कोरोनावायरस को शरीर से खत्म करने के लिए वैज्ञानिक री-इंजीनियरिंग तकनीककी मदद सेअब इम्यून कोशिकाओं को हथियार बनाने की तैयारी कर रहे हैं। यह प्रयोग ड्यूक-एनयूएस मेडिकल स्कूल सिंगापुर के वैज्ञानिक कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोनावायरस के मरीजों की इम्यून कोशिकाओं को रूपांतरित करने के बाद इसमें रिसेप्टर जोड़े जाएंगे। बाद में यही कोशिकाएं वायरस को ढूंढकर उसे उसके तरीके से खत्म करेंगी।
ऐसे काम करेगी थैरेपी
जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंट मेडिसिन में प्रकाशित शोध के मुताबिक, विशेषज्ञों की एक टीम ने कोरोना पीड़ितों के ब्लड से इम्यून कोशिकाओं को अलग किया। शोधकर्ताओं ने कोशिकाओं में टी-सेल रिसेप्टर (टीसीआर) और काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (सीएआर) ढूंढे। ऐसे टी-सेल रिसेप्टर को लैब में कृत्रिम रूप में तैयार किया गया। इसे शरीर के इम्यून सिस्टम में भेजा जाएगा जो कोरोना से संक्रमित कोशिकाओं को पहचानकर खत्म कर देंगी।
महंगा पड़ेगा इलाज
शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस इम्युनोथैरेपी से इलाज काफी हद तक महंगा पड़ेगा। वायरस का इस तरह से इलाज करने में विशेष तरह के चिकित्सीय उपकरण और अधिक प्रशिक्षित स्टाफ की जरूरत होती है। मरीज का इलाज करने में कितना समय लगेगा, इसके बारे में भी कुछ कहा नहीं जा सकता। टीम इलाज की लागत को कम करने के लिए एंटीवायरल ड्रग और टी-सेल रिसेप्टर-काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर के कॉम्बिनेशन से वायरस को खत्म करने की कोशिश कर रही है।
कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली थैरेपी आएगी काम
आमतौर इन रिसेप्टर का इस्तेमाल कैंसर इम्यूनोथैरेपी में किया जाता है इनमें बदलाव के बाद ये कैंसर कोशिकाओं को टार्गेट करते हैं। आसान भाषा में समझें तो कोरोना के मामले में कोशिकाओं को एक तरह की ट्रेनिंग दी जाएगी जिससे ये वायरस को ढूंढकर खत्म कर सकें। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह इलाज का असरदार तरीका साबित होगा और खास बात है कि मरीज को इसके लिए हॉस्पिटल लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
लिम्फोसाइट्स का रोल अहम
इस थैरेपी पर काम कर रहे विशेषज्ञ डॉ. एंथनी टोनोटो टैन के मुताबिक, कैंसर के इलाज के दौरान शरीर के इम्यून कोशिकाओं (टी-लिम्फोसाइट्स) को मोडिफाय किया जाता है और ये कैंसर कोशिकाओं को ढूंढकर खत्म करती हैं। हालांकि संक्रमण या किसी खास किस्म के वायरस में इस थैरेपी का कितना फायदा मिलेगा इस पर अधिक कुछ कहना मुश्किल है। डॉ. एंथनी के मुताबिक, अगर लिम्फोसाइट्स को बदला जाए और उसे कुछ समय तक सक्रिय रखा जाए तो एचआईवी और हेपेटाइटिस-बी के संक्रमण में साइड इफेक्ट का खतरा कम किया जा सकता है। रिसेप्ट की मदद से कोरोना को किस हद तक रोका जा सकता है, टीम ने इस पर काम करना शुरू कर दिया है।
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