जिस वक्त दुनियाभर में कोरोनावायरस अपने पैर पसारने की तैयारी कर रहा था। उस वक्त सऊदी अरब की सबसे बड़ी तेल कंपनी अरामको में एक विदेशी मज़दूर को ‘हैंड सैनिटाइजर' बनाया गया था। दक्षिण एशिया के इस शख़्स को कंपनी ने मोबाइल हैंड सैनिटाइजर की तरह ड्रेस पहनाई और इसका काम था कंपनी में आने-जाने वाले लोगों के पास जाकर खड़ा हो जाना ताकि लोग अपने हाथ सैनिटाइज कर लें।
ये तस्वीर मार्च में दुनिया के सामने आई। तस्वीर के ट्विटर पर आते ही दुनियाभर में इस कदम को नस्लवादी बताया गया। बाद में कंपनी ने बकायदा आधिकारिक बयान जारी कर इस कदम की निंदा की।
इस तस्वीर ने खाड़ी देशों में विदेशों से आने वाले कामगारों की हालत पर फिर सवालिया निशान लगाए । बंक बिस्तरोंसे ठसाठस छोटे कमरों में रहते 10 से 12 मजदूर, एक ही वॉशरूम, साफ सफाई और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और शोषण करती कई कंपनियां।
जीसीसी या गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल के 6 देशों बहरीन, कुवैत, कतर, ओमान, सऊदी अरब और यूएई में 80 लाख से ज्यादा भारतीय कामगार रहते हैं। इनमें से लगभग 50 फीसदी ब्लू कॉलर वर्कर हैं जो मज़दूरी करते हैं। 30% वो हैं जो सेमी स्किल्ड हैं। और सिर्फ 20 फीसदी प्रोफेशनल हैं जो अच्छे ओहदों पर हैं।
केरल के कन्नूर में रहने वाले असलम यूएई की राजधानी अबू धाबी में एक तीन कमरे के लॉज में रह रहे हैं। उनके साथ 13 विदेशी मजदूर भी इसी लॉज में हैं। इनमें से 5 मजदूरों की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद पूरी बिल्डिंग को क्वारैंटाइन कर दिया गया है। खाने के लिए भी असलम स्थानीय भारतीय संगठनों पर निर्भर हैं।
भीड़भाड़ वाले लेबर कैम्प से लेकर घनी आबादी वाले कमर्शियल शहरों तक, कई विदेशी मजदूर किराया बचाने के लिए रूम शेयर करते हैं। यहां रहने वाले ज्यादातर भारतीय मजदूर कंस्ट्रक्शन और क्लीनिंग से जुड़ा काम करते हैं। यहां की गर्मी और प्रदूषण की वजह से पहले से ही कई भारतीयों को सांस की बीमारी है। ऐसे में इन्हें वायरस होने का ज्यादा खतरा है।
आंकड़ों के मुताबिक, 53 देशों में रहने वाले 3 हजार 336 अप्रवासी भारतीय कोरोना संक्रमित हैं। इनमें से भी 2 हजार 61 यानी करीब 70% गल्फ देशों में हैं। वहीं 308 मजदूर ईरान के कौम और तेहरान शहर में संक्रमित हैं।
रियाद स्थित भारतीय दूतावास द्वारा 17 अप्रैल को दी गई जानकारी के मुताबिक, सऊदी अरब में संक्रमण से पांच भारतीय नागरिकों की मौत हो चुकी है। इनमें शेबनाज पाला कांडियिल, सेफवान नडामल (दोनों केरल से), सुलेमान सैयद जुनैद (महाराष्ट्र से), बदरे आलम (उत्तर प्रदेश से) और अजमतुल्लाह खान (तेलंगाना से) शामिल हैं।
कुन्हम्मद पिछले 15 साल से यूएई में हैं और यहां एक ट्रेडिंग फर्म में पीआरओ होने के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। दुबई से बात करते हुए कुन्हम्मद बताते हैं, 'यहां की सरकार ने नए सेंटर और अस्पताल तो बनाए हैं, लेकिन लेबर कैम्प अभी भी चिंता का विषय है। नौकरियां फिलहाल नहीं हैं। कुछ जगहों को छोड़कर पूरे देश में सख्त लॉकडाउन है। संचार भी बड़ी समस्या है क्योंकि लोगों के पास अब मोबाइल रिचार्ज कराने के भी पैसे नहीं हैं।'
संतोष तीन महीने पहले ही भारत से दुबई गए हैं। उनके साथ उनके दो छोटे बेटे और पत्नी भी है। संतोष कहते हैं, 'मेरे बच्चों के लिए मैं भारत से दवाई लाया था, लेकिन अब वह खत्म हो गई हैं। हम बिल्डिंग से बाहर नहीं जा सकते। मेरा वीजा भी एक्सपायर होने वाला है। मेरा काम रुक गया है। मुझे उम्मीद है कि सरकार हमारे लिए कुछ करेगी।'
