Wednesday, 20 May 2020

काशी के एक गांव में दो लोग नाव पर क्वारैंटाइन हैं, धूप में पीपा पुल के नीचे चले जाते हैं, उसी पर चूल्हा रखकर खाना भी बनाते हैं

दैनिक भास्कर के जर्नलिस्ट बंबई से बनारस के सफर पर निकले हैं। उन्हीं रास्तों पर जहां से लाखों लोग अपने-अपने गांवों की ओर चल पड़े हैं। नंगे पैर, पैदल, साइकिल, ट्रकों पर और गाड़ियों में भरकर। हर हाल में वे घर जाना चाहते हैं, आखिर मुश्किल वक्त में हम घर ही तो जाते हैं। हम उन्हीं रास्तों की जिंदा कहानियां आप तक ला रहे हैं। पढ़ते रहिए...

15वीं रिपोर्ट, मल्लाह आबादी के गांव कैथी से:

कुलदीप निषाद उर्फ कल्लू और पप्पू निषाद उर्फ भेड़ा गंगा किनारे अलग-अलग नाव पर क्वारैंटाइन किये गए हैं। दोनों गुजरात के मेहसाणा से लौटे हैं। गांव प्रधान अजय यादव के मुताबिक दोनों गन्ने के जूस की दुकान पर काम करते थे। लॉकडाउन की वजह से इनकी नौकरी छिन गई, तो अहमदाबाद से पहले गाजीपुर आये और फिर वहां से वाराणसी।

गुजरात से अपने गांव आये कल्लू उर्फ कुलदीप निषाद कहते हैं कि उनकी 22 दिन की 6 हजार पगार जूस सेंटर के मालिक ने नहीं दी और अब शहर से लौटने के बाद उन्हें इस नांव पर रहना पड़ रहा है।

कल्लू9 -10 दिनों से गंगा के किनारे अपने परिवार की ही नाव पर क्वारैंटाइन हैं। दिन में जब धूप सहन नहीं होती है, तो नाव को पास के बड़े से पीपे के नीचे ले जाते हैं, वहां थोड़ी छांव रहती है।

गंगा नदी पर बने पीपे के पुल पर पर कुछ बरतन नजर आए। पूछने पर कल्लू ने कहा, वह मेरे बरतन हैं। मैं पीपा पर ही गोहरी लगाकर अपना खाना बनाता हूं और उस पर ही खाना भी खाता हूं। रात में अपनी नाव में आ जाता हूंऔर कभी कभार नाव को गंगा नदी में कुछ दूर ले जाकर मन बहला लेता हूं।

वैसे कल्लू की पहले महेसाणा और बाद में वाराणसी में थर्मल स्क्रीनिंग हुई है। उसकी मेडिकल रिपोर्ट नॉर्मल है। कल्लू की तरह पप्पू निषाद भी नाव में क्वारैंटाइन हैं। कहते हैं, महेसाणा में दाल-रोटी के लिए मर रहा था। यहां गांव में परिवार और गांव के लोग मदद कर देते हैं। सरकार भी कुछ न कुछ तो हम मल्लाहों को देगी ही ना?

पप्पू निषाद भी नांव पर ही क्वारैंटाइन हैं। वेकहते हैं, मेरे पास छोटी नाव है। अब गांव में मछली पकड़ने का काम करना चाहता हूं। मगर नाव चलाने व मछली पकड़ने पर अभी मनाही है। अब दाल-रोटी कहां से आएगी?

दो घंटे पहले मुंबई से आए एक 40 वर्षीय व्यक्ति को प्रशासन वाले लोग लेकर गए हैं। बताया जा रहा है कि वह कोविड-19 का मरीज है। स्थानीय पुलिस ने उसके पूरे मोहल्ले को सील कर दिया है। इस मोहल्ले में लगभग 100 घर हैं। मोहल्ले के मुहाने पर खड़े झब्बन बताते हैं कि गांव में लगभग 150 लोग मुंबई और दूसरे राज्यों से आए हैं। लोगों ने अपने आपको खुद से ही क्वारैंटाइन किया है।

