Thursday 23 April 2020

पसीने में भीग जाती थी बॉडी, घबराहट होने लगती थी, किसी चीज को छूने में भी डर लगता था

कोरोनावायरस की लड़ाई में डॉक्टर और नर्स फ्रंटलाइन सोल्जर्स हैं। आज हम अहमदाबाद, इंदौर और उज्जैन की ऐसी चार कहानियां बता रहे हैं, जिन्हें पढ़कर आपको नर्सों के समर्पण का एहसास होगा। किसी नर्स ने अपने पिता की मौतके बाद भी कोरोना ड्यूटी से मुंह नहीं मोड़ा तो किसी ने कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का सामना करने के बावजूद कोरोना से हारनहीं मानी बल्कि उसे हराने के लिए मैदान में जुटी रहीं। ये नर्सछ से सात घंटे तक पीपीई किट में रहती हैं। पसीना-पसीना हो जाती हैं, लेकिन अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटतीं। इनकी तरह सहजारों-लाखों नर्स कोरोना को हराने में जुटी हुई हैं।

वार्ड में न कूलर, न पंखा, पसीने से भीग जाते थे

अपनी टीम के साथ लेखिका।

मैं दोपहर दो बजे से रात आठ बजे तक कोरोना वार्ड में होती थी। कोरोना वार्ड में न ही एसी होता है न पंखा और न ही कूलर। हम पीपीई किट पहनकर ही वार्ड में जाते थे। खुद को ज्यादा सुरक्षित करने के लिए मैं यूनिफॉर्म के ऊपर ही पीपीई किट पहना करती थी। सभी नर्स ऐसा करती थीं। इससे हमारी सुरक्षा तो हो जाती थी लेकिन अंदर गर्मी के कारण बहुत घबराहट होती थी। पसीना इतना आता था कि हम पूरे भीग जाते थे। करीब 6 घंटे हम किट पहने रहते थे। यह काम हमारे लिए जितना कठिन था उतना ही जरूरी भी था। यह कहते हुए 24 साल की लेखिका सोलंकी बोलीं की, एमआरटीबी हॉस्पिटल में 1 से 5 अप्रैल के बीच मेरी ड्यूटी लगी थी। मैं दोपहर में 1 बजे घर से गरम पानी पीकर निकलती थी। ठंडा पानी पीना बंद कर दिया था, क्योंकि इससे इम्युनिटी कमजोर होने का डर था।

मां घबरा न जाएं, इसलिए लेखिका ने उन्हें कोरोना वार्ड में ड्यूटी के बारे में बताया नहीं था।

घर में भी आकर कूलर नहीं चलाती थी। साधारण वातावरण में ही रहती थी। यह सब खुद को ठीक रखने के लिए किया ताकि अच्छे से अपनी ड्यूटी कर सकूं। लेखिका कहती हैं कि, 21 फरवरी को मेरे पिता का देहांत हुआ है। इसके बाद से ही मैं इंदौर से धार (अमझिरा) आना-जाना कर रही थी, लेकिन कोरोना में ड्यूटी लगने के बाद मैं इंदौर से बाहर नहीं जा सकती थी। जब मुझे ड्यूटी लगने की जानकारी मिली, तब पहले डर लगा। ड्यूटी लगने के कारण नहीं बल्कि इस कारण की कहीं मुझे कुछ हो गया तो घरवालों का क्या होगा। क्योंकि घर में अब मैं ही कमाने वाली हूं। मेरी दोनों दीदी की शादी हो चुकी है। मैंने दीदी से बात की और घर में ये बात नहीं बताने का निर्णय लिया। मैंने ड्यूटी पूरी होने के बाद ही मां को बताया कि, मैंने कोरोना वार्ड में ड्यूटी की। ड्यूटी के दौरान छोटी-मोटी दिक्कतें हुईं लेकिन जो संतुष्टि मिली, वो शायद किसी और काम में नहीं मिल पाती।

खुद डर लगता था लेकिन मरीजों का हौंसला बढ़ाया
माधवनगर हॉस्पिटल उज्जैन में 18 अप्रैल तक कोरोना वार्ड में ड्यूटी निभाने वाली सुषमा शर्मा खुद कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का शिकार हो चुकी हैं। उन्होंने कैंसर को मात दी है। वे कहती हैं कि, 'कोरोना वार्ड में ड्यूटी करते हुए मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती खुद की इम्युनिटी को अच्छा बनाए रखने की थी, क्योंकि कीमाथैरेपी के कारण मेरी इम्युनिटी पर फर्क पड़ा है। मुझे 2007 में ब्रेस्ट कैंसर डिटेक्ट हुआ था, जिस ऑपरेट करवा लिया था'। मैंने इम्युनिटी अच्छी रखने के लिए डाइट बदल दी थी। मैं हेल्दी चीजें ही खा रही हूं। ड्यूटी के दौरान घर आना-जाना लगभग बंद कर दिया था। कभी-कभी घर जरूर जाती थी।