फिलहाल संतोष जैसे 33 लाख भारतीयों समेत यूएई में रह रहे विदेशियों के लिये लिए कुछ राहत की खबर है कि एमिराती सरकार ने वीजा और एंट्री परमिट (जिसमें विजिटर वीजा और टूरिस्ट वीजा भी शामिल है) बग़ैर किसी जुर्माने के इस साल के अंत तक बढ़ाने का फैसला किया है। हालाँकि रिपोर्ट्स के मुताबिक यूएई ने दूसरे मुल्कों से ये भी कहा है कि बेहतर होगा कि अगर उनके नागरिक संक्रमित नहीं हैं तो उन्हें वापस बुला लें।
पिछले साल गल्फ देशों में रहने वाले भारतीय मजदूरों ने करीब 50 अरब डॉलर अपने घर भेजे थे। ये भारत को सालाना विदेशों से भारत आने वाले कुल पैसों का 40% है। कंस्ट्रकशन, टूरिज़्म ,हॉस्पिटेलिटी, रिटेल, ट्रांसपोर्ट और सर्विस जैसे सभी सेक्टरों में काम कर रहे ये भारतीय मजदूर गल्फ देशों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी हैं। लेकिन, कोविड-19 की चपेट से सब काम ठप्प पड़ा है। इनके रोजगार पर अनिश्चित्ता के घने बादल मंडरा रहे हैं। ज्यादातर लोगों को बिना सैलरी के छुट्टी पर भेज दिया है। कइयों की नौकरी भी जा चुकी है।
भारत में 3 मई तक लॉकडाउन है। लिहाजा ये वतन भी वापस नहीं आ सकते। कुछ लोग मदद के लिए ट्वीट कर रहे हैं। हालांकि, मोदी सरकार का कहना है कि वह एंबेसी या कॉन्सुलेट के जरिए विदेशों में फंसे अपने लोगों की मदद करने और उन्हें सुविधा देने का काम कर रही है। लेकिन फ़िलहाल खाड़ी समेत दूसरे बाहरी देशों से भारतीयों को वापस सरकार नहीं लाने वाली है। सुप्रीम कोर्ट ने भी एक महीने तक उन याचिकाओं पर सुनवाई करने से मना कर दिया है, जिसमें गल्फ देशों में फंसे भारतीयों को देश वापस लाने की मांग की गई है।
सुनील पिछले 13 साल से कतर में रह रहे हैं। वे यहां संस्कृति मलयाली एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं। सुनील कहते हैं कि उनके लिए अब घर का किराया देना भी मुश्किल हो गया है। हालांकि, वे कहते हैं कि कतर सरकार और कुछ भारतीय संस्थाएं यहां खाना और दवाइयां उपलब्ध करा रहे हैं। सुनील की पत्नी एक नर्स हैं और 8 मार्च को अपने बेटे के साथ भारत आई थीं। लेकिन, लॉकडाउन की वजह से वे वापस कतर लौट कर दोबारा अस्पताल ज्वाइन नहीं कर पा रही हैं।
वैसे ज्यादातर गल्फ देशों ने कोरोनावायरस को रोकने के लिए हरसंभव प्रयास किए हैं। यहां के देशों में फ्लाइट बंद हैं। भीड़भाड़ वाली जगहों को बंद कर दिया गया है। कर्फ्यू लगाया गया है। उमराह जैसे धार्मिक कार्यक्रमों को भी बंद कर दिया गया है।
बहरीन और यूएई में लेबर कैम्प में रहने वाले मजदूरों को स्कूलों या खाली बिल्डिंगों में शिफ्ट किए जा रहे हैं। लेकिन, उसके बाद भी जीसीसी मुल्कों में अब तक 17 हजार से ज्यादा पॉजिटिव केस हो चुके हैं जिनमें अकेले सऊदी में ही कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 4 हजार 500 है। सऊदी के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. तौफिक अल-रबीयाह ने माना है कि यहां कोरोना के ज्यादातर मामले मजदूरों और भीड़भाड़ वाली जगहों से ही मिले हैं।
कोरोना की मार झेल रहे मज़दूरों को एक नई परेशानी भी सता रही है। यूएई में रहने वाले एक हिंदू भारतीय ने कुछ समय पहले दिल्ली मरकज के तब्लीगी जमातियों को लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट की। इस पोस्ट में उन्होंने इन तब्लीगी जमातियों को 'कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवादी' बताया था और भारत में भी तबलीगियों को लेकर तल्ख टिप्पणियां और सियासत तेज़ है।
इस पोस्ट के बाद सऊदी अरब के शाही परिवार की सदस्य राजकुमारी हेंद अल कासिमी ने ट्वीट कर चेतावनी दी कि, जो भी यूएई में इस तरह का माहौल बिगाड़ने की कोशिश करेगा, उसपर या तो जुर्माना लगाया जाएगा या उसे देश छोड़ना पड़ेगा।
फिलहाल, यहां रहने वाले भारतीय दु्आ कर रहे हैं कि ये किसी राजनीतिक और सामाजिक तूफान में ना बदले। और वे कोरोना कर्फ्यू के बाद अपने काम पर लौट सके सा वतन वापसी कर नए भविष्य की तलाश कर पाएं।
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