कोरोना और उसके चलते लॉकडाउन का असर अयोध्या पर भी हुआ है।यहांबाहर से आने वाले श्रद्धालु नहीं हैं, इसलिए अयोध्या इन दिनों सूनी है। यही वजह है कि श्रद्धालुओं से ज्यादा पुलिसकर्मी दिखाई दे रहे हैं।
हर साल ज्येष्ठ के महीने में बड़ी संख्या में लोग अयोध्या के प्रसिद्ध मंदिर हनुमानगढ़ी में दर्शन को आते थे। इस बार वेभी नहीं हैं। लेकिन राम नगरी के सभी मंदिर खुले हैं, साधु-संतोंके लिए, पूजा-पाठ के लिए और श्रद्धालुओं के लिए भी।
रामलला से लेकर हनुमानगढ़ी और कनक भवनसभी जगह पर पहले की तरह ही पूजा हो रही है। भोग लगाया जा रहा है और प्रसाद-चरणामृत भीबांटा जा रहा है। दर्शन के लिएआनेवालों को पुजारी चंदन का टीका भी लगा रहे हैं।इस दौरान ज्यादातर लोगमास्क भी नहीं पहन रहे।
बाहरी टूरिस्ट न होने से भीड़ नहीं है, लेकिन बाकी सब पहले जैसा ही है। सियाराम, जय राम, जय-जय राम और जय हनुमान की धीमी धुन साफ सुनाई दे रही है। शंख और मंजीरों की नाद भी गली के मुहाने तक पहुंचती है।
- राम जन्मभूमि से...
रामलला नए मंदिर में विराजमान हैं, लॉकडाउन में भी दर्शन को आते रहे साधु और सुरक्षाकर्मी, बगल में जेसीबी मशीनें चल रहीं
राम जन्मभूमि मंदिर की ओर जाने वाले रास्ते पर सिर्फ सुरक्षाबल ही दिखाई दे रहे हैं। मुख्य गेट से आगे मोबाइल, पर्स ले जाना मना है। दर्शन से पहले इसे बाहर ही जमा करना होता है। एंट्री गेट पर सुरक्षा अधिकारी अशोक कुमार पांडेय आने-जाने वालों के नाम नोट कर रहे हैं। कहते हैं कि इन दिनों बमुश्किल पूरे दिन में 50-60 श्रद्धालु ही रामलला के दर्शन को आ रहे हैं।
मंदिर स्थानीय साधु-संत और श्रद्धालुओं के लिए पूरे लॉकडाउन में खुला रहा। पुलिस का कहना है कि अयोध्या में कोई बाहर से नहीं आ रहा, इसलिए इसे बंद करने की जरूरत नहीं पड़ी।
बैरिकेडिंग से गुजरते हुए राम जन्मभूमि के अंदर पहुंचने पर रामलला नए मंदिर में विराजमान नजर आते हैं। मंदिर के पीछे ऊंची चहारदीवार बना दी गई है। उसके पीछे जेसीबी के चलने की आवाज मंदिर तक आ रही है। जन्मभूमि और उसके आसपास की जमीनों पर जेसीबी मशीनें समतलीकरण का काम कर रही हैं। सुरक्षाबल चारों ओर मुस्तैद हैं।
रामलला के दर्शन के लिए पहुंचे लोगों में अधिकारी, पुलिसकर्मी और संत ही हैं। कोई कतार भी नहीं है। मंदिर के पुजारी प्रेम तिवारी कहते हैं कि लॉकडाउन से श्रद्धालु बहुत कम आ रहे हैं। प्रसाद चढ़ाना भी बंद है। हालांकि वे भक्तों को प्रसाद देते हैं। कहते हैं कि सब प्रभु राम की कृपाहै, जल्द ही सब सही हो जाएगा। जमीन समतली के बारे में बात करने पर कहते हैं कि लॉकडाउन और कोरोना न हुआ होता तो अब तक मंदिर का काम काफी आगे बढ़ चुका होता।
राम जन्मभूमि के बगल में लॉकर चलाने वाले दीपक कहते हैं कि पहले हम श्रद्धालुओं के सामान की सुरक्षा करते थे, लेकिन अब चाय-नाश्ता बनाने लगे हैं। अब कोई बाहरी नहीं आ रहा, यहां बस तैनात फोर्स वालों को ही खिला-पिला रहे हैं। उन्हीं के बल पर दुकान चल रही है। बाकी तो रोड पर लोग पानी और चाय के लिए तरस रहे हैं।
- हनुमानगढ़ी से...
तीन जगहों पर बैरिकेडिंग है, सुरक्षाकर्मीघुसने से पहले पूछते हैं कि कहां से आ रहे हो?
