आतंकवाद झेल रहे कश्मीर में पिछले 30 सालों में तीन पुश्तों के लिए लॉकडाउन कोई नया शब्द नहीं। घरों के स्टोर रूम में भरे कई क्विंटल चावल, राशन, घर के बुजुर्गों की दवाईयों के कई महीनों का स्टॉक उनके जीने के तरीके में शामिल है। फिर चाहे वह बर्फ से बंद हुए नेशनल हाईवे के चलते सामान के सप्लाय का मसला हो या फिर किसी आतंकी के एनकाउंटर के बाद पत्थरबाजी और कर्फ्यू लगा दिए जाने से पनपे हालात का।
पूरे देश में लॉकडाउन है। लोग इससे हैरान और परेशान हैं लेकिन खुद ही अपने घरों तक सीमित हो लिए हैं। आखिर सवाल जिंदगी का है। वहीं देश का एक हिस्सा है कश्मीर जिसने सबसे ज्यादा और लंबे लॉकडाउन देखे हैं। हमेशा यहां ये पाबंदियां सुरक्षा हालात को लेकर होती थी, इस बार लोगों ने खुद इन्हें अपनाया है।
5 अगस्त को धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में पाबंदियां लगा दी गई थीं। चार महीने सबकुछ बंद था। लॉकडाउन रहा नवंबर तक, जो अब तक का सबसे लंबा था। भयानक सर्दियों में थोड़ी दुकाने खुलने लगी। बर्फ और ठंड के चलते पाबंदियों में छूट भी मिली।
दिसंबर से जिंदगी पटरी पर आई ही थी कि अचानक से फिर मार्च में कोरोना के चलते उसे ठहरना पड़ा। इस बार लोगों ने खुद लॉकडाउन को स्वीकार किया।
लेकिन स्कूल अभी भी नहीं खुले थे, क्योंकि सर्दियों की छुटि्टयां थीं। स्कूल बंद हुए 9 महीने हो गए हैं। एग्जाम भी नहीं हुई हैं।
पहले सुरक्षा हालात के चलते कर्फ्यू के दौरान लोग सुबह और शाम फोर्स हटने पर दुकानें खोलते थे। इस बार कोरोना के लॉकडाउन में भी वह ऐसा करने लगे, लेकिन जब हालात बिगड़े तो दुकानें बंद रहने लगीं।
कश्मीर और बाकी देश के लॉकडाउन में जो सबसे बड़ा फर्क है वह ये कि घाटी में लॉकडाउन लगते ही सबसे पहले फोन और इंटरनेट बंद हो जाता है। बाकी देश की यह बदनसीबी नहीं।
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