Wednesday, 20 May 2020

एक मीटिंग से आ रहा था जब खबर मिली कि 5 पॉजिटिव आए हैं, रात 11 से 3 बजे तक मीटिंग कर टास्क फोर्स बनाई

केरल के पथानमथिट्‌टा जिले ने पिछले दो साल में एक के बाद एक मुश्किल हालात झेले हैं। हांलाकि, इस जिले को मशहूर करने वाला और दुनिया भर का ध्यान इसकी ओर खींचने का कारण ये मुश्किल हालात नहीं, बल्कि उनसे बखूबी उबरने के तरीके हैं। जिसका श्रेय युवा कलेक्टर पीबी नूह को जाता है। वह इन दिनों कोरोना से निपटने को लेकर बेहतरीन काम करने के लिए तारीफें बटोर रहे हैं।

नूह अब पथानमथिट्‌टा के सुपरस्टार बन चुके हैं और बाकी जिलों के लिए रोल मॉडल। उन्होंने सिर्फ अपने जिले के लोगों का ही नहीं बल्कि पूरे केरल के लोगों का दिल जीत लिया है। पिछले दिनों सीपीएम के विधायक जेनिश कुमार और नूह का एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। तस्वीर में नूह फूड सप्लाय को कंधे पर उठाए एक ट्राइबल कॉलोनी में नजर आए थे।

ये वह जिला है जहां कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड होने की कगार पर था। वजह इटली से आया एनआरआई परिवार था। इस परिवार के सदस्य जो बाद में पॉजिटिव निकले मालूम होने तक कुछ जगहों पर घूम चुके थे, कुछ सरकारी दफ्तर और कुछ रिश्तेदारों के यहां।

फरवरी में जब इटली से लौटकर आए एनआरआई परिवार के सभी पांचों सदस्यों की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई, तो पीबी नूह और उनकी टीम ने मेहनत कर उनके संपर्क में आए 1300 लोगों को ढूंढ निकाला।

‘जब पता चला कि इस परिवार के लोग और उनके रिश्तेदार पॉजिटिव टेस्ट हुए हैं तो मैं डर गया। मैं तिरुवनंतपुरम में एक मीटिंग से लौट रहा था जब मुझे ये खबर मिली कि पांच लोग पॉजिटिव आए हैं। क्योंकि ऐसा कुछ पहले कभी नहीं हुआ था इसलिए हमारे पास इसके लिए कोई प्लान ही नहीं था। पथानमथिट्‌टा पहुंचते ही रात को 11 बजे हमने हेल्थ डिपार्टमेंट के ऑफिसर्स और डॉक्टर्स के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस की। मीटिंग 2.30 -3 बजे खत्म हुई। अगली सुबह हमने एक टास्क फोर्स बनाई जिसमें 50 डॉक्टर शामिल थे और साथ ही जिले के लिए एक एक्शन प्लान भी। ऐसे हालात के लिए तुरंत एक्शन लेना बेहद जरूरी था, लेकिन साथ ही ये भी ध्यान रखना था कि लोग पैनिक न करें।’ पीबी नूह ने उस दिन की पूरी कहानी सुना दी, बिना दम भरे शायद। वो कहते हैं सही जानकारी सही वक्त पर दी जाए तो कई मुश्किल हालात संभल जाते हैं।

उनका इलाका केरल का पहला जिला था जहां संक्रमित मरीज से मिलने वालों का पता करने के लिए फ्लो चार्ट का इस्तेमाल हुआ। इसके लिए रूट मैप बनाया, जो बताता था कि कोच्ची एयरपोर्ट पर उतरने के बाद ये पति पत्नी और उनका 24 साल का बेटा कहां-कहां गए। तब तक उनके परिवार के कई लोग पॉजिटिव आ चुके थे और प्रशासन को यह फ्लो चार्ट पब्लिक करना पड़ा।

पथानमथिट्‌टा केरल का पहला जिला था, जहां फ्लो चार्ट बनाया गया। इसमें इटली से लौटे परिवार के कोच्चि एयरपोर्ट पर उतरने से लेकर हर ट्रैवल का ब्यौरा था।

संक्रमित से मिले लोगों का पता करने और उन्हें फिर क्वारैंटीन करने का मॉडल बाद में पूरे केरल में इस्तेमाल किया गया।

रिश्तेदारों के घर के अलावा ये संक्रमित परिवार चर्च, पोस्ट ऑफिस, सुपर मार्केट और जूलरी शॉप जैसी जगहों पर भी गया था और यही वजह थी कि कई सारे लोग जो यहां उनके संपर्क में आए उन्हें खतरा था।

