संजय कुमार और रमेश यादव दोनों ही दिल्ली पुलिस में हेड कॉन्सटेबल हैं। पुलिस के हज़ारों बाकी जवानों की तरह ये दोनों भी कोरोना संक्रमण के इस भयावह दौर में अपनी जान जोखिम में डाल अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं।
लेकिन इनकी स्थिति अन्य जवानों से कहीं ज़्यादा जोखिम भरी है क्योंकि इनकी तैनाती एक ऐसे इलाक़े में जो ‘कोविड-19 हॉटस्पॉट’ है और जिसे एक ‘कंटेनमेंट ज़ोन’ में बदल दिया गया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के नियमों के अनुसार ‘कोविड-19 हॉटस्पॉट’ वह इलाक़ा है जहां कोरोना संक्रमितों की संख्या छह या इससे ज़्यादा हो।
जबकि 'कंटेनमेंट ज़ोन’ उस इलाक़े को कहा जाता है जिसे कोरोना संक्रमण के ख़तरे को देखते हुए पूरी तरह सील किया जा चुका हो।
ऐसे इलाकों में लोगों को अपने घरों से बाहर आने की भी अनुमति नहीं है और न ही किसी बाहरी व्यक्ति को इस इलाक़े में दाख़िल होने की अनुमति है।
दिल्ली का तुग़लक़ाबाद एक्सटेंशन ऐसा ही एक हॉटस्पॉट है जहां गली नंबर 24 से 28 तक कंटेनमेंट ज़ोन बनाई गई है। संजय कुमार और रमेश यादव इसी कंटेनमेंट ज़ोन में तैनात हैं।
संजय कुमार बताते हैं, ‘हम लॉकडाउन के पहले से ही यहां पुलिस बीट पर तैनात थे। लॉकडाउन हुआ तो हम पर वैसी ही ज़िम्मेदारी आई जैसी दिल्ली पुलिस के तमाम अन्य साथियों पर।
लेकिन पिछले महीने स्थिति तब बदल गई जब यहां से एक ही साथ 35 कोरोना पॉज़िटिव निकल आए।’
रमेश यादव कहते हैं, ‘हमारी बीट से बमुश्किल सौ मीटर दूर की गली से जब इतने मामले एक साथ सामने आए तो यह जानकर हम भी घबरा गए थे।
पहले तो सिर्फ़ डर था कि शायद कोरोना वायरस कहीं आस-पास हो सकता है इसलिए सावधान रहना है। लेकिन अब तो पक्का हो गया कि वायरस हमारे इतना क़रीब है और कई लोगों को बीमार कर चुका है। अब हर आदमी से बात करते हुए ज़्यादा डर लगने लगा और हर चीज़ छूते हुए ख़तरा बन गया।’
वे आगे कहते हैं, ‘लेकिन फिर विभाग के बड़े अधिकारी तुरंत ही यहां पहुंचे और उन्होंने हमारा मनोबल बढ़ाया। सुरक्षा के इंतज़ाम भी बढ़ाए गए और पूरे इलाक़े को तुरंत ही कंटेनमेंट ज़ोन बनाकर सील कर दिया गया। उस दिन से ज़िम्मेदारी कुछ और बढ़ गई।’
सरकार के निर्देश हैं कि कंटेनमेंट ज़ोन में लोग ज़रूरी सामान लेने के लिए भी घरों से बाहर नहीं निकलेंगे और उन्हें राशन से लेकर दवाओं तक घर पर ही डिलीवर की जाएँगी।
लेकिन यह नियम काग़ज़ों पर जितना आसान लगता है, ज़मीन पर इसे लागू करना उतना ही मुश्किल। ख़ासकर तुग़लक़ाबाद एक्सटेंशन जैसे इलाक़े में जहां जनसंख्या घनत्व इतना ज़्यादा है कि कंटेनमेंट ज़ोन बनाई गई इन पाँच गलियों में ही 45 हज़ार से ज़्यादा लोग रहते हैं।
यह इलाक़ा दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के गोविंदपुरी थाने के अंतर्गत आता है। इस इलाक़े की जनसंख्या इतनी ज़्यादा है कि एक इसी थाने के क्षेत्राधिकार में दस लाख से ज़्यादा लोग रहते हैं।