छत पर खड़े शख्स भोला प्रताप वर्मा है। ये भी होम क्वारैंटाइन में हैं।

गांव के झम्मन यादव बताते हैं कि सरकार ने क्वारैंटाइन की ठीक व्यवस्था नहीं की है। सरकार की व्यवस्था पर लोगों को यकीन नहीं है। बल्कि वे सोचते हैं कि सरकार के बनाए क्वारैंटाइन सेंटर्स में उन्हें उल्टे और कोरोना हो जाएगा। इसलिए जिसे जहां जैसा समझ आ रहा है वो वहां रह रहा है। परिवार बाहर से आनेवालों को रख भी नहीं रहे हैं और ये लोग भी परिवार से दूर भाग रहे हैं।

झम्मन बताते हैं कि टीवी ने मुंबई से गांव आने वालों के खिलाफ ऐसा माहौल बना दिया है कि गांव वाले भी नहीं चाहते कि वे लोग गांव में रहें। इसलिए खेत खलिहानों और घाटों पर रह रहे हैं।

बाहर से लौटे लोगों ने कहीं नदी किनारे, कहीं खेतों में, तो कहीं मसानों में अपनी झोपड़ियां बनाई हैं। इन्हीं झोपड़ियों में इन्हें पूरे 14 दिन क्वारैंटाइन रहना है।

कैथी गांव गंगा-गोमती के संगम पर बसा है। यहां ज्यादातर आबादी मल्लाह यानी मछुआरों की है। यूं तो यह गांव मार्कण्डेय महादेव मंदिर की वजह से भी मशहूर है। हमारे ड्राइवर राजू जब बनारस की घुमावदार गलियों से होते हुए इस गांव में हमें लेकर आए तो गाड़ी पर महाराष्ट्र का नंबर देखकर लोगों की निगाहें हमें घूरे जा रही थीं। गांव में मुंबई के मानखुर्द से आए 40 वर्षीय ओमप्रकाश राजभर कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं।

कैथी ग्राम पंचायत में 1500 लोग मल्लाह (मछुआरे) समुदाय के हैं। लॉकडाउन से पहले ये लोग मछली पकड़ कर बाजार में बेचा करते थे। मगर इन दिनों इनकी हालत बेहद खराब है।

गांव के मल्लाहों में 45 वर्षीय गोधन निषाद काफी सम्मानित व्यक्ति माने जाते हैं। वे कहते हैं, हमारे गांव में कोरोना महामारी से पहले करीब छह-सात क्विंटल मछली रोजाना पकड़कर बेची जाती थी। इस गांव के लगभग 80 निषाद परिवार के पास कुल 100 नाव गंगा में हैं। अब गांव में बड़ी संख्या में लोग पलायन करके आ रहे हैं। यदि सरकार मछुआरों को मदद के लिए इस लॉकडाउन के संकट में आगे आती है, तो नयी पीढ़ी के लोग भी इस ओर आकर्षित होंगे और गांव के मल्लाहों का पलायन रूकेगा।

इस गांव से थोड़ा बाहर कैथी घाट बनाने का काम चल रहा है। आगरा के रहने वाले संजीत सिंह वहीं पास में चार लोगों के साथ फूस की झोपड़ी में रह रहे हैं। बताते हैं ‘मैं आगरा का रहने वाला हूं,आगरा में कोरोना के हालात बहुत खराब हैं। यहां नदी किनारे काम चल रहा है लेकिन गांव कैथी और बनारस मे रेड जोन में हैं इसलिए हम चार लोग नदी किनारे इस सुनसान में ही रहते हैं। फूस की झोंपड़ी बनाई है, चूल्हे पर खाना पीना बना लेते हैं।’

संजीत अपनी मां के कहने पर घर-परिवार से दूर नदी किनारे रह रहे हैं।

संजीत का कहना है कि उनकी मां का कहना है कि वे लोग नदी किनारे किसी अकेली सी जगह चले जाएं, इसलिए कोरोना से बचने के लिए इन्हें जहां ठीक लगा वे लोग वहां रह रहे हैं। संजीत कहते हैं कि हम लोग यहां गांव वालों को आने भी नहीं देते हैं।

