Tuesday, 21 April 2020

रोजी छूटने पर किसी ने बच्चों का पेट भरने के लिए कई दिनों तक आधी सूखी रोटी दी, तो किसी ने पानी में आटा घोलकर पिलाया

(दिल्ली से अमित कुमार निरंजन, पटना से नीतीश कुमार सोनी और आलोक द्विवेदी)कोरोनावायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन किया गया है। लेकिन, ये लॉकडाउन उन लोगों की जिंदगी पर भारी पड़ रहा है, जो रोज कमाकर अपना और परिवार का पेट भरते हैं। किसी के लिएरोजी छूटने की वजह से बच्चों का पेट भरना मुश्किल हो गया तो किसी ने नन्हें-मुन्नों को पानी में आटा घोलकर पिलाया, क्योंकि उनके लिए दूध की व्यवस्था नहीं कर पाया।

दिल्ली: घर का मुखिया बीमार, खाने के पैसे नहीं, ऑपेरशन कैसे कराएंगे

यमुनापार के कंजासा गांव में एक परिवार है, जिसका मुखिया42 वर्षीय बसंतलाल बालू मजदूरी कर तीन बेटियों और तीन बेटों का भरण पोषण करता है। इलाके में चार माह से बालू खनन बंद है। बसंतलाल की तबीयत बिगड़ी। जांच कराने पर फेफड़े में सड़न निकली। ऑपरेशन का खर्च एक लाख रुपए बताया गया। पत्नी सुमन कहती है कि 15 दिन पहले जन्मे बेटे तक के लिए छाती में दूध नहीं आ रहा तो इसके पिता का ऑपरेशन कहां से कराएंगे। पूरा परिवार भुखमरी की कगार पर है। अब कन्हैया चैरिटेबल ट्रस्ट ने उसके परिवार के खाने-पीने की सामग्री और आर्थिक मदद का इंतजाम किया है।

हैदराबाद- आधी सूखी रोटी और पानी-शकर के घोल से भरा पेट

कर्नाटक के गुलबर्गा की रहने वाली सलीमा घर में झाड़ू-पोंछा करती थीं, लेकिन लॉट काडाउन में वो सब छूट गया।

सलीमा कुमारुल्लू और इलप्पा कुमारुल्लू कर्नाटक के गुलबर्गा के रहने वाले हैं। सलीमा नेबताया, 'मैं हैदराबाद में लोगों के घरों में झाड़ू-पोंछा करतीहूं। पति पत्थर तोड़ते हैं। दो बच्चे हैं और घर में 8 सदस्य हैं। लॉकडाउन होने पर काम बंद हो गया। सरकारी मदद भी नहीं मिली, तो मैं पहले उन घरों में गई जहां झाड़ू-पाेंछा लगाती थी। मालिक बाहर ही खाना पैकेट में बांधकर फेंक देते थे। कुछ दिन बाद वह भी मिलना बंद हो गया। पांच-छह दिन भूखे रहे। बच्चों काे शकर-पानी का घोल देकर पेट भरते थे। कुछ दिन बाद एक एनजीओ से एक किलो ज्वार का आटा मिला। उससे 12 रोटी बन गईं। सबने आधी-आधी रोटी रोज खाई। रोटी खराब न हो इसलिए उसे सुखा लेते थे और पानी के साथ खा जाते थे। अब एनजीओ ह्यूमनडेवलपमेंट सोसाइटी से मदद मिल रही है।"

पटना-बच्चों को दूध नहीं मिल पा रहा, आटे का घाेल दे रहे

संदीप कुमार और सोनी देवी ने बच्चों का पेट भरने के लिए उन्हें पानी में आटा घोलकर दिया।

ठेला चलाकर परिवार पालने वाले यमुना बिहार कॉलोनी के संदीप कुमार बताते हैं-घर में लॉकडाउन से भुखमरी की नौबत आ गई है। घर में रखा पैसा भी एक सप्ताह बाद ही खत्म हो गया। ऐसे में आटा बचा है। परिवार के सब सदस्य एक वक्त सूखी रोटी खाकर जिंदा रहे। 3 वर्षीय बेटा सचिन दूध मांगता है, तो मां सोनी देवी उसे आटे के घोल में शकर मिलाकर पिला देती हैं। 3 दिन से सभी शाम को पानी पीकर पेट भर रहे हैं।
यही हाल पुनाई चक के राजीव रजक का है। राजीव कपड़े इस्तरी कर सात बच्चों सहित 11 लोगों का पेट पालता है। एक सप्ताह तक सब्जी वालों की फेंकी सब्जी और चावल से गुजारा करते रहे। अब संस्थाओं से दिए जाने वाले भोजन पैकेट पर निर्भर हैं।

नई दिल्ली-कूड़े से फल के टुकड़े बीनकर बच्चों की भूख मिटाई

गाजियाबाद में रहने वाले अफाक ने बताया कि प्रशासन से मिला 3 किलो चावल और आटा 3 दिन ही चल पाया।

मोहम्मद अफाक गाजियाबाद के कौशाम्बी के करीब बहोआपुर गांव में झुग्गी बस्ती में रह रहे हैं। वे बताते हैं, "आम दिनों में कबाड़ बीनकर सात लोगों का पेट भरता था। लाॅकडाउन से जिंदगी बदल गई। राशन और पैसे दो-तीन दिन में खत्म हो गया। शुरुआत में प्रशासन से 3 किलो चावल और 3 किलो आटा मिला। इससे 3 दिन ही पेट भर सका। कुछ एनजीओ वाले बिस्कुट के पैकेट दे गए। इस तरह दो हफ्ते गुजर गए। चार-पांच दिन तक हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं था। हमारी झुग्गी से कुछ लोग सोसाइटियों में घरों से कूड़ा इकट्ठा करने जाते थे। उन कूड़ों में मैंने खाने के लिए खोजना शुरू किया। उसमें सेब, संतरा, केले के टुकड़े मिल जाते थे। यही खाकर बच्चों ने कुछ दिन गुजारे। अब नो टियर फाउंडेशन ट्रस्ट के हुसैन तकवी मदद कर रहे हैं।"

पटना-85 वर्षीय रमसखिया खाना लाने चलती है 4 किमी

रमसखिया चलने-फिरने से मजबूर हैं, फिर भी पेट भरने के लिए 3-4 किलोमीटर एक स्कूल तक जाती हैं, जहां से खाना मिलता है।

वर्षीय रमसखिया देवी ठीक से देख नहीं पातीं। बुढ़ापे की कमजोरी ऐसी कि खड़ी तक नहीं हो पातीं। अन्य परेशानी भी हैं,पर दवा-इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। चैरिटी के भोजन से पेट भर रहा है। इसके लिए चिलचिलाती धूप में रोज3-4किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। शेखपुरा चमरटोली निवासी रमसखिया दिन में ही शास्त्रीनगर थाने के सामने स्कूल परिसर में आ जाती है औरदोनों वक्त का खाना लेकर लाैट जाती है। अपने साथ ही पति जुगेश्वर रविदास की भी चिंता है। स्कूल की बाउंड्री की छांव में बैठी रमसखिया ने आपबीती सुनाई। बताया-3बेटियों के साथ एक बेटा है। सभी शादीशुदा हैं, पर देखभाल वाला कोई नहीं। दो साल पहले बेटा अलग हो गया। ऐसे में वृद्ध दंपती दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं।



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दिल्ली में रहने वाले 42 वर्षीय बसंतलाल बालू मजदूरी कर तीन बेटियों और तीन बेटों का पेट पालते थे। काम भी अब बंद है और बंसतलाल बीमार भी हैं।


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