प्रशासन हर उस व्यक्ति तक पहुंचना चाहता था जो इस परिवार के संपर्क में आए, लगभग 1300 लोगों को ऑब्जर्वेशन में रखा गया।

कलेक्टर के मुताबिक रूट मैप बनाना काफी थकाऊ काम था और उससे भी ज्यादा रूट मैप बनाते वक्त संक्रमित व्यक्ति की पहचान छुपाए रखना बेहद जरूरी था। पर टीमवर्क से सबकुछ संभव हो पाया। जिला प्रशासन, पुलिस, हैल्थ वर्कर, डॉक्टर्स, एनजीओ और स्थानीय राजनीति से जुड़े लोगों ने पूरा सहयोग किया।

नूह ने अपने ऑफिस में ही आइसोलेशन में रखे लोगों की मदद के लिए कॉल सेंटर बनाया था।

परिवार के तीनों सदस्यों के अलावा, जिन आठ लोगों से वो मिले सभी ठीक होकर घर लौट गए हैं। इनमें 95 साल के एक बुजुर्ग भी शामिल हैं। जीओफेंसिंग एप्लिकेशन का इस्तेमाल करनेवाला पथानमथिट्‌टा पहला जिला था। इसके जरिए क्वारैंटीन से भागने वालों को पकड़ा जा सकता है। अब ये एप्लीकेशन सभी जगह कंट्रोल रूम से मॉनिटरिंग के लिए इस्तेमाल हो रहा है। इसे फोन में एक बार इंस्टॉल करने के बाद यदि वह व्यक्ति घर से कदम बाहर रखता है तो कंट्रोल रूम को पता चल जाता है। वो व्यक्ति जहां भी जाता है तो उसकी लोकेशन ये एप्लीकेशन टैग करता है।

लगातार जारी कोशिशों के बाद यह इलाका जो कभी देश की हॉटस्पॉट लिस्ट में शामिल था। इसे ग्रीन जोन बनाने में 40-45 दिन का वक्त लगा। एनआरआई और दूसरे राज्यों ले लौटने वाले केरेलाइट्स को लेकर ये अभी भी अलर्ट हैं। कल ही यहां तीन नए केस मिले हैं जो बाहर से आए हैं।

नूह केरल के ही रहनेवाले हैंं। उनके पिता बावा एक छोटी सी राशन की दुकान चलाते थे और 10 लोगों का परिवार उसी कमाई के भरोसे था। नूह कहते हैं उनके पेरेंट्स की कोशिश थी कि सभी बच्चों की पढ़ाई अच्छी हो। हमें मां पिता ने कभी स्कूल से छुट्‌टी नहीं लेने दी। कहते हैं पूरी स्कूलिंग में सिर्फ दो दिन स्कूल से छुट्‌टी ली और वो भी उनके दादा-दादी की मौत के वक्त। नूह के भाई पीबी सलीम भी आईएएस हैं और उनके सिविल सर्विस में जाने के पीछे का कारण भी।

नूह पहले डॉक्टर बनना चाहते थे। बाद में उनका ध्यान खेती की तरफ गया। लेकिन, बड़े भाई के आईएएस बनने के बाद उन्होंने भी सिविल सर्विस में आने का फैसला लिया।

नूह कहते हैं मेरे भाई बहुत पढ़ाकू थे और मैं ठीक ठाक स्टूडेंट। ज्यादातर बच्चों की तरह नूह भी डॉक्टर बनना चाहते थे। हायर सेकेंडरी पास करने के बाद लगा कि खेती करूंगा। लेकिन खेती से जुड़ी संभावनाओं के बारे में ज्यादा मालूम नहीं था तो निराश हो गया।

फर्स्ट इयर स्टूडेंट था जब भाई ने यूपीएससी पास की। उसके बाद से बिना भटके नूह भी पढ़ाई करने लगे। बैंगलुरू की युनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस से पीजी किया और पहले प्रयास में आईएफएस बने और 2012 में दूसरी बार यूपीएससी देकर आईएएस।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
ये कलेक्टर पीबी नूह (ब्लू शर्ट में) की मेहनत का ही नतीजा था, जिसने 50 दिन में पथानमथिट्‌टा जिले को कोरोना हॉटस्पॉट से ग्रीन जोन में लाकर खड़ा कर दिया।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2LRjXHv
via IFTTT

0 comments:

Post a Comment