बंबई से बनारस तक मजदूरों के साथ भास्कर रिपोर्टरों के इस 1500 किमी के सफर की बाकी खबरें यहां पढ़ें:

बंबई से बनारस Live तस्वीरें / नंगे पैर, पैदल, साइकिल से, ट्रकों पर और गाड़ियों में भरकर अपने घर को चल पड़े लोगों की कहानियां कहतीं चुनिंदा तस्वीरें

पहली खबर: 40° तापमान में कतार में खड़ा रहना मुश्किल हुआ तो बैग को लाइन में लगाया, सुबह चार बजे से बस के लिए लाइन में लगे 1500 मजदूर

दूसरी खबर:2800 किमी दूर असम के लिए साइकिल पर निकले, हर दिन 90 किमी नापते हैं, महीनेभर में पहुंचेंगे

तीसरी खबर:मुंबई से 200 किमी दूर आकर ड्राइवर ने कहा और पैसे दो, मना किया तो गाड़ी किनारे खड़ी कर सो गया, दोपहर से इंतजार कर रहे हैं

चौथी खबर: यूपी-बिहार के लोगों को बसों में भरकर मप्र बॉर्डर पर डंप कर रही महाराष्ट्र सरकार, यहां पूरी रात एक मंदिर में जमा थे 6000 से ज्यादा मजदूर

पांचवीं खबर: हजारों की भीड़ में बैठी प्रवीण को नवां महीना लग चुका है और कभी भी बच्चा हो सकता है, सुबह से पानी तक नहीं पिया है ताकि पेशाब न आए

छठी खबर: कुछ किमी कम चलना पड़े इसलिए रफीक सुबह नमाज के बाद हाईवे पर आकर खड़े हो जाते हैं और पैदल चलने वालों को आसान रास्ता दिखाते हैं

सातवीं खबर:60% ऑटो-टैक्सी वाले गांव के लिए निकल गए हैं, हम सब अब छह-आठ महीना तो नहीं लौटेंगे, कभी नहीं लौटते लेकिन लोन जो भरना है

आठवीं खबर: मप्र के बाद नजर नहीं आ रहे पैदल मजदूर; जिस रक्सा बॉर्डर से दाखिल होने से रोका, वहीं से अब रोज 400 बसों में भर कर लोगों को जिलों तक भेज रहे हैं

नौवीं खबर: बस हम मां को यह बताने जा रहे हैं कि हमें कोरोना नहीं हुआ है, मां को शक्ल दिखाकर, फिर वापस लौट आएंगे

दसवीं खबर: रास्ते में खड़ी गाड़ी देखी तो पुलिस वाले आए, पूछा-पंचर तो नहीं हुआ, वरना दुकान खुलवा देते हैं, फिर मास्क लगाने और गाड़ी धीमी चलाने की हिदायत दी

ग्यारहवीं खबर: पानीपत से झांसी पहुंचे दामोदर कहते हैं- मैं गांव आया तो जरूर, पर पत्नी की लाश लेकर, आना इसलिए आसान था, क्योंकि मेरे साथ लाश थी

बारहवीं खबर :गांव में लोग हमसे डर रहे हैं, कोई हमारे पास नहीं आ रहा, जबकि हमारा टेस्ट हो चुका है और हमें कोरोना नहीं है, फिर भी गांववालों ने हउआ बनाया

तेरहवीं खबर: वे जंग लगी लूम की मशीनें देखते हैं, कूड़े में कुछ उलझे धागों के गुच्छे हैं; कहते हैं, कभी हम सेठ थे, फिर मजदूर हुए, अब गांव लौटकर जाने क्या होंगे

चौदहवीं खबर: बनारस में कोरोना का हॉटस्पाट है गांव रुस्तमपुर, इकलौते पॉजिटिव मरीज के परिवार के लोग उसे क्वारैंटाइन सेंटर में खाना देने आते हैं तो गांववाले गालियां बकते हैं



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In a village in Kashi, two people are quarantine on a boat, go under the cask bridge in the sun, cook the stove on it and cook it.


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