Monday, 1 June 2020

लालच और वैश्वीकरण ने हमें कोविड-19 और दूसरी विपदाओं के लिए जिम्मेदार बना दिया है

हाल के हफ्तों में हमें यह पता चला है कि दुनिया नाजुक है। पिछले 20 सालों में हम लगातार इंसान निर्मित और प्राकृतिक प्रतिरोधों (बफर) व नियमों को लगातार हटाते रहे, जो पर्यावरणीय, भूराजनीतिक या वित्तीय तंत्रों के संकट में पड़ने पर हमारी रक्षा करते थे। तकनीक के भारी इस्तेमाल से हमने ‌वैश्वीकरण को पहले से कहीं तेज, सस्ता व गहरा कर दिया है। कौन जानता था कि चीन के वुहान से अमेरिका के लिए सीधी उड़ानें थीं?

इन बातों को एकसाथ देखें तो आपको ऐसी दुनिया मिलेगी जिसे एेसे झटकों से ज्यादा खतरा है, जिन्हें नेटवर्क्ड कंपनियां और लोग दुनियाभर में फैला सकते हैं। यह कोरोना से और स्पष्ट हो गया है। लेकिन दुनिया को अस्थिर करने वाला यह ट्रेंड पिछले 20 सालों से बन रहा है: 9/11, 2008 की महामंदी, कोरोना और जलवायु परिवर्तन। महामारियां अब सिर्फ जैविक नहीं रह गईं। वे अब भू-राजनैतिक, वित्तीय और वायुमंडलीय हो गई हैं।

इनमें पैटर्न देखिए। मेरे द्वारा उल्लेखित हर संकट के पहले हमें एक ‘हल्का’ झटका मिलता है, जो सावधान करता है कि हमने प्रतिरोध हटा दिया है। हालांकि हर मामले में हमने चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया और संकट ने पूरी दुनिया को घेर लिया। ‘इंडिस्पेंसेबल: व्हेन लीडर्स रियली मैटर’ के लेखक गौतम मुकुंदा कहते हैं, ‘हमने वैश्वीकरण वाले नेटवर्क बना लिए क्योंकि वे हमें ज्यादा दक्ष और उत्पादक बनाकर जिंदगी आसान कर सकते हैं। लेकिन जब आप लगातार प्रतिरोध और स्वयं की अतिरिक्त क्षमता को खत्म करते हैं और कुछ समय की दक्षता पाने या लालच के लिए संरक्षक बढ़ाते जाते हैं, तो आप न सिर्फ तंत्रों को झटके के प्रति कम सहनशील बनाते हैं, बल्कि झटकों को हर ओर फैला देते हैं।’

शुरुआत 9/11 से करते हैं। आप अलकायदा और ओसामा को राजनीतिक रोगाणु की तरह देख सकते हैं। यह रोगाणु कैसेट टेप्स और फिर इंटरनेट के जरिए पाकिस्तान, उत्तर अफ्रीका, यूरोप, भारत और इंडोनेशिया तक फैल गया। पहली चेतावनी 26 फरवरी 1993 को मिली जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की बिल्डिंग के नीचे एक वैन से धमाका किया गया। इसके बाद जो होता गया, हम सब जानते हैं। अलकायदा का वायरस इराक और अफगानिस्तान से होते हुए रूप बदलता रहा और आईएसआईएस में बदल गया।

फिर 2008 में आई महामंदी। वैश्विक बैंकिंग संकट भी इसी तरह फैला। ‘लॉन्ग टर्म कैपिटल मैनेजमेंट’ नाम के वायरस से इसकी चेतावनी मिली, जो कि 1994 में आया एक हेज फंड था, जिसने बहुत कमाई का लालच दिया। इसे जैसे-तैसे रोका गया। लेकिन हमने कोई सबक नहीं लिया एक दशक बाद आर्थिक महामंदी आ गई। दुर्भाग्य से लालच के लिए कोई हर्ड इम्यूनिटी नहीं है।

कोविड-19 की चेतावनी 2002 में सार्स के रूप में आई थी, पर हम चेते नहीं। सार्स के लिए जिम्मेदार कोरोनावायरस भी चमगादड़ों और पाम सिवेट्स में पाया गया था और इंसानों में इसलिए पहुंचा क्योंकि हम घनी शहरी आबादी पर जोर दे रहे हैं और प्राकृतिक प्रतिरोध खत्म कर रहे हैं।

सार्स चीन से हांगकांग एक प्रोफेसर के जरिए पहुंचा था, जो एक होटल के कमरा नंबर 911 में रुके थे। जी हां 911! बहुत से लोग जलवायु परिवर्तन को गंभीर नहीं मानते हैं। हर मौसम अपनी तीव्रता बढ़ा रहा है। इनसे जुड़े घटनाक्रम लगातार हो रहे हैं और महंगे पड़ रहे हैं। कोविड-19 से अलग हममें वे एंडीबॉडी हैं जो हमें जलवायु परिवर्तन के साथ रहने और उसे कम करने में मदद कर सकती हैं। अगर हम प्राकृतिक प्रतिरोधों को सरंक्षित करें तो भी हमें हर्ड इम्यूनिटी मिल जाएगी।

इन चारों वैश्विक आपदाओं की यात्रा यांत्रिक और अपरिहार्य लग सकती है। लेकिन ऐसा नहीं था। यह केवल विभिन्न विकल्पों, मूल्यों को चुनने के बारे में था, जिन्हें हमारे ‌वैश्वीकरण के युग में अलग-अलग समय पर इंसानों और उनके नेताओं ने चुना या नहीं चुना। तकनीकी रूप से कहें तो वैश्वीकरण निश्चित था। लेकिन हम उसे क्या आकार दें, यह तय नहीं है। वेंचर कैपिटलिस्ट और राजनीतिक अर्थशास्त्री निक हैनेयोर ने मुझसे एक दिन कहा था, ‘रोगाणुओं का आना तय है, लेकिन यह अपरिहार्य नहीं है कि वे महामारियों में बदलें।’

हमने दक्षता के नाम पर प्रतिरोधों को हटाने का फैसला लिया, हमने पूंजीवाद को फैलने दिया और सरकारों की क्षमताएं तब कम कर दीं, जब इनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। हमने महामारी में एक-दूसरे का सहयोग न करने का फैसला लिया, हमने अमेजन के जंगल काटने का फैसला लिया, हमने प्राचीन पारिस्थितिकी तंत्र में घुसपैठ कर वन्यजीवन का शिकार किया।

फेसबुक ने राष्ट्रपति ट्रम्प के भड़काऊ पोस्ट न हटाने का फैसला लिया, जबकि ट्विटर ने ऐसा किया। और बहुत से मुस्लिम धार्मिक नेताओं ने फैसला लिया कि वे भूतकाल को भविष्य को दफनाने देंगे, जबकि होना यह चाहिए कि भविष्य भूतकाल को दफनाए।

जरूरी सबक यह है कि जैसे-जैसे दुनिया आपस में ज्यादा गहराई से गुंथती जा रही है, हर किसी के व्यवहार का महत्व भी बढ़ता जा रहा है। उन मूल्यों का महत्व बढ़ रहा है जिन्हें एक-दूसरे पर निर्भर इस दुनिया में हम लाते हैं। और इसी के साथ ‘गोल्डन रूल’ भी पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। यानी दूसरों के साथ वैसा ही बर्ताव करें, जैसा बर्ताव हम अपने साथ चाहते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
थाॅमस फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में नियमित स्तंभकार


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3coRV14
via IFTTT

0 comments:

Post a Comment