कोरोना काल में दुनियाभर में विमानन गतिविधियां सीमित हैं या बंद हैं। ऐसे में एविएशन इंडस्ट्री पर भी खर्चों में कमी के साथ विमान में संक्रमण का खतरा कम करने की जिम्मेदारी है। कई कंपनियों ने अपनी गतिविधियां डिजिटल कर ली हैं, जिससे लोगों के बीच परस्पर संपर्क में तो कमी आई ही है, कंपनियों का खर्च और विमानों का वजन घटाने में भी सफलता मिली है।
कंपनियां अपने स्तर पर लागत कम करने के हरसंभव उपाय कर रही हैं। प्रमुख बात यह है कि विमान में जितना कम वजन होगा, लैंडिंग और टेकऑफ में ईंधन की खपत उतनी ही कम होती है। सिंगापुर एयरलाइन्स ने डिजिटल इनफ्लाइट सिस्टम ‘स्कूट हब’ शुरू किया है। इसमें यात्री मोबाइल फोन से फूड और ड्रिंक्स के ऑर्डर देने, ड्यूटी-फ्री सामान और अन्य सेवाओं का एक्सेस कर सकते हैं।
इससे सालाना 156 मीट्रिक टन कागज की बचत होगी और कार्बन उत्सर्जन में भी 41 टन की कमी आएगी। 13 टन ईंधन की सालाना बचत अलग होगी। ब्रिटिश एयरवेज ने फ्लाइट में दी जा रही मैग्जीन ‘हाई लाइफ’ बंद कर दी है। यह मैग्जीन अब यात्रियों को ऑनलाइन उपलब्ध कराई जा रही है। अमेरिकन एयरलाइंस ने सलाद की प्लेट से सिर्फ एक ऑलिव कम करके सालाना 30 लाख रुपए बचाए।
एडवांस टेक्नोलॉजी ने अब विमानन कंपनियों के लिए इनफ्लाइट मेन्यू, मैग्जीन और एंटरटेनमेंट कंसोल को हटाना आसान कर दिया है। इनका वजन 6 किलो तक होता है। ऑनबोर्ड रिटेल के बजाय जमीन पर उतरने के बाद इनफ्लाइट खरीद की डिलीवरी के लिए ई-कॉमर्स एप और कुरिअर का उपयोग करके विमानन कंपनियां वजन कम कर रही हैं। फिनएयर प्लास्टिक कटलरी को हटा कर सालाना 25 लाख रुपए बचा रही है।
भारत में भी एयरलाइंस ने उठाए कदम, अब वेब चेकइन सिस्टम
इधर, भारत में लगभग सभी एयरलाइंस इसी तरह के कदम उठा कर घाटा कम कर रही हैं। इंडिगो और विस्तारा एयरलाइंस में बोर्डिंग पास के बजाए वेब चेकइन शुरू किया गया है। फ्लाइट मैग्जीन बंद कर दी गई और ऑर्डर भी एप से लिए जा रहे हैं। इसके अलावा एयर सिकनेस बैग की संख्या भी कम की जा रही है फ्लाइट में पहले से ऑर्डर किए गए फूड और ड्रिंक्स ही रखे जा रहे हैं। विमानन विशेषज्ञ वासुदेवन एस का कहना है कि कोविड-19 ने विमानन कंपनियों की लागत घटाने के नए साधन ढूंढ़ने और टच फ्री टेक्नोलॉजी का उपयोग करने की जरूरत बढ़ाई है।
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