शाम के सात बजने को हैं। रमजान का महीना है और दिल्ली के जामा मस्जिद में मगरिब की अजान होने में बस कुछ ही मिनट बाकी हैं। आम तौर पर रमजान के दिनों में जामा मस्जिद के इस इलाके में पैर रखने की भी जगह नहीं होती। करीब 15 से 20 हजार लोग हर शाम यहां रोजा खोलने और नमाज के लिए पहुंचते हैं। लेकिन इन दिनों कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन में यह पूरा इलाका सन्नाटे में डूबा हुआ है।
जामा मस्जिद के गेट नंबर 1 के बाहर दिल्ली पुलिस के कुछ जवान तैनात हैं। उनके साथ ही अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी भी यहां मौजूद है। इन लोगों के अलावा सड़क पर दूर-दूर तक कोई इंसान नजर नहीं आ रहा। मुख्य सड़क पर एक-एक दुकान बंद है और एक-एक गली खाली।
दिल्ली पुलिस की एक गाड़ी अभी-अभी लगभग 40-50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से 1 नंबर गेट से तीन नंबर गेट की तरफ गई है। दशकों में शायद पहली बार ऐसा हुआ है जब इस इलाके में कोई गाड़ी इस रफ्तार से चली है। पुरानी दिल्ली का यह इलाका जिसने भी देखा है, वह समझ सकता है कि यहां किसी गाड़ी का ऐसे गुजरना कितनी गैर-मामूली घटना है। जिसने यह इलाका नहीं देखा वह इस तथ्य से अंदाजा लगा सकता है कि ये देश ही नहीं बल्कि दुनिया के सबसे व्यस्त इलाकों में शामिल है और यहां पैदल आगे बढ़ना भी किसी चुनौती से कम नहीं होता।
17वीं सदी में बनी जामा मस्जिद देश की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। सदियों से यहां रमजान के दौरान रोजेदारों की भीड़ आती रही है। मस्जिद की मीनारों से उठती अजान की आवाज के साथ ही हजारों सिर सजदे में झुकते रहे हैं। आज भी ठीक सात बजते ही अजान तो हमेशा की तरह हुई है लेकिन सजदे में झुकने वाले सर नदारद हैं। मस्जिद के बाहर सड़क पर बैठे एक बेघर शख्स के अलावा आज यहां ऐसा कोई नहीं है जो अजान होने पर रोजा खोलता नजर आया हो।
पुरानी दिल्ली के रहने वाले अबू सूफियान बताते हैं, ‘रमजान के दौरान मटियामहल से लेकर तिराहा बैरम खां तक बड़ा जबरदस्त बाजार सजता रहा है। खाने-पीने की तमाम दुकानों से लेकर कपड़ों और जूतों तक की दुकानें यहां लगती हैं जिनमें खरीददारी के लिए लोग देश भर से आते हैं। यह बाजार सिर्फ दिन में ही नहीं बल्कि रात भर भी लगा करता था और चौबीसों घंटे रौनक रहती थी। इस रौनक की कमी खलती तो है लेकिन यह लॉकडाउन बेहद जरूरी भी है।’
लॉकडाउन ने पुरानी दिल्ली में होने वाली रमजान के बाजारों की रौनक को ही नहीं बल्कि ऐसी कई परंपराओं पर भी अल्पविराम लगा दिया है जो बीते कई दशकों से यहां होती आई थी। मसलन रोजा खुलने के वक्त मस्जिद से हरा झंडा फहराया जाता था, फिर पटाखों का शोर होता था और इसके साथ ही सबको मालूम चलता था कि इफ्तार का वक्त हो गया है। इस बार ऐसा कुछ नहीं है, सिर्फ मस्जिद की अजान ही है जिसे लोग अपने-अपने घरों में सुनकर ही रोजा खोल रहे हैं।
अबू सूफियान बताते हैं, ‘सहरी के वक्त गली-गली में जाकर लोगों को जगाने वाले लोग खास तौर से आया करते थे। इनके अलावा कई लोग रात के दो-ढाई बजे तक नात-ए-पाक गाते थे जिसे सुनना बेहद दिलचस्प होता था। मस्जिद के अंदर भी रात भर रौनक रहती थी क्योंकि ईशा की नमाज के बाद तरावीह पढ़ने का दौर चलता था। तरावीह वो लोग पढ़ते हैं जो हफिजी कुरान होते हैं, यानी जिन्हें पूरी कुरान कंठस्थ होती है। उनके पीछे आम लोग पढ़ते हैं। लोग साल भर इस मौके का इंतजार करते हैं।’
पुरानी दिल्ली का यह इलाका खान-पान के लिए खास तौर से जाना जाता है। मस्जिद के एक नंबर गेट के ठीक सामने वाली गली में मौजूद करीम और अल-जवाहर जैसी दुकानें तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम बना चुकी हैं। इसके अलावा तौफीक की बिरयानी, असलम का बटर चिकन, बड़े मियां की खीर और चंदन भाई का ‘वेद प्रकाश बंटा लेमन’ खास तौर से लोगों को आकर्षित करता रहा है। मजेदार है कि रमजान के दौरान पूरी रात बंटा-लेमन बेचने वाले चंदन भाई इसे गंगाजल मिलाकर तैयार करते हैं और दिन भर रोजे में रहने वाले हजारों खुश्क गले रात भर इसकी ठंडक से तरावट पाते हैं।
जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर उज्मा अजहर अली बताती हैं, ‘रमजान के दौरान पुरानी दिल्ली में कई फूड वॉक हुआ करती हैं जिनके लिए लोग बहुत पहले से बुकिंग शुरू कर देते हैं। इस दौरान कई लोग तो सिर्फ और सिर्फ नहारी बनाया करते हैं और पूरे साल की कमाई इसी दौरान करते हैं। शीरमाल, शाही टुकड़ा और खजला-फेनी जैसे व्यंजन भी रमजान में खास तौर से बनाए जाते हैं और लोग दिल्ली के कोने-कोने से यहां इनका लुत्फ लेने आते हैं। इसके अलावा एक शेक वाला भी पुरानी दिल्ली में खासा मशहूर है जहां रमजान के दौरान खूब भीड़ हुआ करती है। फलों से बनने वाला वह शरबत ‘प्यार मोहब्बत का शरबत’ के नाम से पुरानी दिल्ली में मशहूर है।’
ये सारी रौनक इस साल सिर्फ लोगों की यादों तक ही सिमट गई है। लेकिन लोगों में इसे लेकर कोई नाराजगी का भाव नहीं दिखता। जामा मस्जिद के ठीक सामने ही रहने वाले मोहम्मद अब्दुल्ला कहते हैं, ‘इस वक्त जब पूरी दुनिया ही ठप पड़ी है तो पुरानी दिल्ली क्यों न हो। ये महामारी ही ऐसी है कि इससे निपटने के लिए घरों में कैद रहना जरूरी है। ये महामारी निपट जाए तो रौनक तो अगले साल फिर से लौट ही आएगी। उन लोगों के नुकसान की चिंता जरूर होती है जो पूरे साल रमजान का इंतजार किया करते थे कि इस दौरान कुछ कमाई हो सके।’
रमजान के दौरान पुरानी दिल्ली में सैकड़ों करोड़ का कारोबार होता है। असंगठित क्षेत्र के इस कारोबार का कोई सटीक आंकड़ा मिलना मुश्किल है लेकिन इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां छोटी-मोटी दुकान चलाने वाला आदमी भी रमजान के दौरान औसतन दस हजार रुपए का कारोबार हर दिन करता है।
मटियामहल के रहने वाले सैय्यद आविद अली कहते हैं, ‘ईद नजदीक आती है तो हर कोई खरीददारी करता है। घर के बच्चे से लेकर बूढ़े तक, सभी उस दिन नए कपड़े पहनते हैं। जूतों से लेकर रूमाल तक नया रखते हैं। जाहिर है कि इतनी खरीददारी होती है तो इतनी ही बिक्री भी होती है। बहुत लोगों के लिए रमजान का महीना पूरे साल की कमाई का समय होता है। उन लोगों के लिए ये वक्त बेहद मुश्किल बन पड़ा है।’
शाम को सुनसान नजर आ रही पुरानी दिल्ली की इन गलियों मेंइन दिनों बस कुछ देर की ही चहल-पहल हो रही है। कई बार तो यह चहल-पहल भगदड़ में भी बदल जाती है। कोरोना संक्रमण के चलते यहां कई इलाकों को ‘रेड जोन’ घोषित किया गया है लिहाजा पूरे क्षेत्र में पाबंदियां कुछ ज्यादा हैं। इन दिनों पुरानी दिल्ली के अधिकतर इलाकों में सिर्फ तीन या चार घंटों के लिए फल-सब्जी जैसी जरूरी चीजों की दुकानें खुल रही हैं। सीमित वक्त के खुल रही इन दुकानों पर कई बार बहुत ज्यादाभीड़ हो जाती है।
मोहम्मद अब्दुल्ला बताते हैं, पहले यहां दुकानें करीब चार घंटे सुबह और चार घंटे शाम को खुल रही थी। लेकिन बीते कुछ समय से सिर्फ दोपहर तीन से शाम के छह बजे तक ही दुकान खुल रही हैं। इस कारण कभी इतनी भीड़ हो जाती है कि भगदड़ जैसा माहौल बन पड़ता है। दो दिन पहले तो पुलिस ने यहां लाठी चार्ज करके भीड़ को हटाया है।’
पुरानी दिल्ली में रमजान की ऐतिहासिक रौनक को कोरोना संक्रमण ने इस साल फीका कर दिया है। लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो इसे सकारात्मक नजरिए से देख रहे हैं और धार्मिक पहलू से इसे बेहतर मान रहे हैं। ऑल इंडिया इमाम ऑर्गनाइजेशन के मुखिया डॉक्टर उमेर अहमद इलयासी कहते हैं, ‘इससे बेहतर क्या होगा कि इस बार लोग पूरा महीना घरों में बंद हैं तो इबादत को गंभीरता से ले रहे हैं।
जामा मस्जिद को भी इबादत के लिए मशहूर होना चाहिए, लेकिन वो इलाका खाने-पीने के लिए ज्यादा मशहूर है। वहां लोग इबादत से ज्यादा खाने-पीने पहुंचते थे। इस बार कुछ नया अनुभव करने का मौका है। लोगों को घरों में रह कर सच्चे मन से इबादत करनी चाहिए। रमजान का महीना आखिर इबादत का ही होता है।
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