Friday, 24 April 2020

पांच महीने पहले देश को गोल्ड दिलाने वालीं खो-खो टीम की कप्तान नसरीन को बमुश्किल मिलती है दो वक्त की रोटी, उन पर नौ भाई बहनों की जिम्मेदारी

महज पांच माह पहले जिस बेटी ने देश गोल्ड मेडल जिताया था, उसकी हालत अब इतनी खराब है कि वो अपनी तय डाइट भी नहीं ले पा रही। हम बात कर रहे हैं साउथ एशियन गेम्स में भारतीय महिला खो-खो टीम का नेतृत्व करने वाली नसरीन शेख की। नसरीन की अगुवाई में ही भारत ने नेपाल को 17 -5 से मात देकर गोल्ड मेडल जीता था। पिछले करीब एक माह से चल रहे लॉकडाउन ने नसरीन के घर की हालत बेहद खराब कर दी है। उन्होंने दैनिक भास्कर से बातचीत करते हुए अपना दर्द बयां किया। उनकी कहानी, उनकी की जुबानी।

मुश्किल से हो पा रहा खाने का इंतजाम...

मेरे घर में पांच बहनें और चार भाई हैं। दो बहनों की शादी हो चुकी है। हम दिल्ली के शकरपुर में रहते हैं। आम दिनों में मेरे पिता मोहम्मद गफूर बर्तन बेचने का काम किया करते थे। वो जगह-जगह जाकर बर्तन बेचते थे, जिससे हमारा घर ठीक-ठाकचल जाता था लेकिन जब से लॉकडाउन लगा है, तब से पिताजी का कामकाज पूरी तरह से बंद है। घर में उनके और मेरे अलावा कोई कमाने वाला नहीं है। हम सभी बहन-भाई अभी पढ़ रहे हैं। मैं फाइनल ईयर में हूं।

साउथ एशियन गेम्स में नसरीन ने गोल्ड मेडल जीता था।

मैं एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया की तरफ से खेलती हूं। उनकी खो-खो टीम की कैप्टन हूं। मेरा एएआई के साथ एक साल का अनुबंध है। यह काम मैंने अपने दम पर ही लिया है। मुझे 26 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता है, लेकिन यह वेतन हर माह नहीं मिलता बल्कि तीन-तीन माह में मिलता है। तीन माह में करीब 70 हजार रुपए मिलते हैं। हम नौ बच्चों का भरण-भोषण, पढ़ाई-लिखाई इतने कम पैसों में नहीं हो पाती।

अपनी बहन के साथ नसरीन।

लॉकडाउन के बाद से हालात ऐसे हैं कि, मैं अपनी डाइट तक नहीं ले पा रही क्योंकि जो पैसे मुझे मिल रहे हैं वो परिवार में ही खर्च हो जाते हैं। एक खिलाड़ी के तौर पर मुझे डाइट में दूध, अंडे, फल-फ्रूट रोजाना लेना जरूरी हैं, लेकिन अभी तक हम लोग दो वक्त के खाने का इंतजाम ही मुश्किल से कर पाते हैं। हालांकि स्थितियां ज्यादा खराब होने पर खो-खो फेडरेशन ऑफ इंडिया की तरफ से मुझे मदद मिलीहै। पिछले महीने मेरी बहन को टाइफायड हुआ था तो फेडरेशन ने ही इलाज का खर्चा उठाया था। यदि मुझे डाइट नहीं मिली तो मैं कमजोर हो जाऊंगी और भविष्य में फिर शायद टीम के लिए खेल भी न सकूं।

नसरीन के माता-पिता।

मैंने मुख्यमंत्री अरविंज केजरीवाल सहित तमाम बड़े लोगों को लिखा है। सीएम को ट्वीट भी किया, लेकिन मुझे कोई मदद नहीं मिली। मैं सरकारी नौकरी चाहती हूं, ताकि अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकूं। आज देश में क्रिकेटर इस महामारी में लोगों की मदद कर रहे हैं, लेकिन खो-खो प्लेयर के हाल ऐसे हैं कि हमें अपनी डाइट के लिए तक सरकार से लड़ना पड़ रहा है। ये हाल तब हैं जब मैं 40 नेशनल, 3 इंटरनेशनल खेल चुकी हैं। गोल्ड मेडल जीत चुकी हूं।


रूढ़िवादी प्रथाओं को तोड़कर आगे गढ़ी हैं नसरीन

  • नसरीन रूढ़िवादी प्रथाओं को तोड़कर आगे बढ़ी हैं। उनके रिश्तेदारों का कहना था कि लड़कियों को खो-खो नहीं खेलना चाहिए क्योंकि इसमें छोटे कपड़े पहनना होते हैं। लेकिन नसरीन ने ऐसी रूढ़िवादी प्रथाओं को नहीं माना और उनके पिता ने इसमें उनका पूरा साथ दिया।
  • 2016 में नसरीन का चयन इंदौर में हुई चैंपियनशिप प्रतियोगिता के लिए हुआ। 2018 में लंदन में हुए खो-खो कॉम्पीटिशन के लिए चुनी गईं। 219 में देश के लिए गोल्ड मेडल जीता।


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