हनुमानगढ़ी मंदिर से ठीक पहले हमेशा की तरह तीन जगहों पर बैरिकेडिंग है। पुलिस के जवान सिर्फ स्थानीय श्रद्धालुओं को ही अंदर जाने दे रहे हैं। घुसने से पहले पूछते हैं कि कहां से आ रहे हो। मुख्य गेट पर बड़ी संख्या में जवान तैनात हैं। भीतर मंदिर में 10-15 श्रद्धालु हैं। इनमें से आधे पुलिस और साधु-संत हैं। मंदिर के पट भी खुले हैं, पुजारी श्रद्धालुओं को प्रसाद और चरणामृत दे रहे हैं। टीका भी लगा रहे हैं। बस श्रद्धालु प्रसाद नहीं चढ़ा पा रहे। सामने गैलरी में बैठे कुछ पुजारी हनुमान स्तुति पढ़ रहे हैं। बगल में स्थित हनुमान यज्ञशाला में पुजारी तो हैं, लेकिन भक्त नहीं हैं।
हनुमानगढ़ी मंदिर में 20 साल से पूजा-पाठ कराने वाले केदारनाथ शास्त्री कहते हैं कि लॉकडाउन की शुरुआत में तो कोई श्रद्धालु नहीं आ रहा था, लेकिन अब उन्नीस-बीस का अंतर आया है। दक्षिणा मिलना तो बंद ही है। पहले प्रसाद इतना चढ़ावे में आता था कि आपस में बंटता था, लोगबांधकर भी ले जाते थे।
शास्त्री कहते हैं कि इस सबके बावजूद मंदिर में पूजा-पाठ में कोई परिवर्तन नहीं आया है। चार पुजारी सुबह की आरती करते हैं, उसके बाद एक-एक पुजारी बारी-बारी से बैठते हैं। ये पूछने पर कि चंदर-चरणामृत से कोरोना का खतरा तो नहीं? इस पर कहते हैं, ‘अब पूजा नहीं होगी तो यहां कैसे पार होगा? चंदन नहीं लगेगा तो कोई आएगा नहीं, चरणामृत नहीं दिया जाएगा, तो किसी की मनोकामना कैसे पूरी होगी।’
शास्त्री यहां के साधु-संतों औरपंडितों का दर्द भी बताते हैं, कहते हैं कि हम सबकी कहानी खराब है, न सरकार पूछ रही है, न कोई मठ या पीठ। आजकल दाल रोटी खा रहे हैं। हनुमानगढ़ी में पहले आम दिनों में 10 से 15 हजार श्रद्धालु आते थे। मंगलवार को तो 50 हजार तक लोग आ जाते थे,लेकिन अब सब बंद है। दिन भर में 100-150 श्रद्धालु ही आ रहे हैं।
पहले और दूसरे लॉकडाउन में मंदिर बंद था। फिर तीसरे लॉकडाउन में इसे खोला गया। लेकिन पिछले मंगलवार को अचानक मंदिर में बहुत भीड़ हो गई थी तो पुलिस की तैनाती बढ़ानी पड़ी।
गेट पर ड्यूटी करने वाले पुलिसकर्मी कहते हैं कि बंद तो किए हैं, लेकिन अब कुछ लोगों को जाने देना पड़ता है। इनमें चेला-सेवक, साधु-संत, स्थानीय लोग और काम करने वाले शामिल हैं।
हनुमानगढ़ी मंदिर के आसपास प्रसाद के अलावा माला, पूजा-पाठ की सामाग्री आदि की कुछ दुकानें अब जरूर खुलने लगी हैं,लेकिनएक भी ग्राहक नहीं दिखाई दे रहे। हनुमानगढ़ी से दशरथ भवन और कनक भवन जाने के रास्ते में तीन चार दुकानें बमुश्किल खुली हैं।
विजय मिश्रा कहते हैं कि दो दिन से दुकान खोल रहा हूं। लेकिन सब मंदा है। बस सामान जुहाने(जुटाने) में ही समय लगता है। पहले रोजाना 400 से 500 रुपए तक कमा लेते थे, लेकिन अब 100 रुपए भी नहीं मिल रहे हैं।
हनुमानगढ़ी मंदिर के सामने स्थित एक लड्डू की दुकान का आधा शटर गिरा हुआ है, आधा खुला हुआ है। मंदिर पर काम करने वाले छोटे कहते हैं कि पहले 20-25 कारीगर लड्डू बनाते थे। 8 से 10 कुंतल लड्डू रोज बेचते थे। अब तो बस भोग के लिए एक-दो किलो लड्डू मंदिर जाता है।
- कनक भवन से...
