च की रिपोर्ट |
4 अप्रैल की रिपोर्ट |
तुलसी घाट पर बीओडी |
6.2 | 7.8 |
तुलसी घाट पर डीओ |
6.8 | 7.0 |
तुलसी घाट पर टीडीएस |
295 | 273 |
नगवा घाट पर बीओडी |
42 | 22 |
नगवा घाट पर डीओ |
3.6 | 6.0 |
नगवा घाट पर टीडीएस |
330 | 469 |
आंकड़े मिलीग्रामप्रति लीटर में
ऐसे साफ रहती है नदी
- डीओ यानी डिजाल्व आक्सीजन की मात्रा नदी के पानी में 5 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा होनी चाहिए।
- बीओडी यानी बायोकेमिकल आक्सीजन डिजाल्व की मात्रा नदी के पानी में 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होनी चाहिए।
- टीडीएस यानी टोटल डीसॉल्व सॉलिड्स की मात्रा नदी के पानी में 600 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होनी चाहिए।
मंदिर औरइंडस्ट्रियों पर ताले और शवों के जलने में आई कमी ने काशी की गंगा को फिर से निर्मल बनाया
गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण विशेषज्ञ बीएचयू प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी काशी बताते हैं कि शहर में हमेशा करीब 1 लाख तक तीर्थयात्री रहते ही हैं, इन दिनों ये भीड़ यहां से गायब है। काशी में शवों के जलने में 40 प्रतिशत से ज्यादा कमी आई है। इसके अलावा काशी अब एक इंडस्ट्रियल हब भी बन चुका है। यहां सिल्क फैब्रिक, आइवरी वर्क्स, परफ्यूम बनाने समेत कई इंडस्ट्रियां हैं। अब ये भी सभी बंद पड़ी हुई हैं। इनसे निकलने वाला कैमिकल भी गंगा में नहीं मिल रहा है। इन कारणों के चलते पानी का स्तर सुधर रहा है।
प्रोफेसर त्रिपाठी कहते हैं कि काशी में जहां-जहां नाले गिरते हैं, उन्हें छोड़कर बाकी जगह पर गंगा 30 प्रतिशत से ज्यादा स्वच्छ हुई होगी। (35 से ऊपर नालों से हर दिन 350 मीलियन लीटर गंदा पानी नालों द्वारा जाता है ।) 4 मई को जब फिर से इन घाटों का सैम्पल लिया जाएगा तो गंगा का पानी और ज्यादा साफ मिलेगा।
संगम के नजदीकदो अलग-अलग पैमानों के आधार परगंगा के पानी को पहले से बेहतर पाया गया है
यूपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने 9 अप्रैल को नदी के प्रवाह के साथ बहते पानी और उथले पानी का सैम्पल अलग-अलग जगह से इकट्ठा किया था। संगम में मिलने से ठीक पहले गंगा में बायो कैमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) 2.4 मिली ग्राम/ लीटर पाया गया। पहले यह 2.8 था। नदी के पानी का बीओडी जितना कम होता है, पानी उतना बेहतर होता है। ठीक इसी तरह नदी का फीकल कॉलीफार्म (पशू मल की मात्रा) भी घटा है। 13 मार्च को संगम के ठीक पहले गंगा का फीकल कॉलिफार्म 1300एमपीएन/100 एमएल था, वो 9 अप्रैल तक घटकर 820 एमपीएन पर आ गया।
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की 36 मॉनिटरिंग यूनिट्स में से 27 जगह पर पानी नहाने के लायक हुआ, पहले यह 3-4 यूनिट्स तक सीमित था
उत्तराखंड से निकलकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल होते हुए गंगा का पानी बंगाल की खाड़ी में गिरता है। इन पांचों राज्यों से सोशल मीडिया पर गंगा के साफ-स्वच्छ पानी की तस्वीरों की बाढ़ सी आ गई है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के डेटा में भी यही बात सामने आई है। सीपीसीबी के रियल टाइम वाटर मॉनिटरिंग डेटा के मुताबिक, गंगा नदी में अलग-अलग जगह पर स्थित 36 मॉनिटरिंग यूनिट्स में से 27 जगह पर पानी नहाने और मछली और बाकी जलीय जीवों के लिए अनुकूल पाया गया है। पहले उत्तराखंड की 3-4 जगहों को छोड़ दें तो उत्तरप्रदेश में प्रवेश के बाद से बंगाल की खाड़ी में गिरने तक नदी का पानी नहाने योग्य नहीं था।
लॉकडाउन के 28 दिन vs नमामि गंगे योजना के साढ़े पांच साल
भारत सरकार ने जून 2014 में नमामि गंगे योजना शुरू की थी। कोशिश यही थी कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ही गंगा को पूरी तरह साफ-स्वच्छ कर दिया जाए। 29 फरवरी 2019 तक पिछले साढ़े पांच सालों में गंगा की साफ-सफाई पर 8,342 करोड़ रुपए खर्च हुए। कुल 310 प्रोजेक्ट की नींव रखी गई,116 पूरे भी हो गए। 152 सीवरेज इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट भी थे, इनमें से भी 46 कम्पलीट हो चुके। लेकिन आज से एक महीने पहले तक गंगा के पानी में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं देखा गया था। हालांकि अब स्थिति बदल गई है।
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