Tuesday, 7 July 2020

सपना अमेरिकी या भारतीय नहीं होता, वो होता है इंसान का, उसके दिल, एक कागज का टुकड़ा यानी वीजा उसे रोक नहीं सकता

यूं तो फेसबुक पर खूब अजीबो-गरीब चीजें दिखती हैं, मगर पिछले हफ्ते एक बहुत ही क्यूट न्यूज मिली। 1950 के दशक में लंदन से कलकत्ता की बस सर्विस थी, जिसमें डायनिंग सलून, स्लीपिंग बर्थ और रिकॉर्डेड संगीत का भी प्रबंध था। सबसे बड़ी बात यह कि बस नौ देश पार करते हुए भारत पहुंचती थी, जिसमें ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान भी शामिल थे।

अब जरा सोचिए। आज की तारीख में भारतीय नागरिक अगर नौ देशों का वीजा लेना चाहे तो कितने बाल सफेद होंगे? हर एम्बेसी के डॉक्यूमेंट्स, बायोमेट्रिक और पता नहीं क्या-क्या सवालों के जवाब। पाकिस्तान का वीसा तो इतना दुर्लभ, मानो कोहिनूर का ताज। देशों के आपसी झगड़ों के चक्कर में आम आदमी पिसा हुआ है।

हर किसी को शक की नजर से देखते हैं, या तो संभावित माइग्रेंट (प्रवासी) या संभावित टेररिस्ट और पिछले पचास साल में यह एक ट्रेंड बन गया था। 1965 में इमीग्रेशन एक्ट पास हुआ, जिसके तहत किसी भी देश से यूएसए में सेटल होने की इजाजत मिली। भारत से हजारों ने टॉप यूनिवर्सिटीज में दाखिला लिया और पढ़ाई के बाद वहीं नौकरी करने लगे। फिर यूएएस की नागरिकता भी अपना ली। इसको कहते हैं ‘द ग्रेट अमेरिकन ड्रीम’।

यानी कि अगर आप तेज हैं, मेहनती हैं, तो एक देश है जो आपका स्वागत करता है। वो आपके ब्रेन पॉवर को अपना गौरव समझेगा। चाहे आप गुजरात के पटेल हैं, या आईआईटी के श्रीनिवास, आपमें कुछ खास है। एक नई जगह पर अपनी पहचान बनाने की आस है। इस एनर्जी की वजह से अमेरिका इनोवेशन और रिसर्च के क्षेत्र में आज दुनिया का नंबर 1 देश है।

इसी तरह मुंबई शहर को ले लीजिए। बचपन से देख रही हूं कि यहां हर प्रांत के लोग बसे हैं। सिंधी, पारसी, दक्षिण भारतीय, बंगाली और बोहरा समाज के बच्चे मेरे साथ पढ़े थे। असल बात ये है कि मुंबई के मूल निवासी हैं मछली पकड़ने वाले कोली समुदाय। बाकी हर कोई ‘बाहरवाला’। शायद इसी वजह से ये शहर बना इंडिया का इकोनॉमिक हब।

मगर दुनिया अब बदल रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति चाहते हैं कि उनके देश में ‘बाहरवालों’ की एंट्री बंद हो। एच1बी वीजा उन्होंने खत्म करने की ठान ली है, जिसका असर सबसे ज्यादा भारत पर पड़ेगा। और हाल ही में घोषणा हुई कि एफ1 वीजा में भी बहुत सारे बदलाव होंगे। जो दरवाज़ा खुला था, वो धीमे-धीमे बंद हो रहा है।

नेता वही जो अपने देशवासियों को चूना लगा सके कि भाई आपकी समस्या का हल सिंपल है, ‘उन लोगों को वापस भेजो।’ मेक्सिको और अमेरिका के बीच दीवार खड़ी कर दो और अमेरिका-भारत के बीच भी। एक दीवार होगी ईंट की, दूसरी कागज की। मगर सवाल यह है कि इससे क्या अमेरिका फिर से ग्रेट बनेगा?

हम कोई भी पॉलिसी अपनाते हैं तो अति में। जब ग्लोबलाइजेशन अपनाया तो इस हद तक कि थोड़े से मुनाफे के लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार। अपने देश की फैक्टरी बंद कर पूरा प्रोडक्शन चीन शिफ्ट कर दिया। बीस साल के अंदर चीन ने आप पर एक तरह से इकोनॉमिक कब्जा कर लिया।

प्राचीन काल से देशों के बीच व्यापार हो रहा है। हर देश किसी प्रोडक्ट के लिए मशहूर था। जैसे भारतीय टेक्सटाइल की दुनियाभर में मांग थी। अब हर प्रांत को बैलेंस बनाना होगा। ग्लोबलाइजेशन के फायदे भी हैं और नुकसान भी।

सबसे जरूरी है अपने दिल के द्वार को खुला रखना। सपना अमेरिकी या भारतीय नहीं होता। वो होता है इंसान का, उसके हृदय का। एक कागज का टुकड़ा उसे रोक नहीं सकता। सपने देखना इंसान का जन्मसिद्ध अधिकार है। उसे पूरा करना सृष्टि का नियम है। अपने मन की धरती पर आत्मविश्वास का झंडा लहराएं और आगे बढ़ें।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)



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रश्मि बंसल, लेखिका और स्पीकर


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