लोग 10-12 रुपए देकर मंदिर के भीतर जाते हैं, बड़े लोगों के लिए बना पैसे गेट खोल देते हैं
कनक भवन मंदिर का मुख्य गेट बंद है। यहां सामने रहने वाले हरिशंकर कहते हैं कि लोग 10-20 रुपए देकर मंदिर में जाते हैं। बड़े आदमियों के लिए बिना पैसे के गेट खोल दिया जाता है, लेकिन सबको नहीं जाने दिया जाता है।
कनक भवन के सामने चूड़ी-माला की दुकान लगाने वाली एक महिला कहती हैं कि अब तीन घंटा दुकान लगाने में लगता है, लेकिन तीन रुपए भी नहीं मिल रहा। अब जब यात्री आएंगे तो कुछ कमाई होगी। सब भगवान के भरोस ही चल रहा है।
- श्रृंगार भवन और अमावां मंदिर से...
राम रसोई से एक हजार पैकेट खाना बांटा जा रहा, श्रृंगार भवन के सामनेभोजन से पहले घंटेभर कीर्तन होता है
श्रृंगार भवन में फुटपाथ पर रहनेवालों के लिए भोजन की व्यवस्था की गई है। एक जालीनुमा बैठक में लोग भजन-कीर्तन गा रहे हैं। बगल की रसोई में खाना बन रहा है।
रसोई के व्यवस्थापक निखिल गोस्वामी बताते हैं कि यह सेवा बहुत पुरानी है, लेकिन लाॅकडाउन के चलते बीच में बंद हो गई थी। अभी कुछ दिन पहले प्रसाशन की अनुमति लेकर दोबारा शुरू की है। सोशल डिस्टेंसिंग के चलते वहां 35-36 लोग ही हैं। पहले 70 लोगों की व्यवस्था थी। बाकी जो आते हैं, उन्हें बाहर बैठाते हैं। खाने से पहले एक घंटे कीर्तन कराते हैं। खाने के बाद दक्षिणा के तौर पर 10-10 रुपए भी देते हैं। जो दान में आता है, उसी से रसोई में खाना बनता है।
कुछ दूरी पर स्थित अमावां मंदिर के पुजारी राम रसोई के जरिए खाना बंटवा रहे हैं। रोजाना एक हजार पैकेट जीरा राइस और आलूदम शहर में जरूरतमंदों को बांटा जाता है। कुछ अयोध्या से गुजरनेवाले प्रवासियों को तो कुछ स्थानीय लोगों को।
- सरयू तट से...
15-20 स्थानीय श्रद्धालु घाट पर मौजूद हैं, पुजारी कहते हैं कि रोटी-दाल मिलता रहे, यही बहुत है
सरयू तट पर राम की पैड़ी और नया घाट पर पूरी तरह से सन्नाटा है। सरयूजी घाटों से थोड़ा दूर होकर मध्यम-मध्यम बह रही हैं। पंडों के तख्ते खाली पड़े हैं। बस तीन-चार पंडे हैं, जो घाट के ऊपर मंदिरों में आराम कर रहे हैं। 15-20 की संख्या में स्थानीय श्रद्धालु भी घाट पर मौजूद हैं। 35 साल से पंडिताई कर रहे सुरेश पांडेय कहते हैं कुछ स्थानीय लोग ही स्नान-ध्यान करने आ जाते हैं। ये पुजारी राम मोहन दासकहते हैं कि रोटी-दाल मिलता रहे, यही बहुत है। रामनवमी के दिन तो घाट पर साधु-संत भी स्नान नहीं कर पाए थे। पुलिस ने पूरा लॉक कर दिया था।
साधु- संतों को सीएम ने एक-एक हजार रुपए दिए, 7 हजार लोगों के लिए लंगर खोला
अयोध्या के महापौर ऋषिकेश उपाध्याय कहते हैं कि यहां पर्यटन जीरो है। मंदिर खुलते हैं, लेकिन सिर्फ पूजा हो रही है। जरूरतमंदों की शासन और संत सहयोग कर रहे हैं। मधुकरिया साधु-संत जो रोज मांगकर खाते हैं। ऐसे 250 साधुओं को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथने एक-एक हजार रुपए दिए हैं। फिलहाल 5 से 7 हजार लोगों के लिए लंगर की व्यवस्था की गई है। 100-150 लोगों को सूखा राशन भी बांटा जा रहा है।
उपाध्याय कहते हैं कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट द्वारा कराए जार रहे समतलीकरण में दो जेसीबी और 10 मजदूर लगे हैं। 70 एकड़ जमीन को सही करने में महीनेभर तो लग ही जाएगा। क्योंकि बहुत ऊबड़-खाबड़ जमीन है। उसके बाद आगे का काम शुरू होगा।
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