राजस्थान की राजनीति में 27 साल पुरानी कहानी एक बार फिर दोहराई जा रही है। घटनाक्रम ठीक वैसा ही है, 1993 जैसा। बहुमत के बावजूद जब राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए आमंत्रित नहीं किया तो तत्कालीन विधायक दल के नेता भैरोंसिंह शेखावत ने राजभवन में विधायकों की परेड करवाई और आखिरकार सरकार बनाने में सफल रहे।
अब, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार बचाने के लिए राजभवन की ओर देख रहे हैं। विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने को लेकर दो बार राज्यपाल को कैबिनेट की सिफारिश भेज चुके हैं और एक बार घेराव भी किया जा चुका है। लेकिन, राज्यपाल कलराज मिश्र ने सत्र बुलाने की इजाजत दी नहीं है। कुल मिलाकर राज्यपाल एवं सरकार में गतिरोध बना हुआ है।
शेखावत के साथ अटल-आडवाणी भी सक्रिय थे
विधानसभा चुनाव 1993 के नतीजों में भाजपा को 95 एवं कांग्रेस को 76 सीटें मिली और बाकी सीटें निर्दलीय, माकपा एवं जनता दल में बंट गई। 29 नवंबर को भैरोंसिंह शेखावत को विधायक दल का नेता चुन लिया गया। उसी दिन तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष रामदास अग्रवाल ने राज्यपाल बलिराम भगत को पत्र लिखकर भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने का अनुरोध पत्र लिखा।
5 दिन तक राज्यपाल ने कोई जबाव नहीं दिया। हरियाणा के तत्कालीन सीएम भजनलाल जयपुर में कांग्रेस सरकार बनाने के लिए लॉबिंग करने लगे। भाजपा ने विधायकों को टोंक रोड पर एक रिसोर्ट में जमा कर लिया।
शेखावत 4 दिसंबर को विधायकों सहित राजभवन पहुंचे और परेड करवाई। भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी भी जयपुर पहुंच गए। उधर, दिल्ली में अटल बिहारी बाजपेई ने पीएम पीवी नरसिंह राव से राज्यपाल की शिकायत की। राज्यपाल ने 4 दिसंबर 1993 को शेखावत को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया।
अब 17 दिन से बाड़ाबंदी
कांग्रेस सरकार पिछली 10 जुलाई से संकट में है। पूर्व डिप्टी सीएम पायलट सहित 19 कांग्रेस विधायकों ने बगावत कर दी है और सरकार को समर्थन दे रहे 3 निर्दलीय विधायक भी अलग हो गए। यह 22 विधायक दिल्ली एवं हरियाणा में बाड़ाबंदी में हैं।
वहीं, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समर्थक विधायक दिल्ली रोड पर ही एक रिसोर्ट में जमा हैं। 17 दिन से यह बाड़ाबंदी चल रही है। बागी विधायकों की अयोग्यता का मसला कोर्ट-कचहरी में अटका है। सरकार चाहती है कि विशेष सत्र बुलाकर शक्ति प्रदर्शन किया जाए। राज्यपाल का 24 जुलाई को समर्थक विधायकों के साथ घेराव भी कर चुके हैं।
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