गोविंदपुरी थाने के थानाध्यक्ष सतीश राणा कहते हैं, ‘कंटेनमेंट ज़ोन में क़रीब 45 हज़ार लोग हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या को पूरी तरह क़ैद करके उनकी सभी ज़रूरतें पूरी करना बहुत बड़ी चुनौती थी।
ये तो संभव ही नहीं था कि पुलिस घर-घर तक राशन और दवाई पहुंचा सके क्योंकि दस हज़ार से ज़्यादा परिवार यहां रहते हैं और पुलिस के जवानों की संख्या सीमित है।
ऐसे में हमने वॉलंटियर अपने साथ जोड़े और तब ये काम काफ़ी हद तक आसान बन गया।’
थानाध्यक्ष सतीश राणा ने स्थानीय युवाओं को अपने साथ जोड़ा और स्वयंसेवकों की एक मज़बूत टीम खड़ी कर ली। इन युवाओं को उन्होंने दिल्ली पुलिस की ओर से पहचान पत्र और पास जारी करवाए ताकि ये सभी स्थानीय लोगों तक उनकी ज़रूरत का सामान आसानी से पहुंचा सकें।
इन स्वयंसेवकों के नंबर पूरे इलाक़े में बांट दिए गए और हर गली में पोस्टर चिपका कर भी ये नंबर सार्वजनिक किए गए ताकि लोग आसानी से अपनी ज़रूरतें इन्हें बता सकें।
स्थानीय निवासी चरणजीत सिंह बताते हैं, ‘सतीश राणा जी ने हम सभी स्वयंसेवकों का एक व्हाट्सएप ग्रूप भी बनाया है। इलाक़े की कोई भी समस्या होती है तो हम उस ग्रूप में लिख कर भेज देते हैं जिसे वो खुद लगातार देखते हैं।
ऐसे में कोई भी दिक़्क़त हो, उस पर तुरंत ही ऐक्शन ले लिया जाता है।’ इन लोगों के साथ ही ‘यूथ एकता फ़्रंट’ से जुड़े ज़हीर खान, अक़रम अलवी, ज़ाहिद मलिक और उनके अन्य साथी भी चौबीसों घंटे पुलिस के साथ मिलकर इस कंटेनमेंट ज़ोन में काम कर रहे हैं।
अक़रम अलवी कहते हैं, ‘इतनी बड़ी आबादी को कंटेनमेंट में रखना और सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करवाना आसान नहीं था।
लेकिन यहांकी सबसे अच्छी बात ये है कि सतीश राणा सर को यहां का हर परिवार अपना गार्डीयन मानता है। उनकी कही बात कोई नहीं टालता और हर वर्ग-धर्म के लोगों का उन पर भरोसा है।
उन्होंने लगातार यहां आकर लोगों से बात की लिहाज़ा कोरोना के इतने मामले सामने आने के बाद भी यहां कोई पैनिक नहीं हुआ और स्थिति लगातार नियंत्रण में है।’
जिस मुस्तैदी से तुग़लक़ाबाद के इस इलाक़े में पुलिस ने जनता के लिए काम किया, उसी मुस्तैदी के साथ यहां जनता भी पुलिस की मदद और सहयोग के लिए तैयार दिखी।
हेड कॉन्सटेबल संजय कुमार बताते हैं, ‘जैसे ही यहां कोरोना के मामले सामने आए और इलाक़े को कंटेनमेंट ज़ोन बनाया गया उसके अगले ही दिन डॉक्टर अभिनव भारती ने अपने फ़िज़ीओथेरपी सेंटर की चाबी हमें सौंप दी ताकि हम वहाँ आराम से सो सकें। कंटेनमेंट ज़ोन के नियमों का पालन करने में भी लोग पूरा सहयोग कर रहे हैं।’
45 हज़ार की आबादी वाले इस कंटेनमेंट ज़ोन में क़ानून व्यवस्था बिगड़ने का ख़तरा भी दिल्ली पुलिस के सामने बना हुआ था।
इसे देखते हुए कॉन्सटेबल रमेश यादव और उनके साथियों ने पहले दिन से ही कदम उठाना शुरू किया। वे बताते हैं, ‘हर इलाक़े में कुछ उपद्रवी तत्व होते ही हैं।
ऐसे लोगों की जानकारी हमें होती है। कभी अपने सूत्रों से तो कभी पुलिस रिकॉर्ड से। हमने ऐसे तमाम उपद्रवी तत्वों को शुरुआत में ही हिदायत दे दी थी और उन पर लगातार नज़र बनाए हुए हैं।’