मेरी चुनौतियां अलग तरह की थी क्योंकि मैं स्टोर में थी। मरीजों की जरूरत का सामान समय पर लाना, स्टाफ की जरूरत का सामान बुलवाना इसके साथ ही जब स्टाफ कम होता तब आइसोलेशन वार्ड में काम करना होता था। वे कहती हैं कि, मैं स्वाइन फ्लू में भी काम कर चुकी हूं लेकिन इस बार जो देखा वो पिछले 18 साल के करियर में भी नहीं देखा था। सुषमा के मुताबिक, 'वार्ड में सबसे बड़ी चुनौती मरीजों का उत्साह बढ़ाने की थी। कई पेशेंट बहुत नेगेटिव हो गए थे, ऐसे में हमने खुद को नेगेटिविटी से बचाते हुए उन्हें खुश करने की कोशिश की।' कई बार उन्हें यहां-वहां के किस्से भी सुनाया करते थे। कई बार हमारे खुद के मन में डर होता था लेकिन उन्हें हम न डरने की सलाह देते हुए हौसला-अफजाई किया करते थे। वे कहती हैं मेरे परिवार में दो बहनें और भाई हैं। मैं सबसे छोटी हूं। मुझे परिवार ने कभी अपना फर्ज निभाने से रोका नहीं। सभी ने कहा कि, तुम्हारा काम है, अपना फर्ज अच्छे से निभाओ।

धूप में किट पहनकर घर-घर तक पहुंचते हैं

फील्ड में तैनात हेतल नागर।

मैं कोरोना संदिग्ध मरीजों के सैम्पल कलेक्ट करने का काम करती हूं। उनकी जांच करती हूं। तपती धूप में हम पीपीई किट पहनकर मरीजों के घर-घर जाते हैं। हर एक का सैम्पल कलेक्ट करते हैं और रिपोर्ट बनाते हैं। जब यह काम करते हैं, तब पूरी तरह से पैक होते हैं। करीब 6 से 7 घंटे तक न पानी पीते हैं न पेशाब जाते हैं। हवा के लिए भी तरस जाते हैं। किट उतारने पर संक्रमण का डर होता है। यह कहना है हेतल नागर का। हेतल अहमदाबाद के एएमसी डेंटल कॉलेज में नौकरी करती हैं। कोरोनावायरस आने के बाद से उनकी फील्ड ड्यूटी सैम्पल कलेक्ट करने के लिए लगाई गई है।

अपनी तीन साल की बेटी मिष्ठी के साथ हेतल।

वे कहती हैं कि मेरे लिए सबसे कठिन अपनी तीन साल की बच्ची से दूर रहना है। मैं, मेरे पति से दूर रहती हूं। दो साल से मैं और बच्ची साथ में रहते हैं। हम दोनों एक दूसरे से पहली बार इतने दिनों तक दूर हैं। मुझे उससे बात करते हुए रोना आ जाता है। बच्ची मेरी बड़ी बहन के साथ आणंद में है और मैं अहमदाबाद में हूं। कई बार सुबह उससे बात नहीं कर पाती। शाम को वीडियो कॉलिंग करती हूं। वो तो ये जानती भी नहीं कि उसकी मां क्या काम कर रही हैं, बस उसे ये पता है कि मम्मी हॉस्पिटल गई हैं। डर लगता है कि मुझे कुछ हो गया तो बच्ची को कौन संभालेगा लेकिन फर्ज हर चीज से बढ़कर है। कितनी भी भूख, प्यास लगे लेकिन मैं बाहर किट उतारती ही नहीं। किसी चीज को हाथ नहीं लगाती। रूम पर आने के बाद ही नहाती हूं। कपड़े वॉश करती हूं। फिर कुछ लेती हूं। सैम्पल कलेक्ट करने के चलते मरीजों के काफी करीब जाना पड़ता है। उनसे बात करना पड़ती है। इन सब चीजों के बावजूद अपनी ड्यूटी निभाकर मैं खुश हूं। कम से कम किसी की मदद कर पा रही हूं।

किसी भी चीज को छूने से भी डर लगता है

वॉर्ड में ड्यूटी के दौरान रंजीता जायसवाल।

उज्जैन के माधवनगर हॉस्पिटल के आइसोलेशन वार्ड में ड्यूटी करने वालीं रंजीता जायसवाल पिछले करीब सवा महीने से अपने बच्चों और पति से मिली ही नहीं। इनके तीन साल के दो जुड़वा बच्चे हैं और सात साल की एक बेटी है। वे कहती हैं कि, मैं पीडब्ल्युडी के गेस्ट हाऊस में रह रही हूं। बच्चों को ड्यूटी लगने के पहले ही बैतूल में बड़ी बहन के पास छोड़ दिया था। पति इंदौर में हैं। वार्ड में क्या चुनौतियां आती हैं, इस सवाल के जवाब में वे कहती हैं कि, वार्ड में कई घंटों तक रुकना ही एक चुनौती है। इस दौरान संक्रमण का बहुत डर होता है।

किसी भी चीज को छूने से डर लगता है। हम किट पहनकर मरीजों के पास जाते हैं। कई मरीज घबराए हुए होते हैं। कुछ रो देते हैं। ऐसे में उन्हें समझाना भी होता है। पॉजिटिविटी लाने की कोशिश करते हैं। एक महिला के तौर पर भी कई चुनौतियां होती हैं। बहुत लंबे समय तक भूखे-प्यासे रहना भी एक चुनौती है, लेकिन ड्यूटी करते-करते यह सब एक तरह से आदत में गया है। रोजाना घर जाकर खुद को साफ करना। कपड़े साफ करना। अगले दिन फिर वही लड़ाई करना, अब रूटीन हो चुका है। हॉस्पिटल में हमारा मकसद ज्यादा से ज्यादा मरीजों को ठीक करना ही होता है। हालांकि अभी मैं 14 दिनों के क्वारेंटाइन में हूं। क्वारेंटाइन पीरियड पूरा होने के बाद फिर ड्यूटी ज्वॉइन करूंगी।

पति के साथ रंजना।


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India Corona Warriors; This is How Indore, Ujjain and Ahmedabad Nurses Fight Against the Novel Coronavirus


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