ऐसा दुर्लभ ही होता है जब स्थानीय लोग अपनी पुलिस की प्रशंसा करते दिखें। लेकिन यह दुर्लभ स्थिति इन दिनों तुग़लक़ाबाद के इस इलाक़े में बेहद सुलभ है।
चरणजीत सिंह कहते हैं, ‘अन्य सभी ज़िम्मेदारी निभाने के साथ ही दिल्ली पुलिस हम लोगों के मनोरंजन के लिए भी काम कर रही है।
सतीश सर कई बार यहां एक रिक्शा बुलवाते हैं जिस पर स्पीकर लगे होते हैं और फिर लोगों से पूछ कर उनकी फ़रमाइश के गाने बजवाते हैं। एक दिन तो वो एक गायक को भी लेकर आए थे जिसने काफ़ी देर लोगों को गाने सुनाए।’
कोरोना संक्रमण की महामारी के दौरान जहां देश के कई हिस्सों से पुलिस की बर्बरता की तस्वीरें सामने आई हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसे इलाक़े भी हैं जहां पुलिस अपने काम के चलते लोगों की ख़ूब वाहवाही भी पा रही है।
हेड कॉन्सटेबल रमेश यादव कहते हैं, ‘मुझे दिल्ली पुलिस में नौकरी करते 22 साल हो गए हैं। आज से पहले मैंने इतना कठिन समय कभी नहीं देखा। लेकिन जनता का इतना प्यार भी आज से कभी नहीं मिला था।
कम से कम पाँच बार यहां ऐसा हो चुका है जब स्थानीय लोगों ने हम पर अपने घरों से फूल बरसाए हैं और तालियाँ बजाकर हमारा हौंसला बढ़ाया है।’
रमेश यादव आगे कहते हैं, ‘परिवार के लिए ये समय काफ़ी मुश्किल है। वो जानते हैं कि मैं कंटेनमेंट ज़ोन में तैनात हूँ जहां कोरोना के कई मामलों की पुष्टि हो चुकी है इसलिए वो लोग बहुत चिंता में हैं।
मेरी पत्नी इतना डिप्रेशन में है कि उसकी तबियत बिगड़ गई। उसे ग्लूकोस चढ़ रहा है और मैं उसे देखने भी नहीं जा सकता। ऐसी जगह से जाऊँगा तो ये परिवार के लिए भी ख़तरनाक होगा।’
अपने पर्स में से ब्लड प्रेशर की दवाई निकालते हुए रमेश कहते हैं, ‘ये देखिए। मैं ख़ुद बीपी की दवाई इन दिनों लेकर चल रहा हूँ। कई बार टेन्शन से बीपी शूट होता है तो दवाई खा लेता हूँ।’
तुग़लक़ाबाद एक्सटेंशन इलाक़े के इस कंटेनमेंट ज़ोन में शुरुआती 35 संक्रमितों के बाद कुछ अन्य मामले भी सामने आए थे जिसके बाद यहां संक्रमितों की कुल संख्या 54 हो गई थी।
इनमें से अधिकतर लोग अब ठीक होकर वापस अपने घर लौट चुके हैं। इस बेहद चुनौतीपूर्ण इलाक़े में लगातार सेवाएँ दे रहे रमेश यादव और संजय कुमार जैसे पुलिस के जवान मोटे तौर पर जनता और विभाग के रवैए से खुश हैं लेकिन कुछ वाजिब चिंताएँ भी उन्हें सता रही हैं।
रमेश यादव कहते हैं, ‘विभाग हमारा पूरा ख़याल रख रहा है। सुरक्षा के सामान से लेकर खाने-पीने की चीजें ख़त्म होने से पहले ही पहुंच रही हैं। लेकिन अन्य विभागों को भी दिल्ली पुलिस के प्रति थोड़ा गम्भीर होना चाहिए।
हमारा जो साथी अभी कोरोना के चलते शहीद हो गया, सुना है उसे दो अस्पतालों ने दाख़िल करने से ही इंकार कर दिया था। अगर उसे वक्त पर इलाज मिलता तो हो सकता है उसकी जान बच जाती। हम बस यही उम्मीद करते हैं कि किसी और के साथ ऐसा न